INDIA NEWS (DELHI): साल 2023 में राजस्थान में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। राजस्थान की दो सबसे बड़ी पार्टियां बीजेपी और कांग्रेस है। दोनों पार्टिया चुनाव की तैयारियों में जुट गई है। राजस्थान में पार्टी के अस्तित्व की बात करे तो, वह सबसे बड़ा कांग्रेस शासित राज्य है।

यही वजह है की कांग्रेस राजस्थान को खोना नहीं चाहती है और वहीं बीजेपी किसी भी कीमत पर इस राज्य में अपनी सत्ता बनाना चाहती है। इस साल राजस्थान में बीजेपी अपनी वापसी के लिए पार्टी चुनावी मोड एक्टिवेट कर चुकी है।

फ़िलहाल , इस चुनाव का महत्त्व कांग्रेस या बीजेपी पार्टी से ज्यादा तीन बार से विधायक रहे अशोक गहलोत को है। जो तीन बार राजस्थान के मुख्यमंत्री रह चुकीं है। बीते 4 साल में कई ऐसे मौके आए जब अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बयान की वजह से राजस्थान कांग्रेस थोड़ी कमजोर नाराज आई है।

बात राजस्थान में बीजेपी की करे तो इसमें भी आपसी रंजिस बहुत है। राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे और बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया के बीच हुये बात विवाद सुर्खियों में रहा है।

इस स्थिति में राजस्थान में बीजेपी के लिए भी जीत हासिल करना आसान नहीं है और कांग्रेस को भी आपसी रंजिस को ख़तम करना होगा। राजस्थान की कुल 200 है जिसमे बहुमत के लिए 101 सेट हासिल करनी होगी। 1993 से यहां कोई भी पार्टी लगातार दो बार सत्ता में नहीं रही है। 1993 से ही लगातार 6 चुनाव से बीजेपी और कांग्रेस बारी-बारी से सत्ता में रही है।

राजस्थान में कांग्रेस के CM अशोक गहलोत और कांग्रेस के दिग्गज नेता सचिन पायलट के बीच 2018 से आपसी तनाव चल रहा है। बीजेपी पार्टी के लिए ये बहुत अच्छा पहलू है।

राजस्थान CM के लिए चुनौतियां

अशोक गहलोत साल 2018 में तीसरी बार मुख्यमंत्री पद की शपथ लेकर राज्य में आये। इस साल का सत्ता में बहुत उथल पुथल रही। इस सत्ता में अशोक गहलोत पर केंद्र का नाराज लगातार बना रहा है बहुत सारे जांच से उन्हें गुजरना पड़ा।

साथ दी सचिन पायलट से भी आपसी तनाव लगातार बना रहा फ़िलहाल अभी सब ठीक है। हालांकि इतनी मुश्किलों के बाद भी अशोक गहलोत अगर अपने कार्यकाल के अंतिम चरण तक पहुंच गए है,तो इससे पार्टी में उनके पहुंच का पता चल रहा है।

बीजेपी के लिए क्या है चुनौतियां

राजस्थान बीजेपी में भी तनाव बना हुआ है। राजस्थान में बीजेपी प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के प्रभाव को ख़तम करने की कोशिश में लगी हुई है। यहीं कारण है की पार्टी के अंदर वसुंधरा राजे के समर्थक और विरोधी में तनाव पार्टी के लिए बेहद ख़राब बात है।

पिछले दो दशक से वसुंधरा राजे बीजेपी पार्टी नेता है लेकिन 2018 के बाद से बीजेपी ने राज्य में नए नेताओं को जोड़ने की काफी कोशिश की है। फ़िलहाल इसका कोई असर वसुंधरा राजे पर नहीं पड़ा है।

2018 के हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को कुल 100 सीटों मिली थी। जो सरकार बनाने की नजरिए से काम थी। लकिन वहीं बीजेपी महज 73 सीट पर रुक गयी थी। बात वोट शेयर की करे तो बहुत अंतर नहीं था।

दोनों पार्टी के लोगो को लगभग ठीक ठाक वोट मिलता। लेकिन सीट ज्यादा होने की वजह से कांग्रेस ने सरकार बना ली।