INDIA NEWS (DELHI): योगी सरकार के द्वारा यूपी निकाय चुनाव के लिए ओबीसी आरक्षण का नोटिफिकेशन जारी करते ही यह कयास लगने लगा था की यह मामला फंसेगा। क्युकी यह नोटिफिकेशन बिना ट्रिपल टेस्ट फॉर्मूले के ही जारी किया गया था।
अंत में हुआ भी यही। इलाहाबाद हाईकोर्ट में तमाम अपीलें दाखिल हो गईं और कई दिनों की सुनवाई के बाद हाईकोर्ट ने इस अहम मुद्दे पर बड़ा फैसला सुना दिया।
कोर्ट ने साफ किया कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्देशित ट्रिपल टेस्ट फॉर्मूले में समय अधिक लगेगा इस लिहाज से बिना ओबीसी आरक्षण के सरकार और राज्य निर्वाचन आयोग नगर निकाय चुनाव कराएं। हाईकोर्ट का आदेश आते ही योगी सरकार ने एक अहम बयान दिया।
सीएम ने इसमें साफ कर दिया कि उत्तर प्रदेश सरकार नगरीय निकाय सामान्य निर्वाचन के परिप्रेक्ष्य में आयोग गठित करेगी और ट्रिपल टेस्ट के आधार पर OBC वर्ग के नागरिकों को आरक्षण की सुविधा उपलब्ध करायेगी।
इसके बाद ही निकाय चुनाव होंगे। योगी ने ये भी कहा कि अगर जरूरी हुआ तो उत्तर प्रदेश सरकार सुप्रीम कोर्ट में भी जाएगी।
सरकार के इस बयान से एक बात तो तय है कि उत्तर प्रदेश में निकाय चुनाव फिर लटकता दिख रहा है। तमाम विपक्षी दलों ने इस मुद्दे को फौरन अपने तरफ खींचने का प्रयास किया है।
सपा, बसपा, कांग्रेस, आदि हाईकोर्ट के आदेश का स्वागत करते नजर आए और योगी सरकार को पिछड़ी जातियों का विरोधी बोल दिया। सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने यहां तक कह दिया कि भाजपा दलितों का आरक्षण भी छीन लेगी।
उन्होंने कहा कि आज आरक्षण विरोधी भाजपा निकाय चुनाव में ओबीसी आरक्षण पर बस दिखावा कर रही है। भाजपा पिछड़ों के आरक्षण का हक छीन रही है और ऐसे ही भाजपा दलितों का आरक्षण भी छीन लेगी।
वहीं बसपा सुप्रीमो मायावती ने भी योगी सरकार को घेरते हुए ट्वीट में लिखा की हाईकोर्ट का फैसला सही मायने में “भाजपा सरकार की ओबीसी एवं आरक्षण-विरोधी वाली मानसिकता को प्रकट करता है।” कुल मिलाकर ओबीसी आरक्षण के मुद्दे पर सभी दल खुद को उनका सबसे बड़ा हितैषी साबित करने में लगे है।
फ़िलहाल, हाईकोर्ट से आए आदेश की बात करें तो जिस तरह से विपक्षी दल योगी सरकार को घेरने में लगी हैं, ऐसे में सवाल उठता है कि क्या सही में योगी सरकार से ओबीसी आरक्षण को लेकर राजनीतिक चूक हुई है ?
हमें इस मामले को समझने के लिए पहले उत्तर प्रदेश की सियासत को समझना पड़ेगा। उत्तर प्रदेश में सत्ता की डोर पिछड़ों के हाथ में ही मानी जाती है। यूपी में पिछड़ी जातियों का कुल आबादी का 53 फीसदी हिस्सा है।
90 के दशक के बाद से ओबीसी ने देश के सियासत ने बहुत तेजी पकड़ी है। उत्तर प्रदेश में कल्याण सिंह , मुलायम सिंह यादव सहित कई बड़े OBC नेता आए। आज की स्थिति ये है कि किसी भी दल में देखे तो ,वहां पिछड़ी जाति के नेताओं की हिस्सेदारी अधिक है।
योगी सरकार की ही बात करे तो दो बार से सीएम योगी आदित्यनाथ के साथ केशव प्रसाद मौर्य डिप्टी सीएम भी पार्टी का ओबीसी चेहरा है।
इस बार केशव मौर्य विधानसभा चुनाव (2022) में अपनी सीट हार गए थे। उसके बाद भी उनको डिप्टी सीएम का पद मिला। बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी भी ओबीसी हैं।
यही नहीं दलित-मुस्लिम की राजनीती कर रहीं बसपा मुखिया मायावती भी पिछड़ी जातियों को भूल नहीं पातीं। उन्होंने भी विश्वनाथ पाल काे हाल ही में प्रदेश अध्यक्ष बनाया जो OBC वर्ग से आते है।
इससे पहले प्रदेश में पार्टी के मुख्य चेहरे भीम राजभर थे। इसी तरह से अनुप्रिया पटेल की अपना दल ,संजय निषाद की पार्टी जैसी बहुत सारी पार्टियां हैं, जो अपनी पूरी सियासत सीधे तौर पर ओबीसी वोटबैंक के सहारे ही चला रहे है।
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