India News (इंडिया न्यूज), चंडीगढ़: किसान संगठन पंजाब के लोगों गुमराह न करें। हर मुद्दे पर राजनीति करने वाले किसान संगठनों को अपने सवालों के जवाब जगह -जगह प्रदर्शन करने से नहीं मिलेंगे, जवाब संसद में ही मिलेंगे इसलिए किसान संगठन चुनाव लड़े और तर्कों का साथ अपनी बात संसद में रखें। यह कहना है पंजाब बीजेपी प्रदेशाध्यक्ष सुनील जाखड़ का, जिन्होंने सेक्टर -37 स्थित पंजाब बीजेपी कार्यालय में प्रेसवार्ता के दौरान किसान संगठनों को आड़े हाथों लिया।
उन्होंने ने कहा कि किसान संगठन आम आदमी पार्टी या कांग्रेस का खुलकर समर्थन करें और उनसे गारंटी ले कि वह उनके मुद्दों को संसद में उठाकर उनकी समस्याओं को हल करेंगे। किसान संगठन आज किसान नहीं अपने अहम की लड़ाई को लड़ रहे हैं, जिसका खमियाजा पंजाब के छोटे किसान, पंजाब के व्यवसायी और पंजाब के लोग झेल रहे हैं। छोटे किसान या मजदूर की समस्याओं पर क्यूं चुप हैं किसान संगठन?
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10 वर्षों में किसानों की आय हुई दोगुनी
जाखड़ बोले मोदी सरकार ने पिछले 10 साल में किसानों की आय को दोगुना कर दिखाया है। वर्ष 2014 में गेंहू और धान की एमएसपी से खरीद पर 32211 करोड़ का भुगतान हुआ, जबकि वर्ष 2024 में इस पर सरकार ने 70385 करोड़ रुपये का भुगतान किया। अभी धान की फसल खरीदना बाकी है। वर्ष 2013-14 में कृषि बजट 21900 करोड़ रुपये था, जोकि इस वित्तवर्ष 1.25 लाख करोड़ रुपये है। फर्क दिखता है लेकिन देखने के लिए नीयत साफ होनी चाहिए।
14 लाख किसान सम्मान निधि से वंचित क्यों
मोदी के नेतृत्व वाली बीजेपीसरकार ने पंजाब में लगभग 23 लाख किसानों के किसान सम्मान निधि कार्ड बनाए थे। आम आदमी पार्टी के शासन में सिर्फ साढ़े आठ लाख किसानों के कार्ड हैं और 14 लाख किसान इस योजना के लाभ से वंचित हैं। यह सिर्फ इसलिए हुआ क्योंकि सरकार किसानों का केवाईसी कराने में विफल रही। इससे पंजाब के किसानों को हर साल 900 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है। सरकार बताए कि किसानों का केवाईसी क्यों करवाया। सरकार आपके द्वार और 1076 हेल्पलाइन कब काम करेगा।
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सभी फसलों पर एमएसपी की मांग करना सिर्फ जिद्द
पंजाब के किसान गेहूं और धान का उत्पादन करते हैं, जिस पर एमएसपी प्रदान किया जाता है। किसान 23 अन्य फसलों पर एमएसपी क्यों और किस आधार पर मांग रहे हैं। यह सिर्फ जिद्द है।
चंडीगढ़ धरना देने का निर्णय किसके दवाब में बदला
चंडीगढ़ में धरने की घोषणा कर दिल्ली की तरफ चल क्यूं चले गए थे किसान संगठन, क्या दबाब था, क्या समझोता था, किस की बात सुनी? किसान सगंठनों की इसी गुटबाजी में शुभकरण सिंह की मौत हो गई, अगर किसान यूनियनें अपनी जगह नहीं बदलती तो इस नुकसान को टाला जा सकता था। किसान संगठनों की गुटबाजी से लोगों का किसान आंदोलन के प्रति विश्वास कम हुआ है।
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