इंडिया न्यूज़ (दिल्ली) : पिछले 24 घंटे में अलग-अलग स्रोत से अनेकों बार आपने पढ़ा होगा और सुना होगा कि 9 दिसंबर को अरुणाचल प्रदेश के तवांग सेक्टर में झड़प के बाद भारत और चीन के बीच फ्लैग मीटिंग हुई थी। बताया जा रहा है कि झड़प में 5-6 भारतीय सैनिक घायल हुए थे और इससे दोगुनी संख्या में चीनियों को जख्म मिला। गलवान में भी जब भारत और चीन के सैनिकों में झड़प हुई थी तो यह फ्लैग मीटिंग की गई थी। यह शब्द अपने आप में सवाल उठाता है कि इसमें ऐसा क्या होता है कि दो देशों के बीच बढ़ी तनातनी या टकराव शांत हो जाता है। भारत और पाकिस्तान के बीच इस तरह की मीटिंग कई बार हो चुकी है। आइए जानते हैं कि बॉर्डर विवाद के समय होने वाली यह स्पेशल बैठक आखिर क्या होती है?
रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने संसद में बताया है कि 9 दिसंबर की घटना के बाद क्षेत्र के स्थानीय कमांडर ने 11 तारीख को अपने चीनी समकक्ष के साथ एक फ्लैग मीटिंग की। इस दौरान दो दिन पहले की घटना पर चर्चा की गई। रक्षा मंत्री ने यह भी बताया कि चीनी पक्ष को भविष्य में इस तरह की कार्रवाई के लिए आगाह किया गया है और सीमा पर शांति बनाए रखने के लिए कहा गया है। दरअसल, फ्लैग मीटिंग एक स्थापित व्यवस्था या कहें कि एक सिस्टम होता है। इंटरनेशनल बॉर्डर पर दो देशों के बीच वैसे तो यह मीटिंग रूटीन स्तर पर होती है लेकिन जब दोनों पक्षों के सैनिक भिड़ जाते हैं तब इसका महत्व बढ़ जाता है।
यह फ्लैग मीटिंग युद्ध या विवाद बढ़ने से रोकने के लिए माहौल को शांत करने का एक उपाय है। आपके दिमाग शायद सवाल हो कि मीटिंग तो ठीक है लेकिन फ्लैग का क्या मतलब है? अब जरा फिल्मों में दिखाए जाने वाले राजा-महाराजा की लड़ाई के सीन याद कीजिए। वहां झंडे का काफी महत्व होता है। अलग रंग के झंडे लहराकर दुश्मन को संदेश देने की परंपरा रही है। कुछ उसी तर्ज पर इस मीटिंग में दोनों देशों के सैनिक हाथ में अपने देश (पीस फ्लैग) का झंडा लिए हुए बॉर्डर पर मिलते हैं। बॉर्डर के बीच में बैठकर टॉप सैन्य अधिकारी मीटिंग करते हैं।
भारत और पाकिस्तान के बीच भी फ्लैग मीटिंग होती रहती है। छोटे मसले के लिए फ्लैग मीटिंग में ब्रिगेडियर स्तर के अधिकारी शामिल होते हैं, जबकि बड़े मसले पर जनरल लेवल के अधिकारी भी आ सकते हैं।
एक सैन्य अधिकारी बताते हैं कि निर्धारित समय पर दोनों पक्षों के क्षेत्रीय कमांडर बॉर्डर पर इकट्ठा होते हैं। एक शख्स पीस फ्लैग लिए रहता है। एक टेबल के दोनों तरफ कमांडर बैठते हैं और हालात पर चर्चा शुरू होती है। यह एक कॉन्फ्रेंस की तरह होती है और मौजूदा विवाद के समाधान पर बात होती है। दोनों पक्ष आम सहमति बनाने की कोशिश करते हैं। दोनों पक्ष तनाव कम करने के अपने-अपने विकल्प सुझाते हैं। सरल भाषा में कहें तो तनाव कम करने की यह स्थानीय स्तर पर की जाने वाली सामरिक बैठक होती है।
मीटिंग वाली जगह पर कमांडर अपने स्टाफ और दूसरे एस्कॉर्ट के साथ आते हैं। सुरक्षा के मद्देनजर कुछ जवान पीछे तैनात रहते हैं। यहां केवल बातचीत होती है, किसी भी तरह का मार्च पास्ट या दूसरी कोई चीज नहीं होती है। बैठक होने के बाद चर्चा के बिंदुओं को अपने-अपने मुख्यालयों में भेजा जाता है। इसके बाद आगे की रूपरेखा तैयार होती है। इसे विश्वास बहाली का उपाय भी कह सकते हैं। युद्ध किसी भी समस्या का समाधान नहीं है, ऐसे में कहा जा सकता है कि फ्लैग मीटिंग तनाव को बढ़ने से रोकती है और यही तवांग में भी हुआ था।
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