India News (इंडिया न्यूज), Rajasthan Election: राजस्थान के इस बार के विधानसभा चुनाव (Rajasthan Election) में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ पिछले चुनावों के मुकाबले ज्यादा सक्रिय दिखाई दे रही है। इस बार चुनाव से पहले बीजेपी के राष्ट्रीय संघटन महामंत्री बी एल संतोष के दौरे हो चुके। बीजेपी का प्रदेश नेतृत्व संघ के प्रदेश पदाधिकारियों के साथ कई बैठकें कर चुका है। संघ के राजस्थान में तीनों प्रांतों के साथ समन्वय बैठकें हुई हैं। और बीजेपी की ओर से उठाए जाने वाले मुद्दों पर भी संघ का असर दिख रहा है।
राजस्थान में संघ के तीन प्रांत हैं जयपुर, जोधपुर और चित्तौड़गढ़ और प्रधानमंत्री की पिछली तीन सभाएं इन्हीं तीन स्थानों पर हुई हैं। पहले 25 सितम्बर को जयपुर में, फिर 2 अक्टूबर को चित्तौड़गढ़ में और इसके बाद 5 अक्टूबर को जोधपुर में मोदी की सभाएं हुई। तीनों ही स्थानों का अपना राजनीतिक महत्व है। जयपुर में परिवर्तन यात्रा की समाप्ति की सभा थी। चित्तौडगढ पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष सीपी जोशी का संसदीय क्षेत्र है और दक्षिण राजस्थान के लिए अहम है। वहीं जोधपुर पश्चिमी राजस्थान के राजनीति इसलिए अहम है और सीएम अशोक गहलोत का गृह नगर है ।
सूत्रों के अनुसार इस बार संघ की बढ़ी सक्रियता के पीछे दो-तीन बड़े कारण प्रमुख तौर पर बताए जा रहे हैं। जैसे जब तक पार्टी और सरकार पर पूर्व सीएम वसुंधरा राजे का वर्चस्व रहा, तब तक संघ ने खुद की भूमिका सीमित कर रखी थी क्योकि राजे और संघ के सम्बन्ध बहुत सही नहीं रहे हैं। 2003 के बाद के चुनाव ऐसे ही थे। इस बार उनको पार्टी राजे के वर्चस्व से मुक्त दिख रही है। राजस्थान में कांग्रेस सरकार के समय जिस तरह की साम्प्रदायिक घटनाएं सामने आई हैं और संघ के प्रमुख पदाधिकारी तक को भ्रष्टाचार के एक कथित मामले में घसीट लिया गया, जिसमे राजे समर्थक का नाम सामने आया उसे देखते हुए भी संघ यहां सत्ता परिवर्तन चाहता है।
राजस्थान में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की अच्छी उपस्थिति है। उत्तरी राजस्थान के कुछ जिलों को छोड़ दे तो प्रदेश के ज्यादातर हिस्सों में संघ काफी सक्रिय है। हालांकि चुनाव में संघ की सक्रियता कुछ सीटों तक ही सीमित रहती आई है। बीजेपी के सूत्र कहते हैं। वैसे तो बीजेपी के सभी कार्यकर्ता मूल रूप से संघ परिवार से ही जुडे हुए हैं। लेकिन पिछले चुनावों में संघ का प्रदेश नेतृत्व इतना सक्रिय नहीं रहा है। जितना इस बार दिख रहा है। वही खुद गहलोत सरकार ने अपने निर्णयों से बीजेपी और संघ को तुष्टीकरण और हिंदू त्योहारों पर जो आदेश जारी किए गए बैठे बिठाए मुद्दा थमाया है, लेकिन पार्टी इसे पुरजोर ढंग से उठा रही है। जो सीधे तौर पर संघ का एजेंडा भी माना जाता है।
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