Mahakumbh

Mahakumbh 2025: महाकुंभ के बाद किस ओर चले जाते है सभी नागा साधु? 108 रुद्राक्ष धारण करने वाले बाबा ने बताया हर एक जगह का नाम!

India News (इंडिया न्यूज़), Mahakumbh 2025: महाकुंभ का समय जब समाप्त होता है, तो अक्सर यह सवाल उठता है कि इसके बाद नागा संत कहां जाते हैं और उनकी दिनचर्या क्या होती है। इस सवाल का जवाब दिया है महाकुंभ के एक रुद्राक्ष बाबा चैतन्य गिरी ने, जिन्होंने इस बारे में अपने विचार साझा किए।

रुद्राक्ष बाबा चैतन्य गिरी का दृष्टिकोण

रुद्राक्ष बाबा ने इंडिया टीवी से खास बातचीत में कहा कि कुंभ के बाद हर नागा अपनी मंजिल की ओर बढ़ता है। कुछ हिमालय की ओर निकल जाते हैं, कुछ सतपुड़ा, द्रोणागिरी, और किष्किंधा की तरफ जाते हैं। यह जगहें उनके लिए साधना और तपस्या के स्थान होती हैं, जहां वे अपने तप और साधना में लगे रहते हैं।

रुद्राक्ष बाबा ने यह भी बताया कि नागा संत सनातनी होते हैं और उनके जीवन में तीन ऋतुएं – सर्दी, गर्मी और बारिश – होती हैं। वे इन तीनों ऋतुओं को समान भाव से स्वीकार करते हैं, क्योंकि उनका मानना है कि जैसे इन ऋतुओं में प्रकृति का संतुलन होता है, वैसे ही हमारे अंदर भी संतुलन होना चाहिए। वे यह मानते हैं कि किसी भी कार्य में संलग्न होने से पहले, चाहे वह तपस्या हो या नौकरी, आत्मिक संतुलन और समर्पण की आवश्यकता होती है।

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नागा बाबा की वेशभूषा और उनका संदेश

रुद्राक्ष बाबा ने अपनी वेशभूषा के बारे में बताया कि ये वस्त्र उनके आभूषण हैं। जैसे आम लोग पैंट-शर्ट पहनते हैं, वैसे ही नागा संतों के वस्त्र होते हैं। उनके अनुसार, नागा संतों का वस्त्र उनके तप और साधना का प्रतीक होता है। नागा संत अपने जीवन को संतुलित और तपस्वी तरीके से जीते हैं, और उनका वस्त्र उनकी साधना और साधारणता का प्रतीक है।

रुद्राक्ष बाबा ने यह भी कहा कि जैसे देवताओं के पास अपनी विशिष्ट पहचान होती है, जैसे कार्तिकेय को सेनापति, गणेश को गणाध्यक्ष और शनि देवता को न्याय का देवता माना जाता है, वैसे ही नागा संत धरती के पुत्र होते हैं, जो अपने आचार-व्यवहार और साधना से पृथ्वी पर धर्म और सत्य का प्रचार करते हैं।

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नागा संतों का नग्न रहना: महंत आशुतोष गिरी का व्याख्यान

महंत आशुतोष गिरी ने इस सवाल का जवाब दिया कि क्यों नागा संत नग्न रहते हैं। उन्होंने बताया कि अखाड़े के नियमों के अनुसार, जैसे व्यक्ति जन्म के समय बालक जैसा होता है, वैसे ही नागा संत भी अपनी साधना में इसी स्वरूप में आते हैं। उनका जीवन संसार के मोह-माया से मुक्त होता है। वे अपने शरीर को पूरी तरह से त्याग देते हैं और इसे पूरी तरह से भगवान को अर्पित कर देते हैं। इस प्रकार, उनका नग्न रहना उनके पूर्ण त्याग और साधना का प्रतीक होता है।

महंत ने बताया कि अखाड़े में हर नागा संत का 17 पिंडदान होता है, जिसमें 8 पिंडदान जन्म के पहले और 8 जन्म के बाद के होते हैं। इसके अलावा एक पिंडदान स्वयं का भी होता है, जो उनके आत्मत्याग और संसार से विमुक्त होने का प्रतीक है। इसके माध्यम से वे खुद को भगवान के चरणों में समर्पित कर देते हैं, और इस स्थिति में वे संसार के लिए मृत होते हैं।

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नागा संतों का जीवन समर्पण, तपस्या और साधना से भरा होता है। महाकुंभ के बाद उनकी यात्रा और जीवन के नियम इस बात का प्रतीक हैं कि वे संसार की भौतिक वस्तुओं से परे हो कर आत्मिक शांति की ओर अग्रसर होते हैं। उनके जीवन में त्याग, साधना और संतुलन की भावना प्रमुख है, और यह उनके वस्त्र, वेशभूषा और नग्नता के रूप में परिलक्षित होता है।

Prachi Jain

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