India News RJ (इंडिया न्यूज़), Bundi News:    छोटी काशी बूंदी को पर्यटन नगरी के रूप में जाना जाता है। लेकिन त्योहार पर बूंदी में एक अलग ही परंपरा देखने को मिलती है। जिले के नैनवा कस्बे में लोग पटाखा युद्ध की परंपरा निभाते हैं और एक दूसरे पर पटाखे फेंककर दिवाली मनाते हैं। दोनों तरफ से एक दूसरे पर पटाखे फेंके जाते हैं, हालांकि इस दौरान कई युवा घायल भी हो जाते हैं। यह परंपरा 45 साल पुरानी है। जहां इस बार भी ये परंपरा राजस्थान के बूंदी जिले में देखने को मिली

आधा दर्जन से ज्यादा युवा घायल

इस बार भी आधा दर्जन से ज्यादा युवा घायल हो गए। वहीं, इस आतिशबाजी के दौरान आसमान में तेज धमाके गूंजते रहे। एक बार तो ऐसा लगा कि दो गुटों में संघर्ष हो रहा है, लेकिन ऐसा नहीं है, यह महज एक परंपरा है जो सालों से चली आ रही है।

‘पटाखा युद्ध’ में कई घायल

जानकारी के अनुसार, नैनवा में दिवाली के दिन जब गांव में लक्ष्मी पूजन होता है, उसके बाद देर रात पूरा कस्बा सड़कों पर जुट जाता है और पटाखा युद्ध शुरू हो जाता है। पूरा इलाका पटाखों के धमाकों से गूंज उठता है। इससे पहले गांव के बुजुर्ग लोग दोनों पक्षों के समूहों को तैयार करते हैं। फिर इस युद्ध में हाथ में रॉकेट और बम जलाकर एक दूसरे पर फेंके जाते हैं। यह युद्ध करीब दो से ढाई घंटे तक चलता है। जोश में आकर युवाओं ने एक दूसरे पर पटाखे फेंके और कई युवा घायल हो गए, जिन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया। इसे लेकर आसपास के ग्रामीणों में काफी उत्सुकता रही और वे पटाखा युद्ध देखने पहुंचे।

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1980 में शुरू हुई थी यह परंपरा

नैनवां निवासी हंसराज शर्मा ने बताया कि छोटी काशी बूंदी में बहादुरी की कहानी इतिहास में दर्ज है। दिवाली तो सभी मनाते हैं और पटाखे भी फोड़ते हैं, लेकिन नैनवां में उस समय पूर्वजों ने इस दिवाली को उत्साह से मनाने और भाईचारा बनाने के लिए पटाखा युद्ध शुरू किया था। यह पटाखा युद्ध करीब 1980 में शुरू हुआ था, लोगों में दो समूह बन गए थे, जहां उन्होंने एक दूसरे पर पटाखे फेंकने शुरू कर दिए थे। पहले लोगों को आपातकालीन समय में ही पटाखा युद्ध में शामिल किया जाता था लेकिन अब धीरे-धीरे समय के साथ इस युद्ध की पहले से ही तैयारियां की जाती हैं और दोनों गुटों के नाम पहले से ही टीमें बनाकर लिख दिए जाते हैं।

युद्ध के लिए इलाका तय कर दिया जाता है, जिसमें शाम 7 बजे से ही बाजार बंद होने लगते हैं और दर्शक छतों पर जमा होने लगते हैं। आस-पास के इलाकों से भी ग्रामीण इस नजारे को देखने आते हैं। झंडी वाली गली, मालदेव और गढ़ चौक से यह युद्ध शुरू होता है और थोड़ी ही देर में पूरे कस्बे के बाजार इस पटाखा युद्ध की चपेट में आ जाते हैं। रॉकेट और बस हमलों में ऐसा लगता है जैसे दो गुट आपस में भिड़ रहे हों। इस युद्ध में एक दूसरे पर हमला करता है, कभी रॉकेट से हमला होता है तो कभी दोनों तरफ से बड़े बम फेंके जाते हैं। लोग एक दूसरे पर निशाना साधते हैं और पटाखे फेंकते हैं। इसमें पटाखों से तेजी से हमला करने वाले लोगों की टीम चलती है और जवाब में दूसरी टीम के लोग भी अलग-अलग जगहों से पटाखों से हमला करते रहते हैं। पहले मुख्य बाजार ही पटाखा युद्ध का केंद्र था, लेकिन अब यह शहर के सभी मुख्य चौराहों तक फैल गया है। इस पटाखा युद्ध में घायल होने वाले लोग किसी से शिकायत नहीं करते। बल्कि अगले दिन सभी लोग घायलों के घर जाकर उनका हालचाल पूछते हैं और लोगों को मिठाई खिलाई जाती है।

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