Categories: Live Update

Monetization Threatens Basic Rights मोनेटाइजेशन से बुनियादी अधिकारों पर मंडराता खतरा

Monetization Threatens Basic Rights

फिरदौस मिर्जा
वरिष्ठ अधिवक्ता

हमारे पूर्वजों ने अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई लड़ी और एक सदी से अधिक समय तक संघर्ष करने के बाद हमें आजादी मिली। बहुत सारे लोगों ने बलिदान दिया, अनगिनत युवाओं ने अपने जीवन का बेशकीमती वक्त जेलों में बिताया, स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान कई परिवार उजड़ गए।

इतनी भारी कीमत चुकाकर हम लोकतंत्र के लक्ष्य को प्राप्त कर सके। स्वतंत्रता अपने साथ भारत के संविधान के माध्यम से शासन की व्यवस्था लेकर आई, जिससे प्रत्येक नागरिक के मौलिक अधिकारों को मान्यता मिली। इन मौलिक अधिकारों का क्या होगा? क्या ये सिर्फ कागजों पर ही रह जाएंगे या कल्याणकारी नीतियां जारी रहेंगी? केंद्र सरकार के मोनेटाइजेशन (मौद्रीकरण) अभियान के मद्देनजर भारतीयों को परेशान करने वाले ये कुछ सवाल हैं, क्योंकि इस अभियान के माध्यम से राष्ट्रीय संपत्ति बेची/किराए पर दी जा रही या निजी क्षेत्र को हस्तांतरित की जा रही है।
संविधानप्रदत्त मौलिक अधिकारों ने भारत के प्रत्येक नागरिक को सुरक्षा की भावना दी है। सबसे महत्वपूर्ण मौलिक अधिकार कानून के समक्ष समानता, धर्म, जाति, लिंग या जन्म स्थान के आधार पर भेदभाव का निषेध, अवसर की समानता, जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता की सुरक्षा और शिक्षा का अधिकार हैं, लेकिन इन अधिकारों को देना केवल सरकार के लिए ही बाध्यकारी है, निजी संस्थाओं के लिए नहीं। सुप्रीम कोर्ट ने समय-समय पर इन अधिकारों की व्याख्या की और इनके दायरे को विस्तृत किया। समान कार्य के लिए समान वेतन को कानून के समक्ष समानता माना जाता है, स्वास्थ्य के अधिकार को जीवन के अधिकार का अभिन्न अंग माना जाता है।

भारत के संविधान की प्रस्तावना में सामाजिक और आर्थिक न्याय, अवसर की समानता और बंधुत्व पर विशेष ध्यान दिया गया है। इन लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए राष्ट्र ने बैंकों, बीमा, पेट्रोलियम, खान आदि जैसे कई निजी क्षेत्रों के राष्ट्रीयकरण तक की यात्र तय की है, कई भूमि सुधार कानून बनाए गए हैं और नवीनतम उचित मुआवजे का अधिकार अधिनियम है। लेकिन हमने उल्टी दिशा में चलना शुरू कर दिया है, सरकार की हालिया नीतियां लगभग सभी क्षेत्रों के निजीकरण के पक्ष में हैं और वर्तमान में हम मोनेटाइजेशन के नाम पर निजीकरण के एजेंडे को आक्रामक रूप से आगे बढ़ा रहे हैं।
मुद्दा यह है कि क्या निजीकरण के परिणामस्वरूप नागरिकों के मौलिक अधिकारों की रक्षा की जा सकती है? संस्थाओं के निजीकरण के बाद मौलिक अधिकारों की रक्षा करना सरकार के लिए बहुत कठिन कार्य है। हम स्कूलों के निजीकरण के बाद इसका अनुभव कर रहे हैं, सरकारी और गैर-सरकारी स्कूलों में समान पाठ्यक्रम पढ़ाने वाले शिक्षकों के साथ अलग-अलग व्यवहार किया जाता है। निजी स्कूलों में शिक्षकों को न तो सेवा सुरक्षा मिलती है और न ही सरकारी स्कूलों के उनके समकक्षों के बराबर वेतन। यह कानून के समक्ष समान कार्य के लिए समान वेतन के सिद्धांत का उल्लंघन है। निजी संस्थानों में चपरासी से लेकर प्रबंधक तक प्रत्येक पद के साथ ऐसी ही स्थिति है।

महामारी में अधिक वसूली को लेकर निजी अस्पतालों के खिलाफ आम असंतोष था। सरकारी क्षेत्र में उचित स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध न होने के कारण आम आदमी को इन अस्पतालों में जाने के लिए मजबूर होना पड़ा। चूंकि निजी अस्पतालों के खिलाफ मौलिक अधिकार बाध्यकारी नहीं हैं इसलिए सरकार ने इन अस्पतालों को नियंत्रित करने में खुद को असहाय पाया। एक अन्य शिकायत निजी स्कूलों के खिलाफ स्कूल बंद होने के बावजूद फीस वसूलने के संबंध में थी। चूंकि सरकार इन स्कूलों को कोई सहायता नहीं दे रही है इसलिए वह अभिभावकों को फीस के भुगतान से कोई राहत नहीं दिला पा रही है।

अब, रेलवे का निजीकरण किया जा रहा है तो विकलांगों, वरिष्ठ नागरिकों, खिलाड़ियों, छात्रों को दी जाने वाली रियायतें उपलब्ध नहीं होंगी। अन्य क्षेत्रों की भी यही स्थिति होगी जहां समाज के कमजोर वर्ग को कल्याणकारी उपायों के रूप में कुछ रियायतें दी जाती हैं। निजीकरण के कारण हमारे दैनिक जीवन में हमारे मौलिक अधिकारों के उल्लंघन के ये कुछ उदाहरण हैं। चूंकि सरकारी क्षेत्र निजी क्षेत्र को दिया जा रहा है, आरक्षण की नीति भी बाध्यकारी नहीं है और इससे पिछड़े वर्गो के साथ अन्याय होगा। संविधान के कामकाज की समीक्षा के लिए नियुक्त राष्ट्रीय आयोग ने सिफारिश की, निजीकरण या विनिवेश के एमओयू में यह अनिवार्य रूप से दर्ज होना चाहिए कि निजीकरण के बाद भी पिछड़ों के पक्ष में आरक्षण की नीति जारी रहेगी।

नागरिकों की सुरक्षा के लिए सरकार को इसका पालन करना चाहिए। राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांतों की भावना के अनुसार समाज कल्याण सुनिश्चित करने वाले उचित नियमों के साथ संतुलित होने पर निजीकरण को पूरी तरह से बुरा नहीं कहा जा सकता है। अब, सरकार के पास नियामक की भूमिका होगी और उसे उन नीतियों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए जो नागरिकों को अधिक से अधिक सामाजिक सुरक्षा प्रदान करें। यदि हम स्वयं को कल्याणकारी राज्य मानते हैं तो हमें निजीकरण की नीति अपनाते समय नागरिकों के कल्याण का ध्यान रखना होगा। हमें सामाजिक सुरक्षा और नागरिकों के मौलिक अधिकारों को सर्वोपरि मानना चाहिए।

Also Read : Clashes between soldiers and rebels in Yemen : 19 सैनिकों सहित 50 लोगों की मौत

Connect Us : Twitter Facebook

India News Editor

Recent Posts

Rajasthan News: मदन राठौड़ का अशोक गहलोत पर पलटवार, पूछा- ‘बंटोगे तो कटोगे पर कांग्रेस को एतराज क्यों?’

India News Bihar(इंडिया न्यूज़),Rajasthan News: राजस्थान के पूर्व सीएम अशोक गहलोत के ‘बंटोगे तो कटोगे’…

5 mins ago

दिल्ली को मिला पहला ‘पिंक बस डिपो’, किन पदों पर महिला कर्मचारी ?

India News (इंडिया न्यूज),Delhi News: महिला सशक्तिकरण की दिशा में कदम बढ़ाते हुए DTC ने…

9 mins ago

MP News: हरदा विस्फोट में मुआवजा न मिलने पर पीड़ित करेंगे पैदल यात्रा, विपक्ष ने सीएम को घेरा

India News(इंडिया न्यूज)  MP News:  मध्य प्रदेश के हरदा में 9 महीने पहले एक पटाखा…

10 mins ago

सुबह-सुबह खाली पेट पानी में उबालकर पी लें ये 1 चीज, पेशाब के रास्ते Uric Acid को निचोड़ कर देगा बाहर

सुबह-सुबह खाली पेट पानी में उबालकर पी लें ये 1 चीज, पेशाब के रास्ते Uric…

13 mins ago

MP News: रीवा जिले में पुलिस की छापेमारी में मिला इतने लाख का मादक पदार्थ, महिला गिरफ्तार

India News(इंडिया न्यूज) MP News: मध्य प्रदेश के रीवा जिले में पुलिस ने छापेमारी कर…

19 mins ago

Govinda की अचानक बिगड़ी तबीयत, बीच में ही रोड़ शो छोड़ वापस मुंबई लौटे एक्टर, जानें कैसे हुई हालत खराब

Govinda की अचानक बिगड़ी तबीयत, बीच में ही रोड़ शो छोड़ वापस मुंबई लौटे एक्टर,…

30 mins ago