India News (इंडिया न्यूज), Women’s Day Special: मध्यप्रदेश के आगर मालवा में जब अपनों ने ही बुजुर्गों का साथ छोड़ दिया, तब एक महिला ने उनका हाथ थामा। यह कहानी है मीना की, जिन्होंने बेसहारा वृद्धजनों के लिए अपनाघर वृद्धाश्रम की स्थापना की। महिला दिवस के इस खास मौके पर हम आपको एक ऐसी प्रेरणादायक महिला से परिचित करवा रहे हैं, जो बुजुर्गों के लिए न केवल सहारा बनीं बल्कि उन्हें एक नया परिवार भी दिया।
आज के समय में लोग अपने कामकाज में इतने व्यस्त हो चुके हैं कि वे अपने माता-पिता की देखभाल तक नहीं कर पाते। कई मामलों में बुजुर्गों को उनके घर से निकाल दिया जाता है या फिर वे अकेलेपन का शिकार हो जाते हैं। ऐसे में मीना ने इन जरूरतमंद बुजुर्गों की मदद करने का फैसला किया। उज्जैन निवासी मीना ने आगर मालवा में अपनाघर वृद्धाश्रम की शुरुआत की, जहां बेसहारा वृद्धों को न केवल छत मिली, बल्कि प्यार और सम्मान भी मिला।
Women’s Day Special
मीना बताती हैं कि उन्हें इस नेक काम की प्रेरणा राजेश खन्ना अभिनीत फिल्म “अवतार” से मिली। बचपन में स्कूल जाते समय जब वे सड़क किनारे बुजुर्गों को भटकते देखती थीं, तभी उन्होंने तय कर लिया था कि जब सक्षम होंगी, तो ऐसे लोगों की मदद करेंगी। आज उनका सपना पूरा हो गया और अपनाघर के रूप में उन्होंने बुजुर्गों को एक सुरक्षित और सुखद जीवन दिया।
इस आश्रम में रहने वाले देवीप्रसाद मिश्रा की कहानी दिल को छू लेने वाली है। उनकी तीन बेटियां हैं, लेकिन शादी के बाद वे अकेले हो गए। पत्नी का निधन हुआ तो जिंदगी और कठिन हो गई। बेटियों के घर जाकर रहना भी संभव नहीं था, इसलिए उन्होंने अपना घर छोड़ दिया। भटकते-भटकते जब वे अपनाघर पहुंचे, तो मीना ने उन्हें बेटी की तरह सहारा दिया। अब उन्हें यहां एक परिवार का सुख मिल रहा है। रामचंद्र जायसवाल की उम्र 70 साल हो चुकी है, लेकिन उनके जीवन में भी अकेलापन था। संतान नहीं होने के कारण रिश्तेदारों के सहारे जी रहे थे। जब उन्हें अपनाघर के बारे में पता चला, तो वे यहां आ गए। अब वे संतोष के साथ अपना जीवन व्यतीत कर रहे हैं।
उनके लिए लिए यह सफर आसान नहीं था। सरकारी नियमों के चलते अभी तक वृद्धाश्रम को कोई सहायता नहीं मिली है, लेकिन फिर भी वे स्थानीय लोगों की मदद से इस नेक कार्य को आगे बढ़ा रही हैं। उनके परिवार ने भी हमेशा उनका समर्थन किया है।
एक महिला होकर मीना ने जो काम किया है, वह हर किसी के लिए प्रेरणा है। घर-परिवार से दूर रहकर बुजुर्गों की सेवा करना आसान नहीं, लेकिन उनकी इच्छाशक्ति और समर्पण ने यह साबित कर दिया कि सच्ची सेवा से बड़ा कोई धर्म नहीं। मीना न केवल महिला सशक्तिकरण की मिसाल हैं, बल्कि समाज के लिए भी एक प्रेरणा हैं।
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