इंडिया न्यूज, नई दिल्ली :
AFSPA law : नागालैंड में सेना की गोली से हुए नरसंहार के बाद एक बार फिर विवादित (AFSPA law) आर्म्ड फोर्सेज स्पेशल प्रोटेक्शन एक्ट यानि सशस्त्र बल विशेष अधिकार अधिनियम को हटाने की मांग जोर पकड़नी लगी है। मेघालय और नागालैंड के मुख्यमंत्रियों ने भी इस कानून को तत्काल प्रभाव से हटाने की मांग की है। अफस्पा को हटाने के लिए भूख हड़ताल करने वाली इरोम शर्मिला का मानना है कि पूर्वोत्तर से विवादास्पद सुरक्षा कानून अफस्पा को हटाने का समय आ चुका है। नागालैंड में सुरक्षा बलों की गोली से नागरिकों की मौत की घटना से सबकी आंखें खुल जानी चाहिए।
अभी चार दिसंबर की बात है कि नागालैंड के मोन जिले में सेना ने चरमपंथी समझकर गलती से नागरिकों को ही निशाना बना लिया था। इस हादसे में छह नागरिकों की मौत भी हुई थी। घटना के बाद स्थानीय लोगों ने सेना के कैंप को घेर लिया। इसमें सेना के एक जवान के साथ ही सात और लोगों की मौत हो गई।
कुल मिलाकर इस हादसे में 13 लोगों की जान गई थी। हादसे के बाद सेना ने भी गलती स्वीकारी और गृहमंत्री अमित शाह ने भी इस मामले में संसद को संबोधित किया। घटना के बाद ही नागालैंड के मुख्यमंत्री नेफियो रीयो और मेघालय के मुख्यमंत्री कोनरेड संगमा ने ट्वीट कर अफस्पा कानून को हटाने की मांग की है। (AFSPA law)
आपको बता दें कि (अफस्पा) आर्म्ड फोर्सेज स्पेशल प्रोटेक्शन एक्ट यानि सशस्त्र बल विशेष अधिकार अधिनियम। इस एक्ट का मूल स्वरूप अंग्रेजों के जमाने में लागू किया गया था, जब ब्रिटिश सरकार ने भारत छोड़ो आंदोलन को कुचलने के लिए सैन्य बलों को विशेष अधिकार दिए थे। आजादी के बाद उस समय के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की सरकार ने भी इस कानून को जारी रखने का फैसला लिया।
1958 में एक अध्यादेश के जरिए अफस्पा कानून को लाया गया। तीन महीने बाद ही अध्यादेश को संसद की स्वीकृति मिल गई और 11 सितंबर 1958 को अफस्पा एक कानून के रूप में लागू हो गया। शुरूआत में इस कानून को पूर्वोत्तर और पंजाब के अशांत क्षेत्रों में लगाया गया था। जिन जगहों पर ये कानून लागू हुआ उनमें से ज्यादातर की सीमाएं पाकिस्तान, चीन, बांग्लादेश और म्यांमार से सटी थीं। वहीं, जब 1989 के आस पास जम्मू और कश्मीर में आतंकवाद बढ़ने लगा तो 1990 में इस कानून को यहां भी लगा दिया गया था। (AFSPA law)
अफस्पा कानून को असम, मणिपुर, त्रिपुरा, मेघालय, अरुणाचल प्रदेश, मिजोरम, नागालैंड, पंजाब, चंडीगढ़ जम्मू-कश्मीर समेत देश के कई हिस्सों में लागू किया गया था। हालांकि समय-समय पर स्थिति की समीक्षा कर इसे हटा भी दिया जाता है।
फिलहाल, ये कानून जम्मू-कश्मीर के अलावा नागालैंड, असम, मणिपुर (राजधानी इम्फाल के सात विधानसभा क्षेत्रों को छोड़कर) और अरुणाचल प्रदेश के कुछ हिस्सों में लागू है। त्रिपुरा, मिजोरम और मेघालय में से कानून को हटा दिया गया है। (AFSPA law)
अफस्पा एक्ट के जरिए सशस्त्र बलों को अशांत क्षेत्रों में शांति बनाए रखने के लिए विशेष अधिकार दिए गए हैं। सशस्त्र बल कानून का उल्लंघन करने वाले व्यक्ति को चेतावनी देने के बाद बल प्रयोग और उस पर गोली चलाने की भी अनुमति देता है। ध्यान रखने वाली बात ये है कि किसी भी तरह की कार्रवाई से पहले चेतावनी देना जरूरी है।
अफस्पा एक्ट के तहत सैन्य बलों को बिना अरेस्ट वारंट किसी व्यक्ति को संदेह के आधार पर गिरफ्तार करने, किसी परिसर में प्रवेश करने और तलाशी लेने का भी अधिकार है। इस एक्ट की बड़ी बात ये है कि जब तक केंद्र सरकार मंजूरी न दे, तब तक सुरक्षा बलों के खिलाफ कोई मुकदमा या कानूनी कार्यवाही नहीं हो सकती है। (AFSPA law)
AFSPA law: अशांत क्षेत्र यानी वे इलाके जहां शांति बनाए रखने के लिए सैन्य बलों का उपयोग जरूरी है। कानून की धारा तीन के तहत, किसी भी क्षेत्र को विभिन्न धार्मिक, नस्ली, भाषा या क्षेत्रीय समूहों, जातियों या समुदायों के सदस्यों के बीच मतभेदों या विवादों के कारण अशांत घोषित किया जा सकता है। किसी भी क्षेत्र को केंद्र सरकार, राज्य के राज्यपाल या केंद्र शासित प्रदेश के उपराज्यपाल अशांत घोषित कर सकते हैं।
AFSPA law: अफस्पा के विरोध का जिक्र हो तो सबसे पहले मणिपुर की आयरन लेडी भी कही जाने वाली इरोम शर्मिला का जिक्र होता है। नवंबर 2000 में एक बस स्टैंड के पास दस लोगों को सैन्य बलों ने गोली मार दी थी। इस घटना के समय इरोम शर्मिला वहीं मौजूद थीं। इस घटना का विरोध करते हुए 29 वर्षीय इरोम ने भूख हड़ताल शुरू कर दी थी, जो 16 साल चली।
AFSPA law: अगस्त 2016 में भूख हड़ताल खत्म करने के बाद उन्होंने चुनाव भी लड़ा था, जिसमें उन्हें नोटा से भी कम वोट मिले । 10-11 जुलाई 2004 की दरमियानी रात 32 वर्षीय थंगजाम मनोरमा का कथित तौर पर सेना के जवानों ने रेप कर हत्या कर दी थी। मनोरमा का शव क्षत-विक्षत हालत में बरामद हुआ था। इस घटना के बाद 15 जुलाई 2004 को करीब 30 मणिपुरी महिलाओं ने बिना वस्त्र पहने प्रदर्शन किया था। (AFSPA law)
राज्यों के साथ ही मानवाधिकार संगठन और कार्यकर्ता भी इस कानून का विरोध करते आए हैं। आरोप लगते रहे हैं कि इससे सेना को जो शक्तियां मिलती हैं, उसका दुरुपयोग होता है। सेना पर फेक एनकाउंटर, मनमाने ढंग से गिरफ्तारी और हिरासत में टॉर्चर जैसे आरोप लगते रहे हैं। चूंकि कानून के तहत अर्धसैनिक बलों पर मुकदमे के लिए भी केंद्र सरकार की मंजूरी जरूरी है, इसलिए ज्यादातर मामलों में न्याय भी नहीं मिल पाता है।
AFSPA law: दरअसल, ये कानून जहां लागू है उन इलाकों में उग्रवादी गतिविधियां होती रहती हैं। भारत और म्यांमार की सीमा के दोनों तरफ कई अलगाववादी विद्रोही संगठनों के ठिकाने हैं। नागालैंड- मणिपुर में पीपुल्स लिबरेशन आर्मी सक्रिय है, जो सेना पर हमले करती रहती है। इसी तरह जम्मू-कश्मीर में भी अलगाववादी संगठन सक्रिय है। इन संगठनों से निपटने और देश की आंतरिक सुरक्षा के लिए जरूरी है कि सेना को विशेष अधिकार दिए जाए।
साल 2004 में यूपीए सरकार ने पूर्व सुप्रीम कोर्ट जज की अध्यक्षता में 5 सदस्यों की एक कमेटी का गठन किया था। इस कमेटी ने अफस्पा कानून को हटाने की सिफारिश की थी। हालांकि, इसी तरह की एक दूसरी कमेटी कानून लागू रखने की सिफारिश कर चुकी है।
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