Chhath Puja and Bhai Dooj in Rajasthan वागड़ अंचल में पर्व की बहार

गोपेंद्र नाथ भट्ट, राजस्थान।
Chhath Puja and Bhai Dooj in Rajasthan दक्षिणी राजस्थान के उदयपुर संभाग के वागड़ अंचल में भी इन दिनों छठपूजा और भाई दूज की बहार दिखाई दे रही है। डूंगरपुर और बांसवाड़ा की सिंटेक्स कपड़ा मिलों और अन्य व्यवसायों में बिहार के बाशिंदे बड़ी संख्या में काम करते है और वे प्रति वर्ष छठपूजा उत्सव धूमधाम से मनाते हैं।
पिछलें दो वर्षों से इस अंचल के लोग भी कोरोना की वजह से त्यौहार नहीं मना पा रहे थे, लेकिन इस वर्ष कोरोना नियंत्रित होने से कोविड संबंधी सरकारी अंकुशों के बावजूद लोग उत्साहपूर्वक विभिन्न पर्व मना रहे हैं। इस बार मानसून की अच्छी वर्षा के बाद सबसे पहले श्रावणी तीज, फिर गणेश चतुर्थी, नवरात्री, दशहरा और दीपावली के बाद अब भाई दूज और छठ पूजा त्यौहारों की भी धूम देखी जा रहीं हैं। छठ पूजा के लिए सूर्य को अर्ध्य देने नगर के मुख्य तालाबों में लगी हुई पाबंदी के कारण आसपास के जलाशयों पर व्यापक इंतजाम हुए हैं।

जमरा-बीज (Chhath Puja and Bhai Dooj in Rajasthan)

वागडवासियों ने हाल ही उत्साह के साथ भाई दूज का त्यौहार भी मनाया। दरअसल में यह त्यौहार इस अंचल में जमरा-बीज के नाम से जाना जाता है। जमरा बीज पर जमेर यानि सधवा स्त्री द्वारा आटे की लोई नहीं तोड़ने की परम्परा है। इस दिन वागड़ के अधिकांश घरों में गृहणियों द्वारा प्रतिदिन लोई तोड़कर रोटी बनाने के स्थान पर स्वादिष्ट दाल-बाटी बनाई जाती है। जमरा बीज की पौराणिक कथा मृत्यु के देवता यमराज और उनकी बहन यमुना के परस्पर स्नेह और विश्वास से जुड़ी हुई है, जिसके अनुसार यमराज ने अपनी बहन को हमेशा जमेर यानि सधवा (सौभाग्यवती) रहने का आशीर्वाद दिया था। कालांतर में जमरा बीज भाई दूज के रूप में लोकप्रिय हुई और घर-घर में मनाई जाती हैं। इस दिन को भाई के प्रति बहन की श्रद्धा और विश्वास का पर्व माना जाता है। हां फर्क सिर्फ इतना है कि रक्षाबंधन के दिन बहनें अपने भाइयों की कलाई पर राखी बांधने उनके घर जाती हैं, वहीं भाई- दूज के दिन भाई अपनी बहनों के घर जाते हैं। कई स्थानों पर बहनें भी भाईयों के घर जाकर उन्हें तिलक लगाती हैं।

पौराणिक कथाओं में पर्वों की अलग-अलग व्याख्या (Chhath Puja and Bhai Dooj in Rajasthan)

पौराणिक कथाओं में रक्षा बन्धन और भैया दूज दोनों त्योहारों को मनाने के पीछे अंतर्निहित भावनाओं की विस्तार से अलग-अलग व्याख्या मिलती है और इनमें दोनों त्यौहारों के गूढ़ मर्म को भी जाना जा सकता हैं। हालांकि भाई दूज के पर्व को मनाने की असली वजह क्या है? इस बारे में बहुत ही कम लोग जानते हैं। जमरा बीज भाई दूज अथवा यम द्वितीया के विषय में एक पौराणिक मान्यता के अनुसार भगवान कृष्ण की भामिनी यमुना ने इसी दिन अपने भाई यमराज की लंबी आयु के लिए व्रत किया था और उन्हें अन्नकूट का भोजन खिलाया था। इस कथा के अनुसार बहन यमुना अपने भाई यम से मिलने के लिए अत्यधिक व्याकुल थी। तब यम देवता ने अपनी बहन को इस दिन दर्शन दिए। अपने भाई के दर्शन कर यमुना बेहद प्रसन्न हुई। यमुना ने भाव-विभोर होकर अपने भाई की बहुत आवभगत की। यम ने भी प्रसन्न होकर उससे अपनी इच्छा अनुसार वरदान मांगने को कहा। यमुना ने वर मांगा कि यम हर वर्ष इसी दिन उनके घर आकर भोजन ग्रहण करेंगे। यमराज ने कहा तथास्तु… यानि एक तरह से यमुना ने अपने भाई यम से अपने को हमेशा सौभाग्यवती होने का वरदान हासिल कर लिया। साथ ही यह किंवदन्ती भी है कि इस दिन अगर भाई-बहन दोनों एक साथ यमुना नदी में स्नान करेंगे तो उन्हें मुक्ति प्राप्त होगी। यमुना ने अपने भाई यम से यह वचन भी लिया कि आज के दिन हर भाई को अपनी बहन के घर जाना चाहिए। मान्यता है कि तभी से भाई दूज मनाने की प्रथा चली आ रही है।

यम द्वितीया के नाम से भी जाना जाता है भाई दूज पर्वे (Chhath Puja and Bhai Dooj in Rajasthan)

यह त्यौहार प्रति वर्ष दिवाली के उपरांत कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को भाई दूज के रूप में मनाया जाता है। भाई दूज को यम द्वितीया के नाम से भी जाना जाता है। भाई दूज के दिन बहनें अपने भाई को तिलक लगाकर और उपहार देकर उसकी लंबी आयु की कामना करती हैं। बदले में भाई भी अपनी बहन कि रक्षा का वचन और उपहार देता है। इस दिन भाई का अपनी बहन के घर भोजन करना विशेष रूप से शुभ होता है। मिथिला नगरी में इस पर्व को आज भी यमद्वितीया के नाम से मनाया जाता है। इस दिन चावलों को पीसकर एक लेप भाईयों के दोनों हाथों में लगाया जाता है। साथ ही कुछ स्थानों में भाई के हाथों में सिंदूर लगाने की भी परंपरा है।

कृष्ण का बहन सुभद्रा के घर जाना (Chhath Puja and Bhai Dooj in Rajasthan)

एक अन्य लोकप्रिय किंवदंती के अनुसार दुष्ट राक्षस नरकासुर का वध करने के बाद भगवान कृष्ण अपनी बहन सुभद्रा से मात्र तुलसी की माला पहनकर मिलने गए थे, तब सुभद्रा ने उनका स्वागत मिठाई और फूलों से किया था। सुभद्रा ने प्यार से कृष्ण के माथे पर तिलक लगाया। कुछ लोग इसे भी इस त्योहार का मूल मानते हैं। वैसे तो भाई बहनों का सबसे बड़ा त्यौहार रक्षाबंधन को माना जाता है। साथ ही राखी से एक सप्ताह पहले भाई पुली भी मनाई जाती है और ऐसे अन्य एक समान त्यौहार भी हैं, लेकिन मान्यता है कि रक्षा बंधन के दिन दरअसल ब्राह्मणों द्वारा ऋषि तर्पण करने का विधान सर्वोच्च है लेकिन आज इस बात को बहुत कम लोग जानते हैं, जबकि राखी पर्व को हर कोई जानता और मानता है। जैसा ऋषि तर्पण से अधिक महत्वपूर्ण राखी का त्यौहार हो गया, वैसा ही भाई दूज का त्यौहार जमरा-बीज से अधिक लोकप्रिय बन गया। देश के विभिन्न भागों में इसे भिन्न-भिन्न नामों से भी जाना जाता हैं।

बचपन की यादें (Chhath Puja and Bhai Dooj in Rajasthan)

इन त्यौहारों के मध्य हमारी बचपन की कुछ यादें भी आज यकायक ताजा हो गई हैं। विशेषकर भाई दूज के दिन ऐतिहासिक डूंगरपुर नगर के निकट मुरला गणेश में हर वर्ष लगने वाले मेले में स्वजनों और इष्ट मित्रों के साथ जाने का स्मरण अनायास ही हमें रोमांचित कर देता है। परिवार के बड़े बुजुर्गों की ओर से इस मेले में गोठ मनाने के लिए हमें एक रुपए मात्र मिलता था। इसमें से कुछ पैसे खर्च कर मेले का भरपूर आनन्द लेकर हम कुछ राशि बचाकर वापस घर लौटते थे। घर आकर उस दिन लोई न तोड़ने का वचन निभाते हुए मां (जिया) के हाथ की बनी अति स्वादिष्ट बाटी और पंचतत्वी दाल खाकर शाम को हम नगर के इकलौते कृष्णा टाकीज में फिल्म देखने भी जाते थे। बचपन के वे रंग बिरंगे दिन हकीकत में बहुत हसीन हुआ करते थे, इसमें समायी हमारी जन्म भूमि वागड़ की मिट्टी सौंधी सुगंध आज भी बरबस ही यादों के खजाने के द्वार खोल देती है।

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Amit Sood

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