(इंडिया न्यूज़): तालिबान ने अफगानिस्तान में लड़कियों की यूनिवर्सिटी की पढ़ाई पर पूरी तरह बैन लगा दिया है। तालिबान के हायर एजुकेशन मिनिस्टर नेदा मोहम्मद नदीम ने सभी सरकारी और प्राइवेट यूनिवर्सिटीज को एक लेटर लिखा है। इसमें कहा गया है कि अगला नोटिस जारी किए जाने तक यह नियम लागू रहेगा।

इस फैसले को लेकर संयुक्त राष्ट्र (UN) ने चिंता जताई है। सेक्रेटरी जनरल एंटोनियो गुटेरेश ने कहा कि ये लड़कियों और महिलाओं के मानव अधिकारों का हनन है। वहीं, अमेरिका के सेक्रेटरी ऑफ स्टेट एंटनी ब्लिंकन ने कहा कि तालिबान को इंटरनेशनल कम्यूनिटी का मेंबर नहीं माना जा सकता

अफगानिस्तान की यूनिवर्सिटी में पढ़ाई करने वाली छात्राओं का कहना है कि तालिबान ने उस एकमात्र पुल को नष्ट कर दिया, जो हमें हमारे भविष्य से जोड़ता था। लड़कियों ने ये भी कहा कि वो पढ़ाई कर अपनी जिंदगी बदल सकती हैं, लेकिन तालिबान ने उम्मीदें तोड़ दीं।

तालिबान ने पहले भी लड़कियों की पढ़ाई छुड़वाई

बता दें कि तालिबान ने अफगानिस्तान पर कब्जा करने के बाद लड़कियों की शिक्षा पर एक बयान जारी किया था। इसमें कहा गया था कि लड़कों के स्कूल में लड़कियां नहीं पढ़ सकेंगी। उन्हें केवल महिला टीचर या बूढ़े पुरुष ही पढ़ा सकते हैं। तालिबान ने स्कूल में लड़के और लड़कियों के एकसाथ बैठने पर भी पाबंदी लगा दी थी। उनकी सेकेंडरी स्कूल की पढ़ाई पर भी बैन लगा दिया गया था।

3 महीने पहले ही महिलाओं ने दिए थे एग्जाम

तालिबान ने 3 महीने पहले ही महिलाओं को यूनिवर्सिटी के एंट्रेंस एग्जाम में बैठने की इजाजत दी थी। हजारों युवतियों और महिलाओं ने अफगानिस्तान के कई राज्यों में एग्जाम दिए थे। हालांकि यूनिवर्सिटी में विषयों के चयन को लेकर तालिबान ने प्रतिबंध लगाए थे। महिलाएं इंजीनियरिंग, इकोनॉमिक्स, साइंस और एग्रीकल्चर जैसे विषय नहीं पढ़ सकती थीं।

तालिबान को आतंकी संगठन माना जाता है

इंटरनेशनल कम्यूनिटी में तालिबान को आतंकी संगठन माना जाता है। दुनिया के कई देश इसे सरकार का दर्जा नहीं देते हैं। तालिबान ने देश में इस्लामी कानून लागू किया हुआ है। महिलाओं पर हिजाब पहनने; पार्क, जिम और स्विमिंग पूल जैसी जगहों पर न जाने जैसे प्रतिबंध लगाए हुए हैं। अब वह लड़कियों की शिक्षा को बैन करना चाहता है।

अफगानिस्तान इस्लामिक देश है 15 अगस्त 2021 को तालिबान ने इसपर कब्ज़ा किया और तालिबानी शरियत का हवाला देकर अपनी मर्ज़ी से हर चीज़ पर बैन लगाते हैं। चलिए अब आपको यहां ये बताते हैं कि शरीया कानून में महिलाओं को क्या-क्या अधिकार दिए गए हैं।

तो यहां आपको बता दें 

  • शरिया कानून में न तो औरतों के काम करने पर पाबंदी है और न ही पढ़ने पर। नबी ने भी कभी औरतों पर इतनी सख्ती नहीं की। नबी की पहली पत्नी खदीजा खुद एक बिजनेस वुमन थीं और उनकी आखिरी पत्नी आयशा तो नबी के साथ जंग पर भी जाती थी। कुरान में भी मर्द और औरत दोनों के लिए तालीम हासिल करने का हुक्म है।
  • शरियत में महिला और पुरुष में कोई फर्क नहीं है। जो अधिकार पुरुषों को हैं, वहीं महिलाओं को भी हैं।
  • इस्लाम में औरतों को काजी बनने का हक है। औरतें मर्दों के साथ जंग भी लड़ती थीं। ज्यादातर इस्लामिक किताबें पुरुषों ने लिखी हैं, इस वजह से व्याख्या भी पुरुष-केंद्रित है।
  • कुरान में केवल हिजाब की बात है, जिसका मतलब है- पर्दा। इसके बाद भी सांस्कृतिक मतभेदों की वजह से पर्दे की अलग-अलग व्याख्या हुई है। कई देशों ने हिजाब को बुर्का समझकर उसे ही अनिवार्य कर दिया है।

जब महिलाओं को शरिया ने इतने अधिकार दिए हैं तो फिर इतनी सख्ती क्यों होती है?

  • शरिया कानून महिलाओं को बराबरी का दर्जा देता है। महिलाओं पर सख्ती और अत्याचार का आधार शरिया कानून नहीं बल्कि उसकी पितृसत्तात्मक व्याख्या है। सउदी अरब में महिलाओं के लिए ड्राइविंग बैन थी। इसकी वजह शरिया कानून नहीं, बल्कि पॉलिटिकल और पितृसत्ता थी।
  • इस्लाम ने ही सबसे पहले संपत्ति में महिलाओं को हिस्सा दिया। अन्य धर्मों के मुकाबले महिलाओं को इस्लाम ने ही सबसे पहले तलाक का हक भी दिया। शादी के बाद महिलाओं को अपनी मर्जी से नाम चुनने का अधिकार भी है। पितृसत्तात्मक समाज ने अपने हिसाब से इसकी व्याख्या कर महिलाओं पर पाबंदी लगानी शुरू कर दी।

तो कुल मिलाकर इस्लाम ने भी लड़की को पढ़ाने के लिए मना बिल्कुल नहीं किया है।