बस पांच महीने राजनीतिक सूझबूझ से खेलना है
विपक्ष से ज्यादा पार्टी में करना होगा मुकाबला
सम्भवत: फरवरी अंत तक घोषित हो जाएंगे चुनाव
प्रमोद वशिष्ठ, चंडीगढ़:
Punjab Assembly Election 2022: पंजाब की राजनीति के ‘राजाभोज’ से मुख्यमंत्री की कुर्सी झटकने वाले राजनीति के हर फन में माहिर चरणजीत सिंह चन्नी के लिए सबसे बड़ी चुनौती 2022 में होने वाले विधानसभा सभा चुनाव है। अगर वे गाड़ी, बंगलों, सत्ता के सुख को नकार कर सिर्फ पांच महीने दमदार सियासी बैटिंग कर गए तो वे न केवल गांधी परिवार के आंखों का तारा बन जाएंगे बल्कि पंजाब के राजनीतिक धुरंधरों के नीचे दबी अपनी लहूलुहान उंगली को भी सफलता पूर्वक निकालने में कामयाब होंगे। ये लगभग अनुमान है कि फरवरी 2022 के अंतिम सप्ताह तक चुनाव घोषित हो जाएंगे।
इस बीच एक महीना फेस्टिवल सीजन के नाम जाएगा। बड़े कम समय में मुख्यमंत्री चन्नी को अपने राजनीतिक कौशल का परिचय देना होगा। चन्नी का ये कहना अलग बात है कि गाड़ी की पिछ्ली सीट पर बिस्तर लगे हैं और पहली बार पंजाब जैसे राज्य का मुख्यमंत्री बनने की चकाचौंध अलग बात है। चारों तरफ सत्ता के शौकीन लोगों का जमावड़ा तोड़कर लोगों में जाना कम काम नहीं। निर्णय कितने भी जारी कर दो लेकिन कहावत है, चुनाव के अंतिम वर्ष में अफसर की टेबल से फाइल सरकाना नानी याद दिला देगी। चुनावी महीनों में अफसर हवा का रुख भांप कर काम करते हैं। कहीं उनके आदेश घोषणा पत्र न बन जाएं।
अफसरी से निपटना कम टेढ़ी खीर नहीं। भले के सीएम चन्नी राजनीति के मंझे खिलाड़ी हैं, उनको चुनाव जीतने का बड़ा अनुभव है, विपक्ष के नेता भी रहे। इन सबके बीच सरकार चलाना वो भी चुनाव के चंद महीने पहले बिल्कुल अलग है। अगर वे वैतरणी पार गए तो कांग्रेस में उत्तरी भारत के बड़े नेता बन कर उभरेंगे। यहां ये भी बता दें कि पंजाब कांग्रेस में मुख्यमंत्री का सपना देखने वालो की बड़ी कतार है दूसरी तरफ किसानों के मुद्दे पर अकाली दल केंद्र में मंत्री पद ठुकरा चुका है, बसपा से समझौता है। आम आदमी पार्टी नित नए सपने दिखा रही है। भाजपा भी कुछ खेल खेलेगी। ये चुनावी चुनौतियों का हिस्सा हैं।
राजनीतिक पंडित मानते हैं कि चन्नी को मुख्यमंत्री पद कांग्रेस की राजनीतिक पासा व मजबूरी है,उनकी आगामी चुनाव में सफलता मिली तो काबिलियत की मोहर लगेगी। सिर्फ जातिगत खेल से चुनाव जीतना मुश्किल है, ऐसे तो जट सिख से पद छीना वो भी नाराज हो सकते हैं लेकिन ये सब राजनीति तक सीमित हैं,आमजन इन पर कम ही ध्यान देता है। पंजाब का ये चुनाव काम व किसान के इर्द गिर्द घूमेगा। किसने कितने काम किए ये तो लोग तौल चुके, किसान किधर जाएगा ये फैक्टर खासतौर से पंजाब में बड़ा साबित होगा। यही कारण है कि हर पार्टी टिकट के लिए 50 से ज्यादा किसान तलाश रही है।
कांग्रेस मुख्यमंत्री चन्नी को चेहरा घोषित करेगी या नहीं? ये भी बड़ा सवाल है। नवजोत सिंह सिद्धू हरफनमौला राजनीतिज्ञ हैं, उन्होंने कैप्टन अमरिंदर को कुछ नहीं समझा तो क्या वे चन्नी की छतरी के नीचे रहेंगे और भी बड़े नेता हैं, क्या वे मुख्यमंत्री के नए चेहरे का अगली पारी में भी जन्म होने देंगे ? सरकार रिपीट होती है तो वे पांच महीने की राजनीतिक मजबूरी को पांच साल आगे देंगे? ऐसे तमाम सवालों में कांग्रेस उलझी हुई है व मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी का सियासी सफर दांव पर है। लगभग पांच महीनों में सीएम चन्नी क्या काम कर पाते हैं, वे काम जनता को भाते भी हैं या नहीं, अब समय कम है लोग वादा तो नहीं चलने देंगे। दूसरा वे किसानों के पक्ष में गर्दन कटवाने की बात तो कह चुके पर अभी किसानों ने कोई प्रतिक्रिया दी नहीं। कुल मिलाकर मुख्यमंत्री चन्नी को फसल सीजन में ब्याह कर आई नई नवेली बहु की तरह मेहंदी उतरने से पहले खेत में लावणी करनी होगी, चुनाव से जूझना होगा। अगर राहुल गांधी ने उनको मंच से मुख्यमंत्री चेहरा घोषित कर दिया और वे कामयाब हो गए तो मुख्यमंत्री चन्नी पंजाब की राजनीति में स्वर्णीम अक्षरों का नया अध्याय होंगे।
दिल्ली तक वे स्टार बन जाएंगे लेकिन राह कठिन बहुत है। बहरहाल,पंजाब के इस सियासी परिवर्तन ने बहुचर्चित यूपी से पंजाब पर भी लोगों की नजरें टिका दी हैं। वर्तमान में समूचा उत्तरी भारत राजनीतिक चौपालों पर पंजाब के सीएम चन्नी व यूपी के बाबा की चर्चा में लीन है।
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