India News (इंडिया न्यूज़),Mohammad Shami: भारतीय तेज गेंदबाज मोहम्मद शमी को सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा झटका दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को पश्चिम बंगाल के सत्र न्यायाधीश से कहा है कि भारतीय क्रिकेटर मोहम्मद शमी की पत्नी हसीन जहां की याचिका पर एक महीने के भीतर सुनवाई करें और उसका निपटारा करें। शीर्ष अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि यदि यह संभव नहीं है तो सत्र न्यायाधीश इसमें संशोधन के लिए स्टे का कोई भी आदेश पारित कर सकते हैं।
मोहम्मद शमी की पूर्व पत्नी हसीन जहां ने कोलकाता उच्च न्यायालय के 28 मार्च 2023 के आदेश को चुनौती दी है, जिसमें सत्र न्यायालय के आदेश को रद्द करने की उनकी याचिका खारिज कर दी गई थी। अब हसीन जहां ने आरोप लगाया है कि शमी उनसे दहेज की मांग करते थे। याचिका के अनुसार, अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, अलीपुर ने 29 अगस्त 2019 को शमी के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी किया था। इस आदेश को शमी ने सत्र न्यायालय के समक्ष चुनौती दी थी, जिसने नौ सितंबर 2019 को गिरफ्तारी वारंट और कार्यवाही पर रोक लगा दी थी। शमी की पत्नी ने कलकत्ता उच्च न्यायालय का रुख किया, लेकिन यहां उन्हें निराश होना पड़ा। उन्होंने 28 मार्च 2023 के कलकत्ता उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का रुख किया। उन्होंने कहा कि लागू आदेश स्पष्ट रूप से कानून में गलत है, जो त्वरित सुनवाई के उनके अधिकार का खुला उल्लंघन है।
शमी की पत्नी ने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष याचिका में चिंता जताई कि कानून के तहत मशहूर हस्तियों के साथ कोई विशेष व्यवहार नहीं किया जाएगा। उन्होंने कहा, विशेष रूप से, पिछले चार वर्षों से, मुकदमा आगे नहीं बढ़ा है और रुका हुआ है। याचिका में कहा गया “वर्तमान मामले में आपराधिक मुकदमा पिछले चार वर्षों से बिना किसी उचित वजह के रुका हुआ है, शमी ने आपराधिक मुकदमा रोकने की अपील भी नहीं की थी। उन्होंने सिर्फ गिरफ्तारी रोकने की बात कही थी। इस प्रकार, सत्र न्यायालय ने गलत और पक्षपातपूर्ण तरीके से काम किया, जिसके कारण उनके अधिकारों और हितों को गंभीर रूप से खतरे में डाला गया।”
याचिका में आगे कहा गया “आरोपी व्यक्ति के पक्ष में इस तरह का स्टे दिया जाना कानून की दृष्टि से गलत है और इससे गंभीर पूर्वाग्रह पैदा हुआ है। पीड़िता इस हाई प्रोफाइल आरोपी के क्रूर हमले और हिंसा के अवैध कृत्य का शिकार है। जिला एवं सत्र न्यायालय, अलीपुर और साथ ही कलकत्ता उच्च न्यायालय ने इस आदेश के जरिए आरोपी को अनुचित लाभ दिया है। यह न केवल कानून में बुरा है बल्कि प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत के भी खिलाफ है।”
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