सपनों की माया नगरी मुबंई में हर साल न जाने कितने नौजावन एक एक्टर बनने का सपना लेकर आते है . जहां कुछ लोग ही अपनी मंजिल तक पहुंच पाते है, बाकि इस माया नगरी में गुम हो जाते है. बॉलीवुड का सपना देखना जितना असान होता है उसे ज्यादा मुश्किल हिंदी सिनेमा में कामीयाबी हासील करना। कई सितारे ऐसे होते है, जिन्हे अपने रंग के कारण कई बार अपमानित होना पड़ा है, लेकिन फिर भी बॉलीवुड पर राज कर चुके है। कल्ट स्टार मिथुन चक्रवर्ती ने हाल ही में एक खुलासा किया . उन्होनें बताया की त्वचा के रंग की वजह से हिंदी सिनेमा में उन्हें कई बार अपमानित करने की कोशिश की गई थी।
यही वजह रही की मिथुन ने आज तक अपनी आत्मकथा से बार बार इंकार किया है। मिथुन का जीवन बहुत ही संघर्ष भरा रहा है और वह नहीं चाहते कि कोई भी उन यादों से गुजरे और उनके संघर्ष के दिनों को देखे। बता दें कि मिथुन ने अपनी पहली फिल्म ‘मृगया’ के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार जीता था लेकिन इसके बाद भी उनका संघर्ष कम नहीं हुआ था और उनके सांवले रंग को लेकर अक्सर उन पर खूब तंज कसे जाते थे।
अजय ने जब बॉलीवुड में एंट्री की तब लोग उनके सांवलेपन का खूब मजाक उड़ाया करते थे। अपने सावले रंग की वजह से अजय देवगन इस इंडस्ट्री को छोड़ना चाहते थे। लेकिन एक फिल्म ने अजय के कदम रोक लिए. अजय की पहली फिल्म ‘फूल और कांटे’ के बाद उन्होंने लोगों की सोच बदल दी। अजय देवगन का कहना हैं, ‘अगर आपका काम अच्छा है और आपकी पर्सनैलिटी लोगों को नजर आती है। पर्सनैलिटी लुक वाइज नहीं होती है, इसमें शामिल होता है कि आप खुद को किस तरह रखते हैं और आप किस तरह के इंसान हैं।
रेखा अपने जमाने की खूबसूरत एक्ट्रेस्स में से एक है. हिंदी सिनेमा में कदम रखने के बाद रेखा को ‘काली कलूटी’ कहकर बहुत अपमानित किया जाता था। अपने करियर के शुरुआती दौर में रेखा काफी भरे पूरे शरीर की थी और उनकी त्वचा का रंग भी आज जैसा साफ नहीं था। इस वजह से उन्हें काफी आलोचनाओं का शिकार होना पड़ा था। लेकिन, बाद में रेखा ने ऐसा मेकओवर किया कि उनको देखने वाले दंग रह गए और आलोचकों के मुंह पर ताले पड़ गए। साल 1970 में आई रेखा की पहली हिंदी फिल्म ‘सावन भादों’ उनके करियर के लिए टर्निंग पॉइंट फिल्म साबित हुई।
बिपाशा बसु की बात करें तो सांवले रंग को लेकर बिपाशा बसु को अक्सर टारगेट किया जाता था। लेकिन बिपाशा ने अपने सांवले रंग को अपनी ताकत बनाया जिस वजह से वो स्टार भी बनी। बिपाशा ने जब कोलकाता में पहली बार सुपर मॉडल का कॉन्टेस्ट जीता और न्यूज पेपर में छपा देखा कि कोलकाता की सांवली लड़की बनी विनर, तो वो हैरान रह गई कि सांवला रंग मेरी विशेषता कैसे हो सकती है?
जब मॉडलिंग में करियर की शुरुआत की, तब मुझे एहसास हुआ कि मेरे सांवले रंग को काफी पसंद किया जा रहा है और मुझे ज्यादा काम और अटेंशन मिली। जब मेरी पहली फिल्म ‘अजनबी’ आई और लोगों ने पसंद किया तब समझ में आया कि रंग रूप कोई मायने नहीं रखता है। आज भी मुझे याद है जब लोग मुझे मोटी और काली कहकर चिढ़ाते थे, तब बड़ी चिढ़ होती थी।’
प्रियंका चोपड़ा को उनके घर वाले ही काली कहकर चिढ़ाया करते थे। एक इंटरव्यू के दौरान प्रियंका चोपड़ा ने इस बात का खुलासा किया कि उनके कजिन उन्हें काली काली कहकर चिढ़ाते थे। इतना ही नहीं, जब वह अमेरिका में पढाई कर रही थीं तो उनके सांवले रंग को लेकर लोग उन्हें ब्राउनी कहकर चिढ़ाते थे। विश्व सुंदरी बनने के बाद भी उन्हें अपने सांवलेपन को लेकर रंग भेद का शिकार होना पड़ा था ।
नंदिता दास अपने सशक्त अभिनय के लिए पहचानी जाने वाली नंदिता दास कई बार अपने सांवले रंग को लेकर रंगभेद का शिकार हो चुकी हैं। एक इंटरव्यू के दौरान उन्होंने कहा कि रंगभेद को बढ़ावा देने में बॉलीवुड के गानों का भरपूर योगदान है। अक्सर गानों के बोल गोरे रंग की ओर ही इशारा करते हैं। गानों में कलाइयां हमेशा गोरी ही रही हैं। गोरा रंग काला न पड़ जाए, गोरे रंग पे ना इतना गुमान कर, गोरी तेरा गांव बड़ा प्यारा जैसे गीतों से लेकर चिट्टियां कलाइयां वे तक ऐसे कई गीत हैं, जिसे सुनकर लोगों के जेहन में खूबसूरती की परिभाषा केवल गोरा रंग होकर रह गई है।
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