India News (इंडिया न्यूज), Dharmbir Sinha, River Day: नदियों के संरक्षण के लिए हर साल हम लोग 24 सितंबर को नदी दिवस मनाते हैं। मगर यह महज कार्यक्रमों और भाषण तक ही सिमट जाता है। शहरीकरण के इस दौर में नदियों का अस्तित्व संकट में है। भारत सरकार के केंद्रीय प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड की ओर से जारी रिपोर्ट में झारखंड की नौ नदियों की स्थिति खराब बताई गई है। इस रिपोर्ट के हिसाब से स्वर्ण रेखा और हरमू नदी झारखंड की दो सबसे प्रदूषित नदियां है। कभी रांची की लाइफ लाइन कही जाने वाली हरमू नदी का बायोकेमिकल ऑक्सीजन डिमांड 10.1 है। तो स्वर्ण रेखा नदी का बीओडी 10 है। जाहिर है कि इन नदियों का जल को पीने की बात तो छोड़िए नहाने के लिहाज से भी अब उचित नहीं है।
50 स्थान ऐसे जहां नदी का अतिक्रमण
आज हम बता रहे हैं आपको झारखंड की राजधानी रांची की दो नदियों के बारे में। जिसकी कभी कल-कल करती ध्वनि से तन मन प्राणवान बन जाता था। स्वर्ण रेखा नदी, एक ऐसी नदी है जो सोना उगलने वाली नदी के नाम से मशहूर हैं। लेकिन इन दिनों ये संकट में है। रांची के ही नगडी इलाके के रानी चूआ में स्वर्णरेखा नदी का उद्गम स्थल है। लेकिन रांची जिले के सिर्फ 25 किलोमीटर की परिधि में ही आप पाएंगे की नदी का अस्तित्व खत्म हो चुका है।कहीं नाला जैसा रूप है तो कहीं अतिक्रमण। रांची जिले में ही 50 स्थान ऐसे हैं जहां नदी का अतिक्रमण किया गया है। स्वर्णरेखा नदी अब दूषित हो चुकी है।
राज्य सरकार की तमाम योजनाओं के बाद भी नदी में पानी नहीं
आठ साल पहले गुजरात की साबरमती नदी की तर्ज पर इसे विकसित करने की योजना जरूर बनी थी। अहमदाबाद की एक कंपनी ने नदी का सर्वे कर डीपीआर भी बनाया था। पर ये परियोजना फ़ाइल से बाहर नहीं निकल पाई। इस नदी को बचाने के लिए नगर विकास विभाग ने अब तक कई बार एक्शन प्लान बनाया। उद्गम स्थल से लेकर रांची शहर के आस पास के 38 किलोमीटर क्षेत्र को तीन जोन में बांटकर जिर्णोद्धार करने के लिए करीब 300 करोड़ का प्रस्ताव भी बना पर विभाग एक कदम भी आगे नहीं बढ़ा। और अब जानिए रांची के सौंदर्य को बढ़ाने वाली हरमू नदी का हाल। ये नदी लगभग मर चुकी है। राज्य सरकार की तमाम योजनाओं के बाद भी इस नदी में पानी नहीं है। यह नदी पूरी तरह से नाले में तब्दील है। शहर के कुछ बाहरी भागों में ग्रामीणों ने जगह-जगह अवैध रूप से मिट्टी के बड़े-बड़े डैम बना दिए हैं ताकि इसमें साफ पानी इकट्ठा होता रहे। लेकिन वहां से आगे नदी सूखी हुई होती है। शहर में आने के बाद तो पानी देखने को मिलता ही नहीं है। दिखाता है तो सिर्फ कीचड़। असल में यह नाले का पानी है जो हमारे घरों के सीवर से निकलकर नदी में मिल रहा है।
हरमू नदी के सौंदरीकरण के लिए विकास विभाग ने एक कमेटी बनाई थी
रघुवर सरकार में नगर विकास मंत्रालय ने नदी के संरक्षण के लिए करीब 80 करोड रुपये खर्च किए। लेकिन पैसे की सिर्फ लूट हुई। हर दिन तिल कर नदी नाले में तब्दील होती रही। सरकार के द्वारा खर्च किए गए पैसे का कोई असर नदी पर नहीं दिखा। बताया जाता है कि उस वक्त हरमू नदी के सौंदरीकरण के लिए नगर विभाग विकास विभाग ने एक कमेटी बनाई थी इस कमेटी ने जांच के बाद योजना के डीपीआर को त्रुटि पूर्ण करार दिया था। इसके बाद भी उसी डीपीआर के आधार पर किए गए निर्माण पर 84 करोड रुपये खर्च कर दिए गए। दूसरी ओर अब तो हाल ये है की रांची में जमीन की बढ़ती कीमतों के बीच दलालों ने नदी के किनारे स्थित रेयती जमीन के साथ नदी के कैचमेंट एरिया को भी प्लाटिंग कर बेचना शुरू कर दिया है। जगह-जगह कालोनियां बस गई हैऔर नदी मर रही है।
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