इतिहासकार डॉ. सैयद लियाकत हुसैन ने इस विवाद पर प्रतिक्रिया दी है। उनका कहना था कि दरगाह के मामले को ‘अढ़ाई दिन के झोपड़े’ से जोड़ने से कन्फ्यूजन पैदा हो सकता है। उन्होंने यह भी कहा कि भारतीय संस्कृति में ऐसे निशान आम हैं, और कई मंदिरों के गुंबद भी दरगाह के गुंबदों से मिलते हैं। डॉ. हुसैन का कहना था कि गुंबद और मीनार का आर्किटेक्चर भारतीय संस्कृति का हिस्सा है और इसे हिंदू-मुसलमान विवाद से जोड़ने की बजाय आने वाली पीढ़ी को इसे एक सामान्य संस्कृति के रूप में देखना चाहिए। इस विवाद ने धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से दोनों समुदायों के बीच और चर्चाएं शुरू कर दी हैं। अजमेर से संवाददाता विष्णु शर्मा की रिपोर्ट
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