Atique Ahmed: उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के शासनकाल में प्रयागराज एक बार फिर गोलियों और बम से कांप गया। 2005 में तत्कालीन विधायक राजू पाल की हत्या के गवाह उमेश पाल और उनके गनर की सरेआम हत्या कर दी गई। इस हत्याकांड पर यूपी विधानसभा में समाजवादी पार्टी पर हमला करते हुए कहा कि मैं माफिया को मिट्टी में मिला दूंगा। उन्होंने अखिलेश यादव पर हमला बोलते हुए कहा की सपा ने अतीक अहमद को पाला और उनकी पार्टी की मदद से ही अतीक अहमद सांसद बना। उसको संरक्षण मिला और ये हम पर सवाल उठा रहे हैं। अब बाहुबल की बात करें तो यह उत्तर प्रदेश की सियासत में हीं नहीं देश की सियासत में भी नजर आता है। भारतीय राजनीति में बहुत सारे ऐसे नेता हैं जिहोने अपराध जगत से सियासत में कदम रखा। राजनीति में आने के बाद भी उनका जुर्म की दुनिया से नाता शत्म नहीं होता। उनके अपराध के इतिहास के कारण अक्सर वे सुर्ख़ियों का विषय बने रहते हैं। ऐसे ही उत्तर प्रदेश मेंअपराध जगत से सियासत में कदम रखने वाला नेता है अतीक अहमद।
अतीक अहमद मूलत: उत्तर प्रदेश के श्रावस्ती जनपद के रहने वाले है। उसका जन्म 10 अगस्त 1962 को हुआ था। लोग बताते हैं कि उसका मन बचपन से ही पढ़ाई लिखाई में नहीं लगता था। नतीजन वह हाई स्कूल में फेल हो गया। हाई स्कूल के बाद अतीक अहमद ने पढ़ाई छोड़ कर जुर्म की दुनिया का रुख कर लिया। पूर्वांचल और इलाहाबाद में सरकारी ठेकेदारी, खनन और उगाही समेत कई अपराधों में उसका नाम सामने आने लगा।
1980 के दौर में प्रयागराज, तब इसे इलाहाबाद के नाम से जाना जाता था, बदल रहा था। वहां नए-नए उद्योग-धंधे लगाए जा रहा थे। नए-नए कॉलेज और स्कूल बन रहे थे। इन तमाम विकास कार्यों के लिए बड़े-बड़े सरकारी ठेके दिए जा रहे थे। शहर के छात्र नेता और दबंग हर कोई अपने-अपने रसूख का इस्तेमाल कर ठेके लेने का जुगाड़ कर रहा था। यही चाह शहर के चकिया मोहल्ले में रहने वाले फिरोज तांगेवाले के बेटे अतीक को लग गयी।
अतीक अहमद उस वक्त इलाहाबाद रेलवे स्टेशन पर तांगा चलाया करता था। अमीर बनने की चाहत ने उसे जुर्म की दुनिया में घसीट लायी। मात्र 17 साल की उम्र में साल 1979 में उसपर हत्या का पहला मुकदमा दर्ज हुआ। इसके बाद उसके जुर्म बढ़ने लगे। जुर्म की दुनिया में अतीक के बढ़ते कदम किसी को खटकने लगे। उन दिनों इलाहाबाद में चांद बाबा का खौफ था। बताया जाता है कि पुलिस भी उसके इलाके में जाने से डरती थी। चांद बाबा के खौफ को खत्म करने के लिए नेताओं और पुलिस ने अतीक अहमद को शह दी और लोहे को लोहे से काटने का हथियार तैयार कर दिया। वो ये नहीं जानते थे कि ये एक दिन उनके गले की हड्डी बन जायेगा। इनके बूते अतीक अहमद का साम्राज्य इतना फैल गया कि पुलिस के पकड़ लेने पर उसके लिए दिल्ली से फ़ोन आ जाते थे।
अतीक अहमद अब-तक यह समझ चुका था की एकछत्र राज करने के लिए सियासी हाथ होना जरुरी है। 1889 में अतीक अहमद ने चुनाव लड़ा और इस चुनाव में उसने चांद बाबा को हराकर जीत हासिल की। चुनाव के कुछ महीने बाद ही प्रयागराज में एक चौराहे पर चांद बाबा की हत्या कर दी गयी। इस हत्याकांड के बाद इलाहाबाद में अतीक अहमद के नए अपराध का सूर्योदय हो गया।
अतीक अहमद ने अपना पहला चुनाव 1989 में इलाहबाद पश्चिम सीट से लड़ा और जीत हासिल की। इसके बाद 1991 और 1993 का चुनाव भी अतीक अहमद ने निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर जीता। 1996 के चुनाव में अतीक अहमद ने समाजवादी पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ा और जीत दर्ज की। 1999 में अतीक अहमद अपना दल का हाथ थाम प्रतापगढ़ से चुनाव लड़े और हार गए। 2002 में अतीक एक बार फिर से अपना दल से चुनाव लड़े और विधायक चुने गए। उत्तर प्रदेश में जब 2003 में मुलायम सिंह की सरकार बनी तो एक बार फिर से अतीक सपा की साइकल पर सवार हो गए। 2004 के लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी ने अतीक को फूलपुर संसदीय क्षेत्र से टिकट दिया और वह सांसद बन गए।
2007 में उत्तर प्रदेश की सत्ता में फिर से परिवर्तन हुआ और सीएम बनीं बसपा सुप्रीमो मायावती। मायवती के राज में अतीक अहमद का सिक्का कमजोर होने लगा। समाजवादी पार्टी ने अतीक अहमद को बाहर का रास्ता दिखा दिया और मायावती ने अतीक को सबक सीखना शुरू कर दिया। मायावती ने अतीक अहमद को मोस्ट वांटेड घोषित करवा दिया। अतीक की करोड़ों की सम्पति सीज कर दी गयी और इमारतों को गिरा दिया गया। अतीक अहमद फरार घोषित कर दिया गया। दिल्ली पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर यूपी पुलिस को सौंप दिया जिसके बाद अतीक का ठिकाना जेल बन गया।
2012 का चुनाव लड़ने के लिए अतीक ने जमानत अर्जी लगाई और अतीक को जमानत दे दी गयी। 2012 के चुनाव में अतीक अहमद ने एक बार फिर से चुनाव लड़ा। हालांकि इस चुनाव में उसे राजू पाल की पत्नी पूजा पाल से हार का सामना करना पड़ा। 2012 में सपा की सरकार बनी और अतीक अहमद ने फिर से अपना रसूख दिखाना शुरू कर दिया। 2017 में उत्तर प्रदेश में बीजेपी की सरकार आने के बाद से अतीक अहमद पर लगातार क़ानूनी शिकंजा कसता जा रहा है। सरकार ने अतीक की करोड़ों रूपये की सम्पति कुर्क कर दी। तमाम इमारतों पर बुलडोजर चल चुका है। फिलहाल 80 के दशक से शुरू हुआ अतीक अहमद का साम्राज्य ध्वस्त होने की कगार पर पहुंचा गया है।
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