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The Country’s Needs will be Met by Research in the Private Defense Industry निजी रक्षा उद्योग में अनुसंधान से पूरी होंगी देश की जरूरतें

The Country’s Needs will be Met by Research in the Private Defense Industry

प्रमोद भार्गव
वरिष्ठ पत्रकार व साहित्यकार

रक्षामंत्नी राजनाथ सिंह ने निजी क्षेत्न के रक्षा उद्योगों में अनुसंधान और निवेश की जरूरत को रेखांकित किया है। उन्होंने विशेष रूप से साइबर स्पेस से संबंधित तकनीक में विकास का आग्रह किया है। उन्होंने यह नसीहत सोसायटी आॅफ इंडियन डिफेंस मैन्युफैक्चर्स के सालाना जलसे में दी। दरअसल, वैश्विक सुरक्षा परिदृश्य में तेजी से बदलाव के कारण सैन्य उपकरणों की मांग बढ़ने की उम्मीद की जाने लगी है। अफगानिस्तान पर आतंकवादी संगठन तालिबान के कब्जे के चलते वैश्विक परिस्थितियां तेजी से बदल रही हैं।

अफगानिस्तान से अमेरिकी सेनाओं की वापसी और संयुक्त राष्ट्र के अप्रासंगिक हो जाने से ये परिवर्तन किसी भी खतरनाक मोड़ पर पहुंच जाने की आशंकाएं सामरिक विशेषज्ञों द्वारा जताई जाने लगी हैं। यही वजह है कि आज दुनिया में ऐसा कोई भी क्षेत्न नहीं है जो आतंक या अराजकता का दंश न झेल रहा हो। भारत में सैन्य उपकरणों की जरूरत इसलिए भी ज्यादा है, क्योंकि उसने पहले ही चीन से कटुतापूर्ण संबंधों के चलते और घरेलू रक्षा उद्योग को बढ़ावा देने की दृष्टि से एक सैकड़ा से भी ज्यादा रक्षा उपकरणों के आयात पर रोक लगाई हुई है। साफ है कि यदि निजी रक्षा उद्योग रक्षा उपकरणों में निवेश करके इनके निर्माण की प्रौद्योगिकी विकसित कर लेते हैं तो ये उपकरण व हथियार भारत सरकार को दूसरे देशों से खरीदने की आवश्यकता नहीं रह जाएगी।

सरकार की तय योजना के अनुसार इसी साल दिसंबर से दिसंबर 2025 तक आयात किए जाने वाले उपकरणों, हथियारों, मिसाइलों, पनडुब्बियों और हेलिकॉप्टरों का निर्माण अब भारत में ही किए जाने के प्रयास हो रहे हैं। इस मकसद की पूर्ति के लिए आगामी 5-7 साल में घरेलू रक्षा उद्योग को करीब चार लाख करोड़ रुपए के ठेके मिलेंगे। प्रधानमंत्नी नरेंद्र मोदी के आत्मनिर्भर भारत मंत्न के आह्वान के तहत रक्षा मंत्नालय अब रक्षा उत्पादन के क्षेत्न में स्वदेशी निमार्ताओं को बड़ा प्रोत्साहन देने की तैयारी में आ गया है।
दरअसल, अभी तक देश तात्कालिक रक्षा खरीद के उपायों में ही लगा रहा है, लेकिन इस परिप्रेक्ष्य में दीर्घकालिक रणनीति के अंतर्गत स्वदेशी रक्षा उपाय इसलिए जरूरी हैं, क्योंकि एक समय रूस ने हमें क्रायोजेनिक इंजन देने से मना कर दिया था। दूसरी तरफ धनुष तोप के लिए चीन से जो कलपुर्जे खरीदे गए थे, वे परीक्षण के दौरान ही नष्ट हो गए थे। पड़ोसी देश चीन और पाकिस्तान से युद्ध की स्थिति बनी होने के चलते और तालिबानी आतंक के निर्यात की आशंकाओं के चलते ऐसा अनुमान है कि भारत 2025 तक रक्षा सामग्री के निर्माण व खरीद में 1.75 लाख करोड़ रुपए (25 अरब डॉलर) खर्च करेगा। वैसे भी भारत शीर्ष वैश्विक रक्षा सामग्री उत्पादन कंपनियों के लिए सबसे आकर्षक बाजारों में से एक है। भारत पिछले आठ वर्षो से सैन्य हार्डवेयर के आयातकों में शामिल है।

इन रक्षा जरूरतों की पूर्ति के लिए अमेरिका, रूस, फ्रांस, चीन, इजराइल इत्यादि देशों पर भारत की निर्भरता बनी हुई है, जिसमें उल्लेखनीय कमी आएगी। 2015 से 2019 के बीच सऊदी अरब के बाद भारत ऐसा देश है, जिसने सबसे ज्यादा हथियारों की खरीद की है। इसके बावजूद नियंत्नक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) की रिपोर्ट से सेना के पास सभी तरह की सामग्रियों में कमी का खुलासा होता रहा है। कुछ सामानों के घटिया होने की जानकारियां भी मिलती रही हैं। चीन से खरीदी गई रक्षा सामग्रियां तो अत्यंत घटिया निकली हैं। चीन से लद्दाख सीमा पर संघर्ष के हालात के चलते भारत ने करीब 38900 करोड़ रुपए के 21 मिग, 29 जेट, 12 सुखोई लड़ाकू विमान और देसी मिसाइल प्रणाली व रडार खरीदने की स्वीकृतियां दी हैं।
इसके पहले रक्षा क्रय परिषद भी लड़ाकू विमान और हथियार खरीदने की मंजूरी दे चुकी है। फ्रांस से जिन 36 लड़ाकू राफेल विमानों की खरीद का बड़ा सौदा हुआ है, उनका आना शुरू हो गया है। भारतीय रक्षा वैज्ञानिकों को 101 उपकरणों पर लगाए गए प्रतिबंध से प्रोत्साहन मिलेगा। नतीजतन हमारे जो नवाचारी वैज्ञानिक उपग्रह प्रक्षेपण प्रणाली के लिए अत्याधुनिक मिसाइलों, उपग्रहों और क्रायोजेनिक इंजन तक का निर्माण करने में सफल हो चुके हैं, वे रक्षा संबंधी हथियार विकसित करने में भी सफल होंगे। बौद्धिक कल्पनाशीलता को पंख मिलते हैं तो हम कालांतर में इन हथियारों का निर्यात भी करने लग जाएंगे। रक्षा क्षेत्न में यह अत्यंत दयनीय स्थिति है कि ताबूत तक हमें आयात करने होते हैं, जबकि बढ़ईगीरी के इस काम में किसी प्रकार की आधुनिक व दुर्लभ तकनीक की जरूरत नहीं पड़ती है। यदि भारत रक्षा उपकरणों व हथियारों के निर्माण में आत्मनिर्भर हो जाता है तो उपग्रह प्रक्षेपण की तरह इनके निर्यात के रास्ते भी खुल जाएंगे।

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