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जानिए राजीव गांधी हत्याकांड के दोषी एजी पेरारिवलन के बारे में

India News Desk • LAST UPDATED : May 19, 2022, 5:55 pm IST

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इंडिया न्यूज, नई दिल्ली:
सुप्रीम कोर्ट ने गत 18 मई को देश के पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी हत्याकांड के दोषी एजी पेरारिवलन को 31 साल बाद रिहा करने का आदेश सुनाया। क्योंकि इस हत्या में पेरारिवलन सहित सात लोग शामिल थे, जिसमें पेरारिवलन का अह्म रोल था। तो आइए जानते है मात्र 19 साल का लड़का पेरारिवलन ने कैसे रची उस समय देश के पीएम की हत्या की साजिश, हत्या के दौरान कौन से बमों का किया इस्तेमाल, फांसी की सजा क्यों बदल गई उम्रकैद में अब क्यों मिली रिहाई।

किस अनुच्छेद के तहत कोर्ट ने सुनाया फैसला

Former PM Rajiv Gandhi
Former PM Rajiv Gandhi

ज्ञात होगा कि 21 मई 1991 को एक चुनावी रैली के दौरान तमिलनाडु में एक आत्मघाती हमले में पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या कर दी गई थी। इसमें एजी पेरारिवलन सहित सात लोगों को दोषी पाया गया था। बता दें जिस समय पेरारिवलन गिरफ्तार हुआ था, वह मात्र 19 साल का था। बीते बुधवार को सुप्रीम कोर्ट ने एजी पेरारिवलन को रिहा करने के लिए अनुच्छेद 142 के तहत मिले विशेषाधिकार के तहत फैसला सुनाया है।

पेरारिवलन का इतिहास

पेरारिवलन को लोग अरिवु भी कहते हैं। वह तमिलनाडु के एक छोटे कस्बे जोलारपेट का रहना वाला है। एजी पेरारिवलन उर्फ अरिवु तमिल कवि कुयिलदासन का बेटा है। पेरारिवलन के पिता एक स्कूल में टीचर थे। स्कूली दिनों से ही वो लिबरेशन टाइगर्स आफ तमिल ईलम से प्रभावित था। 21 मई 1991 को जब श्रीपेरंबदूर की एक रैली में राजीव गांधी की हत्या हुई।

बताते हैं कि राजीव गांधी की हत्या के 20 दिन बाद ही पेरारिवलन गिरफ्तार हुआ था और उस पर दो आरोप भी लगे थे। पहला उसने 9 वोल्ट की दो बैटरियां खरीदकर हत्याकांड के मास्टरमाइंड लिबरेशन टाइगर्स आॅफ तमिल ईलम के सिवरासन को दी थी, जिनका इस्तेमाल बम बनाने में हुआ। दूसरा, राजीव गांधी की हत्या से कुछ दिन पहले सिवरासन को लेकर पेरारिवलन दुकान पर गया था और वहां गलत पता बताकर एक बाइक खरीदी थी। पेरारिवलन की गिरफ्तारी से उसके परिवार को बड़ा झटका लगा था।

जेल में की पढ़ाई

राजीव गांधी हत्याकांड के मामले में 28 जनवरी 1998 को टाडा कोर्ट ने पेरारिवलन समेत 26 लोगों को मौत की सजा सुनाई। 11 मई 1999 को सुप्रीम कोर्ट ने पेरारिवलन, नलिनी, मुरुगन और संथान सहित चार की मौत की सजा को बरकरार रखा। वहीं तीन अन्य आरोपियों की सजा को उम्रकैद में बदल दिया। साथ ही 19 अन्य दोषियों को रिहा कर दिया गया था।

बताया जाता है कि पेरारिवलन ने सजा के 31 साल पुजहल और वेल्लोर की सेंट्रल जेल में बिताए। इसमें से 24 साल तो उसने कालकोठरी में बिताए, जहां वो अकेला होता था। जेल में रहते हुए पेरारिवलन ने इंदिरा गांधी नेशनल ओपन यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएशन, पोस्ट-ग्रेजुएशन पूरा किया। इसके अलावा आठ से ज्यादा डिप्लोमा और सर्टिफिकेट कोर्स किए।

बेटे को रिहा कराने में मां का संघर्ष लाया रंग

  • फांसी से ठीक पहले लगी थी रोक

1999 में सुप्रीम कोर्ट से फांसी की सजा होने के बाद पेरारिवलन के पास बहुत कम विकल्प बचे थे। उसने 2001 में एक दया याचिका राष्ट्रपति को सौंपी, जिसे 11 साल बाद राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने खारिज कर दिया। 9 सितंबर 2011 को फांसी का दिन मुकर्रर हुआ।

AG Perarivalan 2
AG Perarivalan

उधर पेरारिवलन की मां को शव ले जाने के लिए चिट्ठी भी लिख दी गई। लेकिन फांसी से ठीक पहले तमिलनाडु की तत्कालीन सीएम जयललिता ने एक प्रस्ताव पारित कर दिया, जिसमें दोषियों की मौत की सजा कम करने की मांग की। इसके बाद मद्रास हाईकोर्ट ने फांसी के आदेश पर रोक लगा दी।

  • पेरारिवलन को नहीं पता था बैटरी का यूज बम बनाने में होगा

2013 में सीबीआई के अधिकारी टी त्यागराजन ने खुलासा किया कि उन्होंने पेरारिवलन का कबूलनामा बदल दिया था। दरअसल पेरारिवलन को नहीं पता था कि उसकी बैटरी का इस्तेमाल राजीव गांधी की हत्या के लिए बम बनाने में किया जाएगा। सीबीआई अधिकारी ने कोर्ट में हलफनामा भी दाखिल किया।

  • 2014 में फांसी की सजा उम्रकैद में बदली

सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस टीएस थॉमस ने 2013 में कहा कि 23 साल जेल में रखने के बाद किसी को फांसी देना सही नहीं होगा। ये एक अपराध के लिए दो सजा देने जैसा होगा। 2014 में सुप्रीम कोर्ट ने मौत की सजा को उम्रकैद में बदल दिया।

फरवरी 2014 में पेरारिवलन की मां अरपुतम ने तमिलनाडु की तत्कालीन मुख्यमंत्री जे जयललिता से चेन्नई में मुलाकात की थी। इसके बाद ही जयललिता ने फांसी की सजा पर रोक का प्रस्ताव पारित किया। फरवरी 2014 में पेरारिवलन की मां अरपुतम ने तमिलनाडु की तत्कालीन मुख्यमंत्री जे जयललिता से चेन्नई में मुलाकात की थी।

  • आर्टिकल 142 के इस्तेमाल से रिहाई मिली

इसके बाद ही जयललिता ने फांसी की सजा पर रोक का प्रस्ताव पारित किया। इसके बाद पेरारिवलन ने सजा माफ करने के लिए तमिलनाडु के राज्यपाल के पास दया याचिका दायर की। जो पिछले 7 सालों से पेंडिंग पड़ी थी। आखिरकार सुप्रीम कोर्ट ने आर्टिकल 142 का इस्तेमाल करते हुए पेरारिवलन को रिहा कर दिया।

  • बहनों के पैसों से मां ने केस लड़ा

ओपेन मैगजीन को पेरारिवलन की मां अर्पुतम अम्मल बताती हैं, ‘शुरुआत में हमें नहीं पता था क्या करना है। पुलिस, कानून, कोर्ट सब नए थे, लेकिन धीरे-धीरे इसकी आदत पड़ गई। अरिवु की दोनों बहनें कमाती थीं और उस पैसे से मैं केस लड़ती रही।

पेरारिवलन नॉर्मल जिंदगी जिए : जस्टिस केटी थॉमस

पेरारिवलन को 1999 में मौत की सजा सुनाने वाली बेंच के प्रमुख जस्टिस केटी थॉमस भी चाहते हैं कि अब वो नॉर्मल और खुशहाल जिंदगी जिए। उन्होंने कहा, ‘इतनी लंबी कानूनी लड़ाई और 50 साल की उम्र में रिहाई पर क्या कहूं। उसे जल्दी शादी करनी चाहिए। खुशहाल जिंदगी जीनी चाहिए। मैं पूरा क्रेडिट उसकी मां को देना चाहता हूं, क्योंकि वो डिजर्व करती है।’

मेरी मां के संघर्ष की जीत: पेरारिवलन

सुप्रीम कोर्ट के फैसला आने के बाद पेरारिवलन का कहना था , ‘इस केस की ईमानदारी ने उसे और उसकी मां को तीन दशकों तक लड़ने की ताकत दी। ये जीत उसके संघर्ष की जीत है। मैं अभी बाहर आया हूं… अब खुली हवा में सांस लेना है।’

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