इंडिया न्यूज, नई दिल्ली:
New Method Of Milk Adulteration हम सभी जानते हैं कि दूध में आमतौर पर की जाने वाली यूरिया और पानी की मिलावट के परीक्षण में इस विधि को प्रभावी पाया गया है। शोधकतार्ओं का कहना है कि इस पद्धति का विस्तार मिलावट के अन्य रूपों का पता लगाने के लिए भी किया जा सकता है।
दूध में मिलावट भारत जैसे विकासशील देशों में एक गंभीर चिंता का विषय है। विभिन्न अवसरों पर यह देखा गया है कि आपूर्ति होने वाले दूध की अधिकांश मात्रा भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण द्वारा निर्धारित मानकों का पालन करने में विफल रहती है। दूध की मात्रा बढ़ाने के लिए अक्सर उसमें पानी के साथ यूरिया मिलाया जाता है, जो दूध को सफेद और झागदार बनाता है। यह मिलावटी दूध यकृत, हृदय और गुर्दे की सामान्य कार्यप्रणाली को प्रभावित कर सकता है।
(New Method Of Milk Adulteration)
इस तकनीक में, शोधकतार्ओं ने वाष्पीकरणीय जमाव के पैटर्न को केंद्र में रखा है। जब दूध जैसा तरल मिश्रण पूरी तरह से वाष्पित हो जाने एवं अस्थिर घटकों के नष्ट हो जाने पर बचा हुआ ठोस घटक स्वयं को एक विशिष्ट पैटर्न में व्यवस्थित कर लेता है।
पानी या यूरिया मिश्रिमत और इनसे मुक्त दूध में अलग-अलग वाष्पीकरणीय पैटर्न पाया गया। शोधकतार्ओं का कहना है कि मिलावटी दूध के वाष्पीकरणीय पैटर्न में एक केंद्रीय, अनियमित बूँद जैसा पैटर्न होता है। इस विशिष्ट पैटर्न के विरूपण या पूर्ण नुकसान के लिए पानी को जिम्मेदार पाया गया है। शोधकतार्ओं का कहना है कि पैटर्न की संरचना इस बात पर निर्भर करती है कि दूध में पानी की कितनी मात्रा मिलायी गई है।
(New Method Of Milk Adulteration)
एक गैर-वाष्पशील घटक होने के कारण यूरिया भी केंद्रीय पैटर्न को पूरी तरह मिटा देता है। यूरिया वाष्पित नहीं होता, बल्कि यह क्रिस्टल में रूपांतरित हो जाता है, जो दूध की बूँद के आंतरिक भाग से शुरू होकर परिधि के साथ फैलता है।
इस अध्ययन से जुड़े आईआईएससी के पोस्ट डॉक्टोरल शोधकर्ता विर्केश्वर कुमार ने बताया कि “यह परीक्षण कहीं पर भी किया जा सकता है। इसके लिए प्रयोगशाला या अन्य विशेष प्रक्रियाओं की आवश्यकता नहीं होती है, और इसे दूरस्थ क्षेत्रों और ग्रामीण स्थानों में भी उपयोग के लिए आसानी से अनुकूलित किया जा सकता है।
(New Method Of Milk Adulteration)
” विर्केश्वर कुमार के अलावा, इस अध्ययन में आईआईएससी के मैकेनिकल इंजीनियरिंग विभाग में सहायक प्रोफेसर सुष्मिता दास शामिल हैं। उनके द्वारा किया गया यह अध्ययन शोध पत्रिका एसीएस ओमेगा में प्रकाशित किया गया है।
शोधकतार्ओं का मानना है कि इस तकनीक को संभावित रूप से अन्य पेय पदार्थों और उत्पादों में मिलावट के परीक्षण के लिए भी उपयोग किया जा सकता है। प्रोफेसर दास ने बताते हैं, इस पद्धति से जो पैटर्न मिलता है, वह किसी भी तरह की मिलावट के प्रति काफी संवेदनशील होता है।
” उन्होंने कहा, मुझे लगता है कि इस विधि का उपयोग वाष्पशील तरल पदार्थों में अशुद्धियों का पता लगाने के लिए किया जा सकता है। शहद जैसे उत्पादों के लिए इस पद्धति को आगे ले जाना दिलचस्प होगा, जिसमें अक्सर मिलावट होती है।
(New Method Of Milk Adulteration)
शोधकतार्ओं का कहना है कि यह पद्धति काफी सरल है, और सभी तरह की मिलावट और उनके संयोजनों के लिए पैटर्न मानकीकृत हो जाएं तो इसका आसान स्वचालन सुनिश्चित हो सकता है। इन्हें तस्वीर का विश्लेषण करने वाले सॉफ़्टवेयर में फीड किया जा सकता है, जो तस्वीरों की तुलना एवं विश्वलेषण करके पैटर्न का आकलन करता है।
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