India News (इंडिया न्यूज), Mahakumbh 2025: महाकुंभ-2025 की शुरुआत हो चुकी है। संगम नगरी प्रयागराज में सनातन का यह सबसे बड़ा धार्मिक आयोजन उत्साह और आस्था की एक अलग ही छटा बिखेर रहा है। इस समय प्रयागराज भारत की आध्यात्मिक चेतना की नगरी बन चुका है, जिसे देखने के लिए देश ही नहीं बल्कि विदेशों से भी श्रद्धालुओं के जत्थे यहां पहुंचे हैं। हम आपको जानकारी के लिए बता दें कि, कुंभ मेला भारत का वह धार्मिक आयोजन है, जिसका उल्लेख वेदों की ऋचाओं और पुराणों की कथाओं में मिलता है। इस दौरान होने वाली अलग-अलग गतिविधियों के बीच जो चीज सबसे ज्यादा ध्यान खींचती है, वह है यहां आने वाले अखाड़ों की दैनिक गतिविधियां।
इस वक्त अखाड़ों के नागा साधुओं की कई खबरें देखने को मिल रही है। अखाड़ों के नागा साधुओं के बारे में अधिक से अधिक जानने की हमेशा से रुचि रही है। अगर हम इतिहास के पन्नों को पलटे तो हमें पता चलता है कि, नागा साधु सिर्फ योगाभ्यास करने वाले पुजारियों का समूह नहीं हैं, बल्कि वे अपने आप में एक शक्तिशाली सैन्य संगठन हैं। वे एक हाथ में रुद्राक्ष की माला धारण करते हैं तो जरूरत पड़ने पर उसी हाथ से हथियार उठाने से भी पीछे नहीं हटते हैं।
अगर हम भारतीय इतिहास के पन्नों को पलटें तो पाएंगे कि कंपनी प्रशासन और ब्रिटिश राज से पहले भी इस देश ने कई बार बाहरी आक्रांताओं और आक्रमणकारियों के हमलों का सामना किया है। इन हमलावरों ने न सिर्फ शहरी और ग्रामीण व्यवस्था को तहस-नहस किया बल्कि इस देश की आध्यात्मिक आत्मा को भी चोट पहुंचाई, जिसमें प्राचीन काल से स्थापित बड़े मंदिर और मठ भी उनके निशाने पर बने। इतिहासकार यदुनाथ सरकार ने ऐतिहासिक तथ्यों का हवाला देते हुए कई आक्रमणकारियों का जिक्र किया है, जिन्होंने मंदिरों और मठों पर हमला किया और फिर उनके रक्षक के रूप में प्रसिद्ध अखाड़ों का सामना किया।
विदेशी आक्रांताओं से मंदिरों और मठों को बचाने के लिए नागा साधुओं ने हथियार उठाए और एक सेना की तरह इन हमलों का सामना किया। अगर हम ऐतिहासिक दस्तावेजों को खंगालते हैं तो ये तथ्य मिलते हैं कि, नागा साधुओं ने धर्म की रक्षा के लिए अपनी जान जोखिम में डाली। इसके अलावा पत्रकार और लेखक धनंजय चोपड़ा अपनी पुस्तक ‘भारत में कुंभ’ में लिखते हैं कि, नागा साधुओं ने बाहरी आक्रमणकारियों से संघर्ष किया है। इनमें से तीन आक्रमण और संघर्ष बहुत प्रसिद्ध रहे और इतिहास में विस्तार से दर्ज हैं। पहला आक्रमण 1260 में गुलाम वंश की सेना (ऐबक की सेना) का था, दूसरा संवत 1721 में औरंगजेब की सेना से संघर्ष और फिर 1756-57 में अब्दाली की सेना से संघर्ष।
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