प्रमोद भार्गव
वरिष्ठ पत्रकार
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन की तकनीकों को निजी और विदेशी क्षेत्र की कंपनियों को हस्तांतरित करने की नीति पहले ही बन चुकी है। इसरो ने इस नाते कीमत वसूलकर तकनीक हस्तांतरण शुरू भी कर दिया है। देश की अर्थव्यवस्था और सुरक्षा क्षेत्र में अंतरिक्ष विज्ञान की अहम भागीदारी के लिए दो नवीन नीतियां वजूद में लाई जा रही हैं। इस हेतु प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारतीय अंतरिक्ष संगठन यानी इंडियन स्पेस एसोसिएशन (आईएसपीए) का शुभारंभ कर दिया है।
इसके तहत स्पेसकॉम (अंतरिक्ष श्रेणी) और रिमोट सेंसिंग (सुदूर संवेदन) नीतियां जल्द बनेंगी। इन नीतियों से स्पेस और रिमोट क्षेत्नों में निजी और सरकारी भागीदारी के द्वार खुल जाएंगे। वर्तमान में ये दोनों उद्यम ऐसे माध्यम हैं, जिनमें सबसे ज्यादा रोजगार के अवसर हैं, क्योंकि आजकल घरेलू उपकरण, रक्षा संबंधी, संचार व दूरसंचार सुविधाएं, हथियार और अंतरिक्ष उपग्रहों से लेकर रॉकेट और मिसाइल ऐसी ही तकनीक से संचालित हैं, जो रिमोट से संचालित और नियंत्रित होते हैं।
भविष्य में अंतरिक्ष-यात्रा (स्पेस टूरिज्म) के अवसर भी बढ़ रहे हैं। भारत में इस अवसर को बढ़ावा देने के लिए निजी स्तर पर बड़ी मात्रा में निवेश की जरूरत पड़ेगी। इस हेतु नीतियों में बदलाव की आवश्यकता लंबे समय से अनुभव की जा रही थी। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) की तकनीकों को निजी और विदेशी क्षेत्र की कंपनियों को हस्तांतरित करने की नीति पहले ही बन चुकी है। इसरो ने इस नाते कीमत वसूलकर तकनीक हस्तांतरण शुरू भी कर दिया है।
अंतरिक्ष सुधारों के तहत इसरो ने पुर्नसंशोधित प्रौद्योगिकी हस्तांतरण नीति-2020 जारी की थी। इसमें पहली बार विदेशी फर्म को भी प्रत्यक्ष रूप से इसरो ने तकनीक हस्तांतरित करने की छूट दी है। इस नीति में दोहराव से बचने और संवेदनशील पेटेंट तकनीक की सुरक्षा भी सुनिश्चित की गई है। इस सिलसिले में इसरो के अध्यक्ष के।
शिवन ने कहा था कि पहले इसरो की तकनीक केवल भारतीय कंपनियों के लिए सीमित थीं, लेकिन अब समय आ गया है कि कुछ और तकनीकों का व्यवसायीकरण किया जाए। विदेशी कंपनियों को भी अंतरिक्ष विभाग की तकनीक मुहैया कराने का फैसला इसमें मददगार साबित होगा। विदेशी कंपनियों को तकनीक देने के पीछे दो प्रमुख उद्देश्य हैं। पहला, भारत में अधिक पूंजी निवेश और प्रतिभाओं को आकर्षित करना। दूसरा लक्ष्य भारतीय उत्पादों को वैश्विक बाजार उपलब्ध कराना है। इन नीतियों से प्रतिभा पलायन भी रुकेगा।
प्रक्षेपण तकनीक दुनिया के चंद छह-सात देशों के पास ही है। लेकिन सबसे सस्ती होने के कारण दुनिया के इस तकनीक से महरूम देश अमेरिका, रूस, चीन, जापान का रुख करने की बजाय भारत से अंतरिक्ष व्यापार करने लगे हैं। हमारी उपग्रह प्रक्षेपित करने की दरें अन्य देशों की तुलना में 60 से 65 प्रतिशत सस्ती हैं। बावजूद भारत को इस व्यापार में चीन से होड़ करनी पड़ रही है। इसलिए इसमें निजी क्षेत्र की भागीदारी समय की मांग है।
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