India News(इंडिया न्यूज), Premananda Maharaj About Pregnant Woman: जब एक महिला गर्भवती होती है तो उसे नौ महीने तक कई चीजों का ध्यान रखने की सलाह दी जाती है। उसे ध्यान करने, गीता या रामायण का पाठ करने आदि के लिए कहा जाता है ताकि बच्चे में अच्छे संस्कार विकसित हो सकें। आपने गर्भ संस्कार के बारे में सुना होगा, इसमें गर्भ में ही बच्चे में सकारात्मक संस्कार डालने का प्रयास किया जाता है। गर्भवती महिलाओं के संबंध में श्री प्रेमानंद महाराज जी कहते हैं कि अगर आप एक अच्छी आत्मा को जन्म देना चाहती हैं तो गर्भावस्था के दौरान अपनी इंद्रियों को नियंत्रण में रखें।
आप जो भी करेंगी उसका सीधा असर बच्चे पर पड़ेगा। इस समय भगवान का नाम लें, पवित्र ग्रंथों का पाठ करें और भगवान की भक्ति में लीन रहें। आगे जानिए वेदों के अनुसार गर्भवती महिला को क्या करना चाहिए और किन चीजों से बचना चाहिए।
इसमें कोई संदेह नहीं है कि गर्भवती मां जो कुछ भी करती है, कहती है, सुनती है और जो भी विचार उसके मन में आते हैं, उसका सीधा प्रभाव बच्चे पर पड़ता है। अर्जुन के पुत्र अभिमन्यु ने अपनी मां के गर्भ में ही चक्रव्यूह तोड़ना सीख लिया था। इसीलिए गर्भवती महिलाओं को गर्भावस्था के दौरान सकारात्मक रहने की सलाह दी जाती है।
अनुशासन है जरूरी
अगर गर्भवती महिला का अपनी इंद्रियों पर नियंत्रण नहीं है या वह अनुशासन का पालन नहीं करती है, तो उसका बच्चा भी अनुशासनहीन पैदा होगा। जब एक महिला गर्भधारण करती है, तो उसे बच्चे के अस्तित्व के लिए खुद को शुद्ध और स्वस्थ रखना चाहिए। यह केवल अध्यात्म और सत्संग सुनने से ही हो सकता है। इसकी मदद से आप अपनी इंद्रियों को नियंत्रित कर सकते हैं।
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अगर आप चाहते हैं कि आपका बच्चा देशभक्त बने, तो आपको गर्भावस्था के दौरान देशभक्ति की कहानियाँ सुननी चाहिए। इससे आपके बच्चे में यह भावना पैदा होगी। गर्भ संस्कार आपके बच्चे में अच्छे संस्कार डालने का एक सरल और प्रभावी तरीका है।
अगर गर्भवती महिला गर्भावस्था के दौरान फिल्में देखती है, अशुद्ध या अपवित्र भोजन खाती है और गलत काम करती है, तो ये सभी आदतें उसके बच्चे में भी देखने को मिलती हैं। आजकल इस तरह का व्यवहार बहुत छोटे बच्चों में देखा जाता है। चूंकि मां ने गर्भावस्था के दौरान खुद पर नियंत्रण नहीं रखा, इसलिए बच्चे में भी बुरी आदतें विकसित होने का डर रहता है।
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गर्भवती महिला को भगवान का नाम लेना चाहिए, पवित्र ग्रंथों का पाठ करना चाहिए और नौ महीने तक भगवान की भक्ति में डूबे रहना चाहिए। आप ध्यान भी कर सकती हैं। इससे बच्चे में भी अच्छे संस्कार आते हैं।
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