India News (इंडिया न्यूज़), Anil Thakur, One Nation one Election: वन नेशन वन इलेक्शन देश में उतना ही चर्चा का विषय बन गया है जितना कि भारत पाकिस्तान का मैच। अचानक से आई ख़बर ने सियासी गलियारों में हलचल बढ़ा दी है और हर तरफ यही चर्चा है कि मोदी सरकार के बुलाए संसद के विशेष सत्र में क्या होने वाला है। ये चर्चा चंद मिनटों में दिल्ली से मुंबई तक पहुंच गई और I.N.D.I.A गठबंधन के 28 दलों के नेताओं में भी चर्चा का मुद्दा एक देश, एक चुनाव बन गया है। सूत्रों के मुताबिक विशेष सत्र में सरकार कई बिल ला सकती है जिसमें एक देश, एक चुनाव, यूनिफॉर्म सिविल कोड और महिला आरक्षण बिल भी शामिल हो सकते हैं साथ ही G-20 के सफल समापन पर भी सरकार अपनी पीठ थपथपा सकती है।
वन नेशन, वन इलेक्शन पर विपक्षी दलों ने मांग की है कि सभी दलों से चर्चा करके ही सरकार को ये बिल लाना चाहिए, AAP सांसद संजय सिंह ने कहा है कि विपक्षी दलों की बैठक में हम इस पर चर्चा करेंगे। सवाल ये भी है कि ममता बनर्जी और नीतीश कुमार का डर क्या सही था क्योंकि दोनों ने वक्त से पहले चुनाव की आशंका जताई थी और कहा था कि बीजेपी चुनाव की तैयारियों में जुटी हुई है और विपक्षी दलों को भी तैयारी कर लेनी चाहिए।
राजनीतिक हल्कों में ख़बरें ये भी हैं कि हो सकता है ये आखिरी सत्र हो और संसद को भंग कर दिया जाए लेकिन इस बात की अभी पुष्टि नहीं हुई है कि विशेष सत्र में क्या होने वाला है। सरकार एक देश, एक चुनाव बिल लेकर आती है तो इसका मतलब साफ है कि पूरे देश में चुनाव एक साथ ही होंगे। वन नेशन, वन इलेक्शन पर चर्चा लंबे वक्त से चल रही है और लॉ कमीशन ने राजनीतिक दलों से 6 सवालों के जवाब भी मांगे थे।
अगर देश में एक साथ चुनाव होते हैं तो उसके कई फायदे हैं। सबसे पहले तो चुनावी प्रक्रिया पर लगने वाली बड़ी धनराशि पर लगाम लग जाएगी । समय और पैसे की बचत होगी। आचार संहिता लगने के चलते रुकने वाला विकास का पहिया लगातार 5 साल घूमेगा। जनप्रतिनिधि भी विकास कार्यों में ज्यादा ध्यान लगा सकेंगे।
क्षेत्रीय दल हमेशा से वन नेशन वन इलेक्शन का विरोध करते रहे हैं उनका मानना है कि बड़ी पार्टियों को इसमें ज्यादा फायदा होगा और देश के मुद्दों के सामने राज्यों के मुद्दे बौने हो जाएंगे। वहीं एक दलील ये भी दी जाती है कि अगर देश और राज्यों में चुनाव एक बार हुए तो मतदाता और नेता में दूरी बढ़ जाएगी, विधानसभा और लोकसभा चुनाव अलग- अलग वक्त पर होने से नेताओं का जनता से आमना- सामना होता रहता है और जवाबदेही के चलते नेता सक्रिय रहते हैं।
वन नेशन वन इलेक्शन का आइडिया सबसे पहले चुनाव आयोग ने ही 1983 में दिया था। आजादी के बाद 1951-52 में जब पहली बार देश में चुनाव हुए थे तो उस वक्त देश और राज्यों में चुनाव एक साथ ही हुए थे। उसके बाद 1957, 1962, 1967 में भी चुनाव एक साथ ही हुए थे। लेकिन कुछ विधानसभाओं के भंग होने के चलते ये साइकिल टूट गई। 1970 में लोकसभा वक्त से पहले भंग कर दी गई उसके बाद एक साथ चुनाव का ये साइकिल पूरी तरह टूट गई।
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