पूरे प्रोजेक्ट में 1400 करोड़ रुपये हुए खर्च
इंडिया न्यूज, नई दिल्ली :
Statue of Equality : थाइलैंड में दुनिया का सबसे बड़ा सिटिंग स्टैच्यू (बैठा हुआ) 302 फीट हाइट का ग्रेट बुद्धा का है। वहीं दूसरे नंबर पर भारत में भी 216 फीट ऊंचा स्वामी रामानुजाचार्य की मूर्ति हैदराबाद से 40 किलोमीटर की दूर मुचिंतल रोड पर इसे बनाया गया है। बता दें कि जिस जगह मूर्ति बनायी गयी है, उसे अब श्रीरामनगर कहा जा रहा है।
हालांकि राजस्थान के नाथद्वारा में 351 फीट ऊंची शिव मूर्ति भी तैयार हो चुकी है, लेकिन इसका लोकार्पण मार्च 2022 में है, इसके पहले फरवरी 2022 में स्वामी रामानुजाचार्य की मूर्ति का लोकार्पण प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी करने जा रहे हैं। कहते हैं कि यह दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा सिटिंग स्टैच्यू है। इस प्रोजेक्ट में 1400 करोड़ रुपये खर्च हुए हैं, सिर्फ मूर्ति बनाने में 100 करोड़ रुपये खर्च हुए हैं।
वैष्णव संप्रदाय के संत चिन्ना जीयर स्वामी और श्री रामानुजा सहस्रब्दी प्रोजेक्ट के चीफ आर्किटेक्ट प्रसाद स्थपति ने बताया कि श्री रामानुजाचार्य का जन्म 1017 में हुआ था। उनकी जन्मशताब्दी के 1000 साल पूरे होने वाले हैं। इसलिए अभी इनॉगरेशन का समय तय हुआ है। रामानुजाचार्य की मूर्ति बनाने का निर्णय साल 2014 में हुआ था।
प्रोजेक्ट पूरा होने पर लगभग आठ साल लग गए। मूर्ति के साथ ही 108 मंदिर भी बनाए गए हैं। मूर्ति में 120 किलो सोने का इस्तेमाल करते हुए आचार्य की एक छोटी मूर्ति भी तैयार की गई है। इस जगह को ‘स्टैच्यू आॅफ इक्वालिटी’ नाम दिया गया है। वैष्णव संप्रदाय के संत चिन्ना जीयर स्वामी की देखरेख में पूरे हुए इस प्रोजेक्ट पर अब तक 1400 करोड़ रुपए खर्च हो चुके हैं। (Statue of Equality)
बताया जाता है कि यह प्रोजेक्ट देखने के लिए पूर्व राष्टÑपति प्रणब मुखर्जी आए थे। अब फरवरी में मूर्ति का प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इसका लोकार्पण करेंगे। स्टैच्यू आफ इक्वालिटी की मुख्य कमेटी में एचएच चिन्ना जीयर स्वामी, अहोबिला रामानुज जीयर स्वामी, देवनाथ जीयर स्वामी और डॉक्टर रामेश्वर राव जुपल्ली शामिल हैं।
दो से 14 फरवरी 2022 तक हवन-पूजन किया जाएगा। यज्ञ में डेढ़ लाख किलो देशी घी का प्रयोग किया जाएगा। देशी घी देशभर के अलग-अलग जगहों से एकत्र किया जा रहा है। (100crores was spent only in the statue)
बताया जाता है कि मूर्ति कैसी बनेगी यह तय करने के लिए पहले 14 मिट्टी की मूर्तियां तैयार की गई थीं। यह मूर्तियां चीफ आर्किटेक्ट आनंद साईं, चीफ आर्किटेक्ट प्रसाद स्थपति ने टीम के साथ मिलकर तैयार की थी। इन 14 मूर्तियों में से चार मूर्तियां चिन्ना जीयार स्वामी और उनके एडवाइजर्स को पसंद आई थीं। (Statue of Equality)
कहा जाता है कि ये चार मूर्तियां वो थीं, जिनमें किसी की आंख तो किसी का हाथ वहीं किसी का पैर सुंदर था। स्वामी जी ने इन चार के बेस्ट पार्ट्स से पांचवीं नई मूर्ति तैयार करने का टास्क टीम को दिया था। फिर जो नई मूर्ति बनी उस पर दिसंबर 2014 में सबकी एक राय बनी थी कि वो सबको पसंद भी आई थी।
कहते हैं कि इस मूर्ति को स्टैच्यू में बदलने का टास्क रखा गया था। इसलिए बेंगलुरु में इसकी थ्रीडी स्कैनिंग की गई थी। इसका मतलब एक सॉफ्टवेयर के जरिए मूर्ति का एक मॉडल कम्प्यूटर में तैयार हुआ। शास्त्रों में शरीर के जो लक्षण बताए गए हैं, उसी हिसाब से सभी अंग बनने जरूरी भी थे। बताया जाता है कि शास्त्रों के जानकार प्रसाद स्थपति ने अपने इनपुट्स दिए और आर्किटेक्ट के साथ स्कैनिंग भी की थी। (Statue of Equality)
अब थ्रीडी स्कैनिंग के बाद मॉडल फाइनल किया गया, उसके बाद रिसर्च शुरू हुई कि इसे आखिर कहां बनवाया जाए। कहते हैं कि चीन में बड़े स्टैच्यू बने हैं। इसलिए तीन मेंबर्स की एक टीम चीन गई थी। वहां जिस कंपनी में सरदार बल्लभ भाई पटेल का स्टैच्यू बन रहा था, उससे बात नहीं बन पायी। फिर चीन की ही एक एरोसन कॉपोरिशन के साथ मूर्ति बनाने का एग्रीमेंट 14 अगस्त 2015 में हुआ।
बताया जाता है कि 2016 में कंपनी ने स्टैच्यू बनाने का काम शुरू किया। इसमें अलग-अलग पाटर््स की डिजाइन बनाने के लिए थर्मोकोल का प्रयोग किया गया। हर 15 दिन में टीम चीन में इंस्पेक्शन के लिए जाती थी। स्टैच्यू का सोल्डर तक तो काम तेजी से हुआ, लेकिन चेहरे पर आकर रुक गया। क्योंकि चेहरे और आंखों की बनावट ही सबसे आकर्षक बनाने का टास्क रखा गया था। (statue of equality news)
इस मूर्ति के चेहरे और आंखों की तस्वीरें लेकर चीफ आर्किटेक्ट तीन बार चीन गए थे। फिर 1800 बार इस मूर्ति को सही किया गया और तीन माह इसके चेहरे बनाने में लग गए। इस मूर्ति की आंखों की चौड़ाई 6.5 फीट और ऊंचाई तीन फीट रखी गई। स्टैच्यू के 1600 पीस अलग-अलग तैयार हुए। इस मूर्ति की सबसे बड़ी खासियत यह है कि इसमें कहीं पर भी वेल्डिंग का साइन नहीं दिखता है। (Statue of Equality)
चीन में जैसे-जैसे मूर्ति के पार्ट्स तैयार होते जा रहे थे, वैसे-वैसे उन्हें भारत में लाया जा रहा था। मुचिंतल के श्रीरामनगर में असेंबलिंग शुरू हुई। कहते हैं कि 18 माह में चीन की एक कंपनी ने मूर्ति तैयार की। 650 टन की मूर्ति 850 टन स्टील की इनरकोर के सहारे खड़ी है। मूर्ति में 82 फीसदी कॉपर के अलावा जिंक, टिन, सोना और चांदी लगा हुआ है।
दक्षिण में स्थित पांच मंदिरों की टीम ने विजिट की, जबकि बाकी 100 मंदिरों के 12 हजार फोटो जुटाए गए। फोटोओं का एनालिसिस करने के बाद मंदिरों में स्थापित की जाने वाली मूर्तियों के स्कैच तैयार किए गए। हर एक मंदिर पर रिसर्च किया गया और उससे जुड़ा डाटा एकत्र किया गया। इन मंदिरों को कृष्णशिला से बनाया गया। इनमें वैसी ही कारीगरी हुई, जैसे मूल मंदिर में है।
बताया जाता है कि इस मूर्ति के लिए तीन राज्य से पत्थर लाया गया था, राजस्थान के बंसी पहाड़पुर से पिंक पत्थर, भैंसलाना से काला पत्थर और आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु से काला पत्थर लाया गया था। एक खास तरह का काला पत्थर चीन से भी लाया गया था।
अलग-अलग कामों के लिए चार जगह के कारीगरों को बुलाया गया था, जिसमें माउंट आबू के कारीगर, जयपुर, तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश के कारीगर शामिल हैं। 2018 में मंरिद में लगने वाले पत्थरों की नक्काशी शुरू हुई थी। अब सभी 108 मंदिर बनकर तैयार हो चुके हैं, बस फिनिशिंग का काम चल रहा है।
बतया जाता है पूरा कैंपस दो सौ एकड़ में फैला है, जबकि स्टैच्यू साइट 40 एकड़ में है। एक म्यूजिकल माउंटेन भी लगाया गया जो चीन से आया है। इस माउंटेन के जरिए रामानुजाचार्य की लीलाओं को दिखाया गया है।
कहते हैं कि संत रामानुजाचार्य के बड़े स्टैच्यू के नीचे ही उनकी एक छोटी मूर्ति भी स्थापित की गई है। कहा जाता है कि रामानुजाचार्य 120 साल तक जिए थे। इसलिए इस मूर्ति में 120 किलो सोना लगा है। अब मूर्ति तैयार हो चुकी है है और हर दिन आचार्य का पूजन वहीं पर किया जाएगा।
मूर्ति पर जो सुनहरे रंग किया गया है,उसकी गारंटी चीनी कंपनी ने 20 साल तक की ली है। स्वामी जी के अनुसार मूर्ति का दो हजार साल तक कुछ नहीं बिगड़ेगा। मूर्ति पंचलोहा से तैयार हुई है। इसमें सोना, चांदी, तांबा, ब्रास और टाइटेनियम शामिल है। Statue of Equality in india
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