इंडिया न्यूज, अंबाला:
समय-समय पर नवजोत सिद्धू का विरोध करने वाले Minister Captain Amarinder Singh के शनिवार को अचानक सुर बदल गए। उनके इस्तीफा देने और नहीं देने की अटकलों के बीच यह सवाल आम आदमी में घर कर रहा था। होता यह रहा था कि पंजाब में नवजोत सिंह सिद्धू को प्रदेश कांग्रेस का अध्यक्ष बनाने का विरोध मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने किया था। कैप्टन सिद्धू के खिलाफ अंदर ही अंदर मोर्चा खोलकर बैठे थे। बदले सुर राजनीतिक पंडितों को हैरान कर रहे हैं। ये सुर शनिवार को सिसवां स्थित फार्म हाउस पर पंजाब कांग्रेस प्रभारी हरीश रावत से हुई मुलाकात के बाद नजर आए। उन्होंने कहा कि वह सोनिया गांधी के हर फैसले से सहमत हैं। ऐसा भी नहीं है कि उन्होंने ये बात पहली बार कही हो, बल्कि सोनिया का आदेश मानने की बात पहले भी कहते रहे हैं। सियासत के पंडित इसे अलग-अलग एंगल से देख रहे हैं। उनका कहना तो यह भी था कि कैप्टन फिलहाल वेट एंड वॉच की रणनीति पर हैं।
भाजपा नीत केंद्र सरकार कई मुद्दों पर घिरी नजर आ रही है। इनमें से एक महत्वपूर्ण मुद्दा है कृषि कानून। 27 साल तक राजनीतिक सहयोगी रहा शिरोमणी अकाली दल कृषि कानून के मुद्दे पर उनका साथ छोड़ चुका है। इसके अलावा मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नजदीकी किसी से छिपी नहीं है। पंजाब में चुनावी बिगुल बनाने के लिए भाजपा के पास चेहरे की कमी है। ऐसे में कयास लगाए जा रहे हैं कि भाजपा को कैप्टन के रूप में चेहरा मिल सकता है। इसके अलावा वे मोदी से मिल किसानों का मुद्दा हल करा दें और मौजूदा कृषि कानूनों को होल्ड कराते हुए न्यूनतम समर्थन मूल्य की कानूनी गारंटी दिलवा दें तो पंजाब में कैप्टन और भाजपा-दोनों को बड़ा सियासी लाभ मिल सकता है।
अमरिंदर के इस्तीफे के बाद एक आशंका यह भी है कि कैप्टन कांग्रेस में ही बने रहेंगे और वह नवजोत सिद्धू के बेनकाब करने का इंतजार करेंगे। दरअसल सिद्धू-कैप्टन विवाद में कांग्रेस काफी हद तक दो फाड़ हो चुकी है। संगठन से लेकर विधायक और मंत्री तक कैप्टन या सिद्धू के हक में ताल ठोंक चुके हैं। ऐसे में सिद्धू संगठन की जिम्मेदारी मिलने पर क्या सबको साथ लेकर चल पाएंगे? यह बड़ा सवाल है। सिद्धू की वर्किंग स्टाइल और उनके कैरेक्टर को देखते हुए यह बहुत मुश्किल काम लगता है।
वह भी एक समय था जब पंजाब के गांवों में कैप्टन अमरिंदर सिंह के बहुत अधिक फॉलोअर थे। 2002 और 2007 के विधानसभा चुनावों के दौरान कैप्टन के भाषणों में हमला दिखाई देता था। उस समय बादल परिवार के खिलाफ कैप्टन लगभग उसी स्टाइल में बात करते थे। जैसे आज सिद्धू करते हैं। उस समय लोगों को लगता था कि अगर अकाली दल को कोई टक्कर दे सकता है तो वह सिर्फ कैप्टन हैं। 2002 से 2007 के बीच रही कैप्टन की सरकार को लोग आज भी याद करते हैं। मौजूदा सरकार में कैप्टन का वह रवैया नजर नहीं आया। कैप्टन पर उन्हीं की पार्टी के लोग अकाली दल और बादल परिवार के प्रति नरम रवैया अपनाने के आरोप लगाते रहे हैं।
सीएम के इस्तीफा देने के बावजूद एक बड़ा सवाल नवजोत सिद्धू पर भी उठ रहा है कि उन्होंने बेअदबी, ड्रग्स, रेत माफिया, ट्रांसपोर्ट माफिया और बिजली जैसे मुद्दों पर अपनी ही सरकार को घेरने में कोई कसर नहीं छोड़ी। अब देखना होगा कि अगर वह कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष बन जाते हैं तो क्या उतनी ही बेबाकी से ये मुद्दे उठाएंगे।
संगठन और सरकार के बीच टकराव से पार्टी की छवि को नुकसान होगा। कैप्टन के त्यागपत्र के बाद नवजोत सिंह सिद्धू को कोई फायदा होगा या नहीं यह तो तय नहीं है। परंतु अब जब कैप्टन अमरिंदर सिंह कांग्रेस को छोड़ेंगे तो यह बात तय है कि इससे प्रदेश कांग्रेस के साथ-साथ समस्त कांग्रेस पार्टी को भारी नुकसान जरूर होगा। वहीं त्यागपत्र देने के बाद सीएम ने कहा था कि बार-बार विधायक दल की बैठक बुलाने का मतलब है कि केंद्रीय नेतृत्व को मेरे पर विश्वास नहीं रहा। इसलिए मैं इस्तीफा दे रहा हूं।
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