New Enthusiasm In Rajasthan BJP: उत्तर प्रदेश की भारी जीत ने राजस्थान बीजेपी में भरा जोश, वसुंधरा राजे के लिये बढ़ेंगी चुनौतियां

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अजीत मैंदोला, नई दिल्ली:
New Enthusiasm In Rajasthan BJP: पांच राज्यों के चुनाव परिणामों का असर राजस्थान बीजेपी की राजनीति पर पड़ने लगा है। यूपी में मिली भारी जीत ने जहाँ मौजूदा प्रदेश बीजेपी इकाई मे नया जोश भर दिया है वहीं पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे गुट में चिंता देखी जा सकती है। क्योंकि चार राज्यों की जीत के बाद बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व और मजबूत बन कर उभरा है। जिस तरह के संकेत मिल रहे हैं उससे साफ है कि केंद्रीय नेतृत्व राजस्थान में बिना चेहरे के चुनाव लड़वायेगा।

जो कहीं ना कहीं वसुंधरा राजे गुट के हित मे नही कहा जा सकता है। प्रदेश बीजेपी में नेतृत्व को लेकर ही लंबे समय से संघर्ष चल रहा है। पूर्व मुख्यमंत्री राजे धार्मिक यात्राओं के नाम पर लगातार अपना शक्ति प्रदर्शन कर अपने समर्थकों में जोश भर रही हैं। उनके समर्थक बराबर यही मांग कर रहे हैं राजे को अभी से मुख्यमंत्री का चेहरा बनाया जाए। राजस्थान में अगले साल के आखिर में विधानसभा के चुनाव होने हैं।

राजे के कार्यक्रमों से प्रदेश बीजेपी ने लगातार दूरी बनाई हुई है। यही नहीं पार्टी के कार्यक्रमों में भी राजे को कम ही बुलाया जाता रहा है। एक तरह प्रदेश बीजेपी दो गुटों में बंटी हुई है। राजस्थान कांग्रेस कहीं ना कहीं बीजेपी की आपसी खींचतान से बड़ी उम्मीदें लगाए हुए थी। लेकिन पांच राज्यों के परिणामों ने हालात पूरे तरह से बदल दिये हैं।

गुजरात और हिमाचल प्रदेश चुनाव के लिए भाजपा ने शुरू की तैयारी

पांच राज्यों में हुई करारी हार के बाद कांग्रेस और कमजोर हुई है। केंद्रीय नेतृत्व सवालों के घेरे में है। जिस तरह से अंसन्तुष्ट नेता सवाल उठा रहे हैं उससे कांग्रेस में टूट का खतरा और मंडरा रहा है। कांग्रेस जहां अपने लड़ाई झगड़े में उलझी हुई है। वहीं बीजेपी ने 6 माह बाद होने वाले गुजरात और हिमाचल प्रदेश के चुनाव की तैयारी शुरू कर दी है। यूपी की जीत के बाद इन दोनों राज्यों में भी बीजेपी के सामने कोई चुनौती दिखाई नहीं दे रही है। मतलब अगले साल जब तक राजस्थान के चुनाव का नम्बर आयेगा बीजेपी कुछ और राज्यों में जीत का परचम लहरा चुकी होगी।

ऐसे में राजस्थान में भी वही होगा जो केंद्रीय नेतृत्व चाहेगा। राजस्थान बीजेपी में आज के दिन में राजे के साथ कई और नेता मुख्यमंत्री पद की कुर्सी पर नजर लगाए हुए हैं। इनमें लोकसभा अध्य्क्ष ओम बिड़ला, केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत और भूपेंद्र यादव, प्रदेश अध्य्क्ष सतीश पूनिया, सांसद दिया कुमारी और राज्यवर्धन सिंह राठौर के नाम की चर्चा होती रहती है। इनके समर्थक अपने नेताओं के नाम चलाते भी रहते हैं।बीजेपी का केंद्रीय नेतृत्व जिस तरह से काम करता है उसमें कुछ नही कहा जा सकता कि चुनाव के बाद सेहरा किसके सिर बांध दे।

राजस्थान, मध्य्प्रदेश और छत्तीसगढ़ के लिए भाजपा ने कसी कमर

अगले साल राजस्थान के साथ मध्य्प्रदेश और छत्तीसगढ़ के भी चुनाव होने हैं। 2013 में इन राज्यों के चुनाव के समय मोदी लहर की शुरुआत हुई थी। बीजेपी ने तीनों राज्यों में शानदार जीत हांसिल की थी। लेकिन पांच साल बाद 2018 में प्रधानमंत्री मोदी और तब के राष्ट्रीय अध्य्क्ष अमित शाह जैसे ताकतवर नेतृत्व के बाद भी बीजेपी इन तीनों राज्यों में हार गई थी। हालांकि बाद में कांग्रेस में हुई टूट के चलते बीजेपी ने मध्य्प्रदेश में सरकार बना ली।

केंद्रीय नेतृत्व इस बार इन तीनों राज्यों को जीतने के लिये कोई कोर कसर नहीं छोड़ेगा। राजस्थान में परंपरा रही है कि एक बार बीजेपी तो एक बार कांग्रेस। वसुंधरा राजे जब से राजस्थान बीजेपी की राजनीति में सक्रिय हुई और मुख्यमंत्री बनी उनका हमेशा बड़े नेताओं और दिल्ली से टकराव चलता रहा है। पिछले डेढ़ दशक में दिल्ली से टकराव के बाद वह जीतती रही हैं। अपने तरीके से उन्होंने अभी तक राजनीति की है।

राजस्थान बीजेपी में नया जोश

यही नहीं 2018 में ताकतवर केंद्रीय नेतृत्व से भी उनकी ठीक ठाक भिड़ंत हुई, उसके बाद भी अपनी मर्जी का प्रदेश अध्य्क्ष बनवा अपनी अगुवाई में चुनाव लड़ा। हालांकि वह चुनाव हार गई। राज्य बीजेपी में बड़ा बदलाव हो गया। राजे इसके बाद भी इस बार उसी कोशिश में हैं कि राजस्थान बीजेपी की राजनीति में उनका ही बर्चस्व बना रहना चाहिये। यूपी के चुनाव परिणाम आने से पहले लग रहा था कि राजे के लिये इस बार भी राह आसान रहेगी। लेकिन यूपी में बीजेपी को मिली बड़ी जीत ने राजे विरोधी समझे जाने वाले नेताओं में नया जोश भर दिया।

प्रदेश अध्य्क्ष सतीश पूनिया दिल्ली से लेकर जयपुर तक सक्रिय हो गए। पूनिया की दिल्ली में पत्रकारों के साथ वार्ता। फिर राजस्थानी होली मिलन समारोह में सक्रियता। इस कार्यक्रम में राजस्थान के केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत और अर्जुन मेघवाल के साथ कई सांसद भी शामिल हुये। यहाँ के बाद पूनिया राजस्थान में यात्रा ओर नेताओं के साथ कश्मीर पर बनी फिल्म को देख कार्यकर्ताओं में जोश भरना। साफ है कि दिल्ली से कुछ मन्त्र ले कर उन्होंने भी राजे के समानांतर अभियान शुरू कर दिया। निश्चित तौर पर जैसे जैसे चुनाव करीब आएगा राजस्थान में जोर आजमाइश बढ़ेगी।

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India News Editor

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