इंडिया न्यूज़ (दिल्ली) : लिव इन रिलेशनशिप में रहने वाले श्रद्धा और आफताब से जुड़ी हत्या की वारदात ने देश भर में सबको झकझोर दिया। लिव इन रिलेशनशिप को लेकर देश भर में बहस जारी है। दूसरी तरफ इलाहाबाद हाईकोर्ट ने लिव इन रिलेशनशिप पर वैधता की मुहर लगा दी। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि बालिग जोड़े को अपनी मर्जी से साथ रहने का संवैधानिक अधिकार है, उनके निजी जीवन में किसी को हस्तक्षेप करने का अधिकार नहीं है। आपको बता दें, यह आदेश न्यायमूर्ति सुनीत कुमार और न्यायमूर्ति सैयद वैज मियां की खंडपीठ ने आकाश राजभर समेत अन्य की याचिका को स्वीकार करते हुए दिया है।
जानकारी हो, याचिका में सुप्रीम कोर्ट के शाफिन जहां बनाम अशोकन केएम अन्य केस के फैसले के अनुसार दर्ज प्राथमिकी रद करने की मांग की गई थी। खंडपीठ ने सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के हवाले से कहा, किसी की भी व्यक्तिगत स्वतंत्रता बिना कानूनी प्राधिकार के छीनी नहीं जा सकती। बालिग जोड़े को अपनी मर्जी से एक साथ रहने का संवैधानिक अधिकार है।
कोर्ट ने कहा ‘बालिग चुन सकते है मनपसंद साथी’
आपको बता दें, कोर्ट ने याचिका की सुनवाई के दौरान कहा कि सरकार का दायित्व है कि वह लिव इन रिलेशनशिप में रह रहे जोड़े के अधिकार की सुरक्षा करें। इसके साथ ही कोर्ट ने कहा कि बालिगों को अपनी पसंद का जीवनसाथी चुनने और साथ रहने का संवैधानिक अधिकार है। उन्हें इस अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता।
क्या है लिव इन रिलेशनशिप
जानकारी हो, प्रेमी जोड़े का धार्मिक रीति रिवाज के बिना विवाह के ही एक घर में लंबी अवधि तक एक साथ रहना लिव-इन रिलेशनशिप कहलाता है। ये भी बता दें,अभी तक लिव-इन रिलेशनशिप की कोई कानूनी परिभाषा अलग से कहीं नहीं लिखी गई है। फिलहाल सरल शब्दों में इसे दो बालिगों का अपनी मर्जी से बिना शादी किए एक छत के नीचे साथ रहना कह सकते हैं।