India News MP (इंडिया न्यूज़), Sapinda marriage: ऐसा विवाह जिसमें लोग अपने करीबी रिश्तेदारों से विवाह करते हैं उसे सपिंड विवाह कहते है। भारतीय हिंदू विवाह अधिनियम के तहत ऐसे विवाह वैध नहीं माने जाते। सपिंड का मतलब है एक ही परिवार के लोग, जो एक ही पूर्वजों का पिंडदान करते हैं। आजादी के बाद साल 1950 में भारत का संविधान लागू हुआ। जिसके तहत हर नागरिक को कुछ मौलिक अधिकार दिए गए। जिसमें कोई भी वयस्क पुरुष और महिला अपनी मर्जी से किसी भी जाति, धर्म में विवाह कर सकते हैं, लेकिन कुछ मामलों में विवाह अभी भी संभव नहीं है, जैसे सपिंड विवाह।

सपिंड विवाह क्या है?

सरल शब्दों में कहें तो सपिंड विवाह का मतलब है एक ही पिंड का विवाह। हिंदू विवाह अधिनियम 1955 की धारा 3(f)(i) के अनुसार, कोई हिंदू व्यक्ति माता की ओर से अपने से तीन पीढ़ियों के भीतर के व्यक्ति से विवाह नहीं कर सकता। पिता की ओर से यह कानून पांच पीढ़ियों पर लागू होता है। इसका मतलब यह है कि कोई व्यक्ति अपनी मां की तरफ से अपने भाई-बहन (पहली पीढ़ी), अपने माता-पिता (दूसरी पीढ़ी), अपने दादा-दादी (तीसरी पीढ़ी) या किसी ऐसे व्यक्ति से विवाह नहीं कर सकता, जिसकी तीन पीढ़ियां एक ही वंश से आती हों।

सपिंड विवाह से किसे छूट है?

सपिंड विवाह में प्रथा के अनुसार छूट है, जो समाज में आज भी मान्य है। यानी अगर किसी समाज या परिवार में इस तरह की शादियां होती रही हैं तो वह इस प्रावधान में वैध है। सपिंड विवाह के साथ-साथ भारतीय समाज के एक बड़े हिस्से में एक ही गोत्र में विवाह करना भी अवैध है। वे इसके पीछे आनुवंशिक विकारों का तर्क देते हैं कि इस तरह की शादियों से पैदा होने वाले बच्चे आनुवंशिक विकारों या विकलांगताओं के साथ पैदा होते हैं।

इससे जुड़े नियम और कानून

अगर कोई विवाह सपिंड विवाह होने के कारण धारा 5 (v) का उल्लंघन करता पाया जाता है और कोई भी स्थापित परंपरा इस आचरण की अनुमति नहीं देती है तो उसे अमान्य घोषित कर दिया जाएगा। इसका मतलब यह होगा कि शादी शुरू से ही अमान्य थी और इसे ऐसे माना जाएगा जैसे कि वह कभी हुई ही न हो। ऐसी शादी करने पर सजा और दंड का भी उल्लेख है। इसमें 1 महीने की सजा या 1000 रुपये तक का जुर्माना हो सकता है।

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