India News (इंडिया न्यूज़), MLAs Disqualification Verdict : महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे समेत शिवसेना विधायकों की अयोग्यता मामले में फैसले का बेसब्री से इंतजार आज खत्म हो गया। मई में शुरू हुई 16 विधायकों की अयोग्यता याचिका पर स्पीकर राहुल नार्वेकर आज फैसला सुनाया। स्पीकर के इस फैसले से उद्धव गुट को बड़ा झटका लगा है। फैसले के बाद उद्धव ठाकरे ने इस पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि यह लोकतंत्र की हत्या है।
स्पीकर राहुल नार्वेकर ने 1200 पन्नों के आदेश को पढ़ते हुए कहा कि इस मामले में दाखिल याचिकाओं को छह समूहों में रखा गया। विधानसभा अध्यक्ष राहुल नार्वेकर ने भी उद्धव के असली पार्टी के तर्क को खारिज कर दिया। उन्होंने कहा कि जब विद्रोही गुट बना तो उस समय शिंदे गुट ही असली शिव सेना थी।
स्पीकर का फैसला आने के बाद महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने कहा कि विधानसभा स्पीकर का यह फैसला कि 2022 में गुटों के उभरने पर एकनाथ शिंदे की सेना ही असली शिवसेना थी लोकतंत्र की हत्या है। पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा कि यह सुप्रीम कोर्ट का भी अपमान है।
फैसले को लेकर आदित्य ठाकरे की भी प्रतिक्रिया आई है। उन्होंने कहा कि हम कानूनी लड़ाई लड़ेंगे और कोर्ट जाएंगे।
उद्धव ठाकरे की पार्टी की सांसद प्रियंका चतुर्वेदी ने आरोप लगाया कि स्पीकर राहुल नार्वेकर ने मौका परस्ती दिखाई। ये फैसला दुर्भाग्यपूर्ण है। जनता ने देखा है कि किस तरह से एक पार्टी को तोड़ा गया है। वही होता है जो अमित शाह और नरेंद्र मोदी को मंजूर होता है
केंद्रीय मंत्री रामदास अठावले ने कहा, ” महाराष्ट्र विधानसभा अध्यक्ष ने जो फैसला दिया है ये फैसला नियम और कानून के मुताबिक है। 2/3 बहुमत के माध्यम से एकनाथ शिंदे के पास 37 MLA हैं इसलिए चुनाव आयोग ने भी शिंदे की शिवसेना को असली गुट माना….. उद्धव ठाकरे को बहुत झटका लगा है।”
महाराष्ट्र विधानसभा अध्यक्ष राहुल नार्वेकर ने शिवसेना विधायकों की अयोग्यता मामले में फैसला सुनाते हुए कहा कि दोनों गुटों (शिवसेना के दो गुट) द्वारा चुनाव आयोग को सौंपे गए संविधान पर कोई सहमति नहीं है। नेतृत्व संरचना पर दोनों दलों के अलग-अलग विचार हैं। एकमात्र पहलू बहुमत का है मुझे विवाद से पहले मौजूद नेतृत्व संरचना को ध्यान में रखते हुए प्रासंगिक संविधान तय करना होगा। उन्होंने कहा कि 2018 का संशोधित संविधान चुनाव आयोग के रिकॉर्ड में नहीं है। शिव सेना का 1999 का संविधान ही मान्य है। चुनाव आयोग के रिकॉर्ड में भी शिंदे गुट ही असली शिवसेना है।
उन्होंने आगे कहा कि मैनें चुनाव आयोग के फैसले को ध्यान में रखा है। चुनाव आयोग के रिकॉर्ड में भी असली शिवसेना शिंदे गुट ही है। उन्होंने फैसला सुनाते हुए कहा कि चुनाव आयोग ने भी शिंदे गुट को ही असली शिवसेना कहा है।
16 विधायकों की अयोग्यता पर फैसला सुनाते हुए विधानसभा अध्यक्ष राहुल नार्वेकर ने कहा कि शिवसेना का 1999 का संविधान सर्वोच्च है। हम उनके 2018 के संशोधित संविधान को स्वीकार नहीं कर सकते। यह संशोधन चुनाव आयोग के रिकॉर्ड में नहीं है। इस दौरान उन्होंने शिवसेना के संगठन में चुनाव का मुद्दा भी उठाया। उन्होंने कहा कि साल 2018 में संगठन में कोई चुनाव नहीं है। हमें 2018 के संगठनात्मक नेतृत्व को भी ध्यान में रखना होगा। उन्होंने कहा कि मेरे पास एक सीमित मुद्दा है और वह यह है कि असली शिवसेना कौन है. दोनों गुट असली होने का दावा कर रहे हैं।
विधानसभा अध्यक्ष ने आगे कहा कि पार्टी के संविधान के मुताबिक, उद्धव गुट सीएम शिंदे को नहीं हटा सकता। संविधान में पार्टी प्रमुख का कोई पद नहीं है। साथ ही संविधान में विधायक दल के नेता को हटाने का कोई प्रावधान नहीं है। उन्होंने कहा कि शिंदे को हटाने का फैसला राष्ट्रीय कार्यकारिणी को लेना चाहिए था। राष्ट्रीय कार्यकारिणी पर उद्धव गुट का रुख साफ नहीं है। इसके साथ ही अध्यक्ष ने 25 जून 2022 के कार्यकारिणी प्रस्तावों को अमान्य घोषित कर दिया है।
यह मामला जून 2022 में महा विकास अघाड़ी की सहयोगी पार्टी शिवसेना के विभाजन के बाद उठा, जिसके कारण उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली सरकार गिर गई और एकनाथ शिंदे को भाजपा के समर्थन से बनी नई सरकार का नया मुख्यमंत्री नियुक्त किया गया। उस राजनीतिक भूचाल के बाद, शिवसेना के दोनों गुटों ने एक-दूसरे के विधायकों के खिलाफ दलबदल विरोधी कानूनों, व्हिप के उल्लंघन आदि के तहत कार्रवाई की मांग करते हुए क्रॉस-याचिकाएं दायर की थीं।
इस बीच, चुनाव आयोग ने शिंदे समूह को मान्यता दी थी और इसे शिवसेना नाम दिया था। धनुष और तीर चुनाव चिन्ह, जबकि ठाकरे के नेतृत्व वाले गुट का नाम शिव सेना-उद्धव बालासाहेब ठाकरे रखा गया और जलती हुई मशाल चुनाव चिन्ह दिया गया।
मई में सुप्रीम कोर्ट ने स्पीकर को असली शिवसेना पर अपना फैसला देने का निर्देश दिया था और फिर उन्हें अयोग्यता याचिकाओं पर 31 दिसंबर तक अपना फैसला देने को कहा था। उस समय सीमा से कुछ दिन पहले, 20 दिसंबर को सुप्रीम कोर्ट ने अनुमति दे दी थी अपना फैसला सुनाने के लिए 10 जनवरी तक 10 दिन का विस्तार किया गया है जिसका राज्य में तुरंत और इस साल होने वाले लोकसभा और विधानसभा चुनावों पर बड़ा राजनीतिक प्रभाव पड़ सकता है। बाद में एनसीपी मामला जो जुलाई 2023 में लंबवत रूप से विभाजित होने वाला है 31 जनवरी तक संभावित फैसले के साथ आने की उम्मीद है, जिसके अपने राजनीतिक निहितार्थ होंगे।
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