India News (इंडिया न्यूज़): कभी मेट्रो, कभी बाइक, कभी कार का बोनट तो कभी चलती फिरती सड़क। चुंबन और आलिंगन के वीडियोज़ अब छिपी जगह के मोहताज नहीं रहे। हम ठहरे दूरदर्शन के ज़माने के- ‘ज़रा सी सावधानी, जिंदगी भर आसानी’ या ‘मस्ती ने बनाया हमें मर्ज़ी का मालिक’ वाले टीवी ऐड आते ही बग़ले झांकने लगते थे। मां-बाप साथ हों तो ‘निरोध’ का टीवी ऐड सभी को असहज कर देता था। आज ज़माना बदल गया है, रफ़्तार धारदार है। इंस्टाग्राम की रील का जुनून अश्लीलता की अंगड़ाई को हवा दे रहा है। 1954 यानी आज से 69 साल पहले मजरूह सुल्तानपुरी ने एक गीत लिखा जिसके बोल थे- ‘ये लो मैं हारी पिया, हुई तेरी जीत रे। काहे का झगड़ा बालम नई नई प्रीत रे’।
आज नई नई प्रीत की रीत बदल गई है, जितने चुंबन सार्वजनिक होंगे, सजग प्रेम के उतने सबूत मिलेंगे। निदा फ़ाज़ली लिखते हैं- ‘शब के जागे हुए तारों को भी नींद आने लगी, आपके आने की इक आस थी अब जाने लगी’। लेकिन मौजूदा दौर में प्रीत की लत ऐसी लागी है कि आग ही आग है, मुहब्बत का राग है, वायरल वीडियोज़ का फाग है, जैसे चुंबन की सरसों संग आलिंगन का साग है। गुलज़ार की कलम कहती है- ‘दफ़्न कर दो हमें कि सांस मिले, नब्ज़ कुछ देर से थमी सी है’। पर अब हॉरमोन हिलोरें मारते हैं, कहा थमने वाली है नब्ज़ अब।
मैं मुहब्बत का दुश्मन नहीं हूं, हो भी कैसे सकता हूं। शकील बदायुंनी के अल्फ़ाज़ का हिमायती हूं मैं कि ‘छुप न सकेगाindia n इश्क़ हमारा, चारों तरफ़ है उनका नज़ारा। पर्दा नहीं जब कोई ख़ुदा से, बंदों से परदा करना क्या’। इश्क़ में पर्दा कैसा, लेकिन इश्क़ सड़क पर बेपर्दा कर दिया जाए तो रुसवा हो जाता है। बाइक पर टांगें क्रॉस करके होठों का मिलन मुहब्बत नहीं हो सकता। दिखावे की इंस्टाग्राम रील व्यूज़ और लाइक्स तो दे सकती है, इश्क़ की मासूमियत नहीं। मुहब्बत का इज़हार गुनाह नहीं है, लेकिन अश्लीलता की चाशनी में लिपटा हुआ प्यार कब कलंक का कीचड़स्नान करने लगता है, ये अंदाज़ा भी नहीं लग पाता।
हिंदी फ़िल्मों ने क्रांतिकारी परिवर्तन किया है, रुपहले पर्दे पर भी और असल ज़िंदगी में भी। 70 के दशक की फ़िल्मों में चुंबन का एहसास कराने के लिए दो फूलों का मिलन दिखाते थे, 80 और 90 का दशक आते आते तस्वीर ब्लर होकर सीधे गाने में तब्दील हो जाती थी, फिर ‘राजा हिंदुस्तानी’ के बाद तो ‘लिपलॉक’ का सिलसिला ही चल पड़ा। ये ‘लिपलॉक’ भी बड़ा क़ातिल है, नए ज़माने में कमबख़्त प्यार का प्रमाण बना बैठा है। हमें भी स्कूल के वक़्त में इश्क़ हुआ था, तब मुहब्बत के मायने बस इतने थे कि एक दूसरे को देख कर मुस्कुरा लेते थे, बहुत पिछड़े हुए थे हम, तभी तो बिछड़े हुए थे।
अयोध्या की सरयू नदी में लड़की अश्लील डांस कर रही है, राम की पैड़ी में प्रेमी युगल गुत्थम गुत्थी कर रहा है। ऐसा करने से प्यार अमर हो या ना हो, संस्कार का डंडा आपको ज़रूर लाल करेगा। बहुत बार रील का जुनून बर्बादी की आहट बन जाता है, पंजाब में जालंधर के ‘कुल्हड़ पिज़्ज़ा कपल’ का वायरल वीडियो इसका प्रमाण है। ‘कुल्हड़ पिज़्ज़ा कपल’ सहज अरोड़ा और गुरप्रीत कौर का एक प्राइवेट वीडियो वायरल हुआ और कपल ट्रोल हो गए। लोगों ने दोनों के लिए खूब भद्दे कॉमेंट किए, नौबत जान देने की सोच तक आ पहुंची।
प्यार, इश्क़, मुहब्बत की मार्केटिंग कपल को सार्वजनिक मादक मुद्राओं के प्रदर्शन की ओर ढकेल रहा है। सोशल मीडिया को ज़रिया बना कर ‘लव’ वाला ‘लस्ट’ MUST बन चुका है। जाना, बुलबुल, बेबी, तितली, सोना, सोनू, सोना बेबी, मिट्ठू, चेरी, क्यूटी पाई की पुकार अच्छी है लेकिन ‘क्यूटी’ के साथ ‘सामाजिक ड्यूटी’ भी तो है। शायर कह गए कि ‘प्यार को प्यार ही रहने दो कोई नाम ना दो’ तो वैज्ञानिकों की नज़र में प्यार एक ‘केमिकल लोचा’ है। ‘केमिकल लोचा’ को वासना से दूर रखने के लिए संस्कार होते हैं।
संस्कार में ग़ज़ब की प्रतिरोधक क्षमता होती है जो सेक्स हार्मोन यानी टेस्टोस्टेरॉन को नियंत्रण में रखते हैं। वासना की तीव्र उत्कंठा के बाद पगला जाने की अवस्था को कभी प्यार नहीं कहा जा सकता। समय इंतज़ार करने वालों के लिए बहुत धीमा, डरने वालों के लिए बहुत तेज़ और प्यार करने वालों के लिए अनंतकालीन है। प्रेम को प्रबल बनाने वाले लैला-मजनू या शीरीं फ़रहाद बन जाते हैं और इसी प्रेम का प्रचंड अवतार आज कल रील में तब्दील हो चुका है।
मजनू को लैला नहीं मिली तो भी प्यार अमर है, साहिर को अमृता नहीं मिली तो भी प्यार जिंदा रहा। प्यार ज़िंदा रखने की चीज़ है, ज़िंदा दिखाने की नहीं। मुहब्बत में उमंग ज़रूरी है, हिलोरें भी ज़रूरी, बस भूकंप नहीं आना चाहिए। इश्क़ का ज़लज़ला रूह तक रहे तो सिमट जाता है और रील की दीवानगी तक आ जाए तो तबाह भी कर जाता है। रिश्ते में रूहानियत रखेंगे तो पर्दादारी ज़रूरी लगेगी, वासना रखेंगे तो रील मजबूरी लगेगी। गुलज़ार की कलम से निकला प्यार बहुत ख़ूबसूरत है।
‘प्यार कोई बोल नहीं, प्यार आवाज़ नहीं
एक ख़ामोशी है, सुनती है कहा करती है
ना ये बुझती है ना रुकती है ना ठहरी है कहीं
नूर की बूंद है, सदियों से बहा करती है
सिर्फ़ एहसास है ये, रूह से महसूस करो
प्यार को प्यार ही रहने दो, कोई नाम ना दो’
Read more:
India News (इंडिया न्यूज),Bihar: पूर्णिया में आपसी लड़ाई के दौरान शराब के नशे में पिकअप…
India News (इंडिया न्यूज),Delhi: गणतंत्र दिवस परेड में राजधानी दिल्ली की झांकी शामिल न होने…
India News (इंडिया न्यूज),UP News: चमनगंज क्षेत्र के तकिया पार्क के पास स्थित 1 मंदिर…
India News (इंडिया न्यूज),JDU Leaders Flagged Off Chariot: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में अब मात्र…
India News (इंडिया न्यूज),Rajasthan News: केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के बयान पर कांग्रेस हमलावर नजर…
India News (इंडिया न्यूज),Himachal Pradesh Weather: हिमाचल के निचले पहाड़ी इलाकों में कड़ाके की ठंड…