Situations like Bharat Bandh Should not Arise Again and Again

ललित गर्ग

केंद्र सरकार के तीन कृषि कानूनों के खिलाफ किसान यूनियनों का भारत बंद एक बाद फिर आम जनता के लिए परेशानियों का सबब बना। हाईवे रोके गए, रेल की पटरियों पर प्रदर्शनकारियों ने रेल यातायात को अवरुद्ध किया। जनजीवन अस्त-व्यस्त हुआ, परेशानियों के बीच आम आदमी का जीवन थमा ही नहीं, कड़वे अनुभवों का अहसास बना। जो जनता को दर्द दे, उनकी परेशानियां बढ़ाए, उन्हें किस तरह लोकतांत्रिक कहा जा सकता है?

आंदोलनरत किसान संगठनों को समर्थन देने वाले राजनीतिक दल भी यह भली तरह समझ रहे हैं कि यह आंदोलन आम लोगों के साथ उद्योग-व्यापार जगत के लिए परेशानियों का कारण बन गया है, लेकिन वे अपने तथाकथित राजनीतिक लाभ के लिए परेशानी पैदा करने वाले इस तथाकथित आंदोलन को तूल दे रहे हैं।

कृषि कानूनों को लेकर किसान संगठन भले ही केंद्र सरकार से सहमत न हों, लेकिन किसानों के पक्ष को सुनने के लिए केंद्र ने अनेक कोशिशें की हैं, अवसर दिए हैं। कृषि हालांकि राज्यों का विषय है मगर केंद्र सरकार ने ये कानून व्यापार व वाणिज्य की कानून प्रणाली के तहत बनाए हैं जो कि केंद्र के अधिकार में आता है। किसानों का कहना है कि कृषि उत्पादों के व्यापार केंद्रों में जाने से पूरे कृषि व्यापार पर चंद बड़े-बड़े पूंजीपतियों व उद्योगपतियों का कब्जा हो जाएगा और भंडारण की कोई सीमा न होने की वजह से ये पूंजीपति भारी मुनाफा लेकर इनका विक्रय करेंगे। ये और ऐसी जो भी खामियों या स्थितियां किसान संगठन महसूस करते हैं, उन्हें व्यक्त करने के लिए राजमार्गों को अवरुद्ध करना कौनसी लोकतांत्रिक प्रक्रिया है? कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा भी है कि किसान आंदोलन का रास्ता छोड़कर बातचीत के रास्ते पर आएं। सरकार कृषि कानूनों पर किसानों की आपत्तियों पर विचार के लिए तैयार है। पहले भी कई बार बात हुई है। यदि कुछ बच गया है तो सरकार फिर वार्ता के लिए तैयार है। किसान आंदोलन के नाम पर राजनीति नहीं होनी चाहिए। किसान हम सभी के हैं।

जन भावना लोकतंत्र की आत्मा होती है। लोक सुरक्षित रहेगा, तभी तंत्र सुरक्षित रहेगा। लोक के लिए, लोक जीवन के लिए, लोकतंत्र के लिए कामना है कि उसे शुद्ध सांसें मिलें। लोक जीवन और लोकतंत्र की अस्मिता को गौरव मिले।

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