I.N.D.I.A Bans TV Anchors: ये कहां आ गए हम यूँ साथ लड़ते-लड़ते

India News ( इंडिया न्यूज), Pashupati Sharma, I.N.D.I.A alliance banned14 famous anchors: मीडिया का ‘ध्रुवीकरण’ कितना ख़तरनाक हो सकता है, वो लिस्ट वाले ‘रेड अलार्म’ के बजने पर भी आप नहीं समझ रहे तो ये एक बड़ी चूक हो सकती है। लोकतंत्र में संवाद की गुंजाइश ख़त्म होने लगे तो समझिए एक बड़े ख़तरे का अलार्म बज गया है, साथ बैठकर बात करने की गुंजाइश ख़त्म होने लगे तो समझिए मुश्किलें बढ़ने वाली है। गाँव की चौपाल और शहर के नुक्कड़ पर चाय के साथ चर्चा बंद होने लगे तो समझिए सामाजिक ताना-बाना बिगड़ने लगा है, एक किस्म की कट्टरता की काट अगर आप दूसरे क़िस्म की कट्टरता में ढूँढने लगें तो समझिए एक बड़ा ख़तरा आपकी तरफ़ बढ़ने लगा है।

बातचीत की गुंजाइश बने रहना ज़रूरी

आख़िर ये कहां आ गए हम यूँ साथ लड़ते-लड़ते, इंडिया गठबंधन की ओर से जारी एक लिस्ट के बाद कुछ सवाल और तल्ख़ होकर सामने आने लगे हैं, लोकतंत्र की बुनियाद जिन चार खंबों पर टिकी है, उनमें आपसी संवाद ज़रूरी है। उनमें बातचीत की गुंजाइश का बने रहना ज़रूरी है, उनमें एक दूसरे का सम्मान बचे रहना ज़रूरी है। लेकिन इंडिया गठबंधन की ‘लिस्ट’ से ये संतुलन बिगड़ता नज़र आ रहा है इंडिया गठबंधन ने 14 एंकर्स की लिस्ट जारी की है. इस प्रतिबंध का असर लगभग सभी बड़े संस्थानों के डिबेट शो पर पड़ेगा।

हर शाम चैनलों पर नफ़रत का बाज़ार सजता है

लोकतंत्र में हर चर्चा की ख़ूबसूरती उसका पक्ष और विपक्ष है, लेकिन अगर विपक्ष इस चर्चा से नदारद हो जाता है तो हम किसी भी मुद्दे की पूरी तस्वीर से वंचित रह सकते हैं, एक नागरिक के तौर पर ये एक बड़ा नुक़सान है। आख़िर ये स्थितियाँ आई क्यों ? इंडिया गठबंधन की ओर से जो दलील दी गई, पहले उसे समझिए। कहा गया कि हर शाम चैनलों पर नफ़रत का बाज़ार सजता है, और यहाँ हम नफरत के ग्राहक बन कर शामिल नहीं होना चाहते, नफ़रत के नैरेटिव से समाज कमजोर होता है, ये नफ़रत हिंसा का रूप ले लेती है और इसे इंडिया गठबंधन जारी नहीं रख सकता, मीडिया को लेकर ये नैरेटिव इंडिया गठबंधन का है और फ़ैसला भी एकतरफ़ा।

आज मीडिया बिरादरी ही दो धड़ों में बंटी नज़र आने लगी है

इंडिया गठबंधन की अपनी दलील है, कुछ लोगों की नज़र में वो सही हो सकती है, कुछ लोगों की नज़र में ग़लत लेकिन सवाल ये है कि इस तरह के एकतरफ़ा फ़ैसलों का सिलसिला अगर शुरू हुआ तो ये यहाँ कहां जाकर थमेगा। आज मीडिया बिरादरी ही दो धड़ों में बंटी नज़र आने लगी है एक धड़ा इस लिस्ट में शुमार एंकर्स पर बैन को सही ठहरा रहा है, दूसरा धड़ा इसे मीडिया की आज़ादी पर हमला बता रहा है। मीडियाकर्मियों के बीच ही एक तरह की ‘मुर्ग़ा-फाइट’ शुरू हो गई है, जिसे न तो पत्रकारिता के लिए स्वस्थ माना जा सकता है और न ही इसे लोकतंत्र की सेहत के लिए सही ठहराया जा सकता है।

चर्चा का बाज़ार गर्म है

नेशनल ब्राडकास्टर्स एंड डिजिटल एसोसिएशन ने इंडिया गठबंधन की इस लिस्ट पर आपत्ति ज़ाहिर की है, एनबीडीए के अध्यक्ष अविनाश पांडे ने इस लिस्ट को मीडिया का गला घोंटने वाला बताया है। उन्होंने कहा है कि इंडिया गठबंधन एक तरफ़ तो लोकतांत्रिक मूल्यों और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की दुहाई देता है और दूसरी तरफ़ लिस्ट जारी करता है, जो ठीक नहीं ज़ाहिर है मीडिया चैनलों के संपादकों के बीच इस लिस्ट को लेकर चर्चा का बाज़ार गर्म है। कोई राजनीतिक दल या गठबंधन आख़िर किस अधिकार के साथ कुछ एंकर्स के नाम की लिस्ट औपचारिक तौर पर जारी कर सकता है, कैसे ये फ़ैसला सुना सकता है कि हमने आपका बायकॉट किया। पवन खेड़ा जैसे नेता ये भी कह रहे हैं कि अगर इन एंकर्स के तेवर बदले तो ये प्रतिबंध हट भी सकता है।

लोकतंत्र में दरवाज़े हमेशा खुले रहते हैं

क्या मीडिया संस्थान और एंकर्स अब राजनीतिक दलों के रहमो-करम पर अपनी कार्यशैली तय करेंगे ? अपने मुद्दे तय करेंगे ? अपने प्रदर्शन का लहजा तय करेंगे? अपनी भाषा और सवाल तय करेंगे? आलोचना और आत्मालोचना के लिए लोकतंत्र में दरवाज़े हमेशा खुले रहते हैं। मीडिया के दिग्गजों को इस लिस्ट के बाद आत्मालोचना ज़रूर करनी चाहिए, लेकिन लोकतंत्र के चौथे खंबे के तौर पर अपनी अस्मिता और अपना सम्मान बनाए रखना हर पत्रकार की ज़िम्मेदारी है, हर मीडिया संस्थान की ज़िम्मेदारी है। मीडिया से जुड़े संगठन मीडिया कंटेंट को लेकर पहले भी सख़्ती दिखाते रहे हैं, सवाल उठाते रहे हैं, लेकिन मीडिया की पंचायत का फ़ैसला राजनेताओं की टोली करे, तो ये सीमाओं का दरकना ही कहा जाएगा।

लोकतंत्र की ख़ातिर चर्चा की गुंजाइश बनाए रखना बेहद ज़रूरी

देश की संसद में भी सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच तीखी नोंक-झोंक होती है, हंगामा होता है, कुछ मुद्दों पर सदन का बहिष्कार भी होता है, लेकिन शायद कोई ऐसी लिस्ट नहीं आती कि अमुक नेता अगर किसी चर्चा में शामिल होगा तो विपक्ष चर्चा में शरीक नहीं होगा, लोकतंत्र की ख़ातिर चर्चा की गुंजाइश बनाए रखना बेहद ज़रूरी है। लिस्ट बनाना आसान है, लिस्ट जारी कर देना भी आसान है लेकिन इससे देश समाज और लोकतंत्र का जिस ताने-बाने पर चोट हो रही है, उसे सहेजना बहुत मुश्किल है। इससे पहले कि हर दल लिस्ट वाले दांव-पेच में उलझ जाए, लिस्ट वाला ये हंगामा यहीं थमना चाहिए, विपक्षी गठबंधन को इस लिस्ट पर पुनर्विचार करना चाहिए और ऐसी किसी रवायत को बनने से पहले ही दफ़्न कर देना चाहिए।

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