अजीत मैंदोला, New Delhi News। Ashok Gehlot: राजस्थान के मुख्य्मंत्री अशोक गहलोत ही गांधी परिवार की तरफ से कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्य्क्ष पद के उम्मीदवार होंगे। अगर अंतिम समय में किसी प्रकार का कोई बदलाव नहीं हुआ तो गहलोत नवरात्रों में कभी भी नामंकन दाखिल कर सकते है। सूत्रों की माने तो गहलोत के दिल्ली दौरे के बाद नामांकन का दिन तय हो जाएगा। गहलोत अपने दिल्ली दौरे में सोनिया गांधी, राहुल गांधी समेत कई नेताओं से चर्चा करेंगे।
ऐसे संकेत है गहलोत आज कल में दिल्ली आएंगे। उधर राहुल गांधी के भी कल परसों भारत यात्रा से एक दिन की छुट्टी लेकर दिल्ली आने की संभावना है। सोनिया गांधी ने संगठन महासचिव के सी वेणुगोपाल को भी दिल्ली बुला लिया है। अध्य्क्ष पद के लिए नामांकन का दिन तय करने के बाद यहां से तीनों नेता वापस कोच्ची जाएंगे।
गांधी परिवार के उम्मीदवार होने के चलते गहलोत की जीत तय मानी जा रही है। एक तरह से गहलोत का ही अगला अध्य्क्ष बनना तय है। हालांकि दूसरे उम्मीदवार के रूप में शशि थरूर के भी पर्चा भरने के पूरे आसार है ,लेकिन वह महज एक औपचारिकता भर होगी। क्योंकि उन्हे अपने राज्य केरल से ही समर्थन मिलने के आसार कम है।
केरल समेत देश भर में बनाए गए अधिकांश पीसीसी डेलिगेट गांधी परिवार के समर्थक बताए जाते है। इसलिए गहलोत की जीत को लेकर कोई संशय नही है। करीब 22 साल बाद कोई गैर गांधी कांग्रेस का अध्य्क्ष बनेगा। ऐसा भी पहली बार होगा कि जब गैर गांधी चुनाव जीत कर अध्य्क्ष बनेगा। गहलोत के राष्ट्रीय अध्य्क्ष बनने का सबसे ज्यादा असर राजस्थान कांग्रेस की राजनीति पर पड़ेगा।
जो संकेत मिल रहे है उनके अनुसार गहलोत मुख्य्मंत्री भी बने रहेंगे। उसकी कई वजह है। एक तो सीएम रहने पर उन्हें पूरा प्रोटोकाल मिलेगा। जैसे 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को मिला था। उन्होंने गुजरात के सीएम रहते ही प्रधानमंत्री पद का चुनाव लड़ा था। जानकार भी मानते है कांग्रेस भी इसका पूरा लाभ लेगी। दूसरी जो सबसे बड़ी वजह है वह राजस्थान में सरकार को बचाए और बनाए रखना है।
इसके साथ फिर से सरकार वापसी भी करवानी है। राजस्थान में अभी जो हालात है उनमें गहलोत का मुख्य्मंत्री पद छोड़ना पार्टी के लिए घातक हो सकता है। बीजेपी तो पहले से ताक में बैठी है कि गहलोत के सीएम पद छोड़ते ही कमजोर कड़ियों को फिर से साधा जाए।
सवा दो साल पहले भी कांग्रेस के विधायकों में सेंध लगा सरकार गिराने की कोशिश की गई थी, लेकिन मुख्य्मंत्री गहलोत के सजग रहने के चलते प्रयास सफल नहीं हो पाए थे। क्योंकि गहलोत ने निर्दलीय विधायकों को साध सरकार बचाने में सफलता पाई थी। आज भी सरकार के साथ मौजूदा 126 विधायकों में से केवल 3 से 4 विधायक सचिन पायलट गुट के साथ है।बाकी गहलोत के साथ है।
सचिन पायलट की अगुवाई में ही सरकार गिराने की कोशिश हुई थी। इस घटना के बाद पार्टी ने सचिन को अध्य्क्ष पद से बर्खास्त कर दिया था। हालाकि कुछ नेताओं के दखल के चलते बागी नेताओं पर एक्शन नही लिया गया था। सरकार गिराने के लिए जो लेन-देन हुआ था उसके सबूत गांधी परिवार के पास पहुंच गए थे जिसके चलते बागी विधायकों को तो सरकार में एडजस्ट किया गया लेकिन सचिन को आज तक कोई पद नही दिया गया। लेकिन सचिन गुट की तरफ से अभी तक वापसी की कोशिश जारी है।
अब जैसे ही गहलोत का राष्ट्रीय अध्य्क्ष बनना तय सा माना जाने लगा तो फिर सचिन गुट की तरफ से वापसी की खबरें चलाई जाने लगी। बीजेपी भी जानती है कि सचिन की वापसी नहीं होने जा रही है, लेकिन गहलोत अगर अध्य्क्ष बन जाते है और राजस्थान छोड़ते है तो फिर राजस्थान कांग्रेस में सीएम पद को लेकर ठकराव बढ़ेगा।
इसी ठकराव का बीजेपी पूरा फायदा उठाएगी। राजस्थान जैसे बड़े राज्य में सरकार अस्थिर होती है तो पूरी कांग्रेस पर असर पड़ेगा। आलाकमान भी नही चाहेगा कि अध्य्क्ष के राज्य में अस्थिरता आए। इसलिए अधिक संभावना यही है कि गहलोत दिल्ली और जयपुर दोनों जगह जिम्मेदारी संभालें।
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