इंडिया न्यूज, Washington News। Artemis-1 Mission : एक बार फिर से इंसानों को चांद पर भेजने के लिए NASA ने प्रयास शुरू कर दिए है। नाशा अपने सबसे शक्तिशाली स्पेस रॉकेट को लॉन्च करने जा रहा है जिसकी सभी तैयारियां पूरी हो चुकी हैं। नासा 50 साल के लंबे अंतराल के बाद इंसानों को चांद पर भेजने की तैयारी में लगा हुआ है।
1972 के बाद ऐसा पहली बार होने जा रहा है कि चांद पर मानव एक बार फिर अपने कदम रखेगा। इसी कवायद में, नासा Artemis-1 मिशन के तहत अपनी पहली टेस्ट फ्लाइट अंतरिक्ष में भेज रहा है। यह स्पेसक्राफ्ट सोमवार को अपने फ्लोरिडा लॉन्चपैड से ये रॉकेट उड़ान भरेगा।
सोमवार सुबह 8.33 पर पहला लिफ्टऑफ
Artemis-1 मिशन के अंतर्गत ओरियन स्पेसक्राफ्ट को भेजा जाएगा, जिसमें सबसे ऊपर 6 लोगों के बैठने के लिए डीप-स्पेस एक्सप्लोरेशन कैप्सूल है। इसमें 322 फीट लंबा 2,600 टन वजन वाला स्पेस लॉन्च सिस्टम मेगारॉकेट होगा। यह रॉकेट सोमवार सुबह 8.33 बजे अपने पहले लिफ्टऑफ के लिए तैयार है।
टेस्ट के लिए इंसानों की जगह जाएंगे पुतले
चांद पर इंसानों को भेजने से पहले यह एक टेस्ट है। फिलहाल इसमें कोई क्रू नहीं जा रहा है। ओरियन में इंसानों की जगह पुतलों को बैठाया जा रहा है। इससे नासा नेक्स्ट जेनेरेशन स्पेससूट और रेडिएशन लेवल का मूल्यांकन करेगा।
पुतलों के साथ स्नूपी सॉफ्ट टॉय को भी भेजा जा रहा है, जो कैप्सूल के चारों ओर तैरेगा और जीरो ग्रैविटी इंडिकेटर के तौर पर काम करेगा। ओरियन, चंद्रमा के चारों ओर करीब 42 दिन की लंबी यात्रा करेगा।
सफलता मिली तो 2025 के अंत तक चंद्रमा पर जाएंगे इंसान
अगर यह मिशन सफल होता है, तो 2025 के अंत तक चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर पहली महिला और दो अंतरिक्ष यात्रियों को उतारा जाएगा। दूसी टेस्ट फ्लाइट Artemis-II, मई 2024 के लिए निर्धारित है, जो 4 लोगों को लेकर चंद्रमा के पीछे लेकर जाएगी, ये चांद पर लैंडिंग नहीं करेगा।
रॉकेट की क्षमताओं का टेस्ट है यह उड़ान
नासा के अधिकारी और स्पेस शटल के पूर्व एस्ट्रोनॉट बिल नेल्सन का कहना है कि इस फ्लाइट में मिशन के मैनेजर रॉकेट की क्षमताओं को टेस्ट करेंगे, ताकि ये पक्का हो सके कि उड़ान अंतरिक्ष यात्रियों के लिए सुरक्षित है।
42 दिन होगी इसकी वापसी
ओरियन, अंतरिक्ष स्टेशन पर डॉक किए बिना लंबे समय तक अंतरिक्ष में रहने वाला पहला स्पेसक्राफ्ट होगा। ये अक्टूबर के मध्य में घर वापसी करेगा। चांद के करीब जाने, वहां 42 दिन बिताने और पृथ्वी पर वापस लौटने में ये स्पेसक्राफ्ट 60,000 किलोमीटर की यात्रा करेगा।
अंतरिक्ष में रेडिएशन के प्रभावों का अध्ययन करेगा यह स्पेसक्राफ्ट
बताया जा रहा है कि इस स्पेसक्राफ्ट के जरिए नासा के वैज्ञानिक कई एक्सपेरिमेंट करने वाले हैं। बायोएक्सपेरिमेंट-1, चार एक्पेरिमेंट का एक सेट है, जो मनुष्यों को चंद्रमा और मंगल पर भेजे जाने से पहले अंतरिक्ष के रेडिएशन के प्रभावों का अध्ययन करेगा।
इंसान ही नहीं इलेक्ट्रॉनिक्स सिस्टम के लिए भी खतरनाक है रेडिएशन
आपको बता दें कि पर्याप्त सुरक्षा के बिना, स्पेस रेडिएशन खतरनाक हो सकती हैं। बड़ी मात्रा में रेडिएशन के संपर्क में आने वाले एस्ट्रोनॉट्स को एक्यूट और क्रोनिक बीमारियां हो सकती हैं। इससे आगे चलकर कैंसर होने की भी संभावना होती है। न सिर्फ इंसानों के लिए, बल्कि रेडिएशन स्पेसक्राफ्ट के इलेक्ट्रॉनिक्स सिस्टम के लिए भी अच्छी नहीं है।
स्पेसक्राफ्ट में भेजे जाएंगे पौधों के बीज
वहीं वैज्ञानिकों के अनुसार इस स्पेसक्राफ्ट में पौधों के बीज भी भेज रहे हैं। इसके साथ ही, शैवाल, कवक और खमीर भेज रहे हैं, ताकि रेडिएशन के असर का अध्ययन किया जा सके और ये पता चल सके कि बायोलॉजिकल सिस्टम्स गहरे अंतरिक्ष में कैसे रहते हैं और कैसे विकसित हो सकते हैं। वे उड़ान से पहले और बाद में डेटा इकट्ठा करेंगे और होने वाले बदलावों का विश्लेषण करेंगे।
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