Top News

इंडिया न्यूज हरियाणा के मंच से बोलीं सुधा यादव, अब महिलाएं पुरुषों के समान वेतन पा रही

इंडिया न्यूज़ (पानीपत, BJP leader Sudha yadav in india news program): बुधवार को इंडिया न्यूज हरियाणा ने अपने विशेष कार्यक्रम ‘हम महिलाएं’ में देश के बुद्धिजीवियों से बातचीत की। इस कार्यक्रम में उन महिलाओं को शामिल किया गया जिन्होंने अपने जीवन में विशेष लक्ष्य को अपनी मेहनत के बूते हासिल करते हुए समाज के सामने एक उदाहरण पेश किया।

पूरा कार्यक्रम देखे

इन महिलाओं ने बताया कि कैसे एक महिला अपनी लग्न और मेहनत से समाज को नई दिशा प्रदान कर सकती है। इस दौरान इंडिया न्यूज के मंच पर भाजपा संसदीय समिति की सदस्य सुधा यादव उपस्थित रहीं। उन्होंने मंच से बोलते हुए कई अहम मुद्दों पर अपनी राय रखी।

Sudha Yadav से पूछे गए सवाल और उनके जवाब

1. प्रश्न : आपके बारे में सुना है कि आपका जीवन काफी संघर्ष वाला रहा है लेकिन आपने अपने आप को प्रूफ करके दिखाया है। लेकिन एक स्टोरी सबसे मजेदार लगी जिसमें नरेंद्र मोदी 1999 में आपके पास आते हैं और अपनी मां के दिए हुए 11 रुपए आपको सहयोग के लिए देते हैं। इसके बाद लोगों का सहयोग आपकी तरफ बढ़ता गया और आपने वहां से कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। इसी कहानी से हम आज के सेशन की शुरूआत करना चाहेंगे।

उत्तर : आपने बहुत मन को छूनी वाली कहानी से मेरे जीवन की शुरूआत करवाई है। 1999 के अंदर मैंने अपने पति को कारगिल युद्ध में खो दिया। उस समय में मैं बच्चों को पढ़ाया करती थी। 2 छोटे बच्चे थे एक साढ़े 3 साल का बेटा और 7 साल की बिटिया।

लग रहा था कि जीवन में किस दिशा में आगे बढना है, उसी समय भाजपा के अनेक नेताओं ने मुझे अपरोच करना शुरू किया कि मुझे पार्टी में आना चाहिए और आकर चुनाव लड़ना चाहिए। इसे संयोग कहिए कि उस समय अटल जी की सरकार एक वोट से गिर गई थी और चुनाव हमारे सामने थे।

फैसला बहुत मुश्किल था। क्योंकि एक ऐसा परिवार जिसका राजनीतिक पृष्ठभूमि न हो और लगभग परिवार के सभी सदस्य सेना में कार्यरत्त हो। उस समय मेरे परिवार से 11 लोग सेना में थे और सभी दूरदराज के क्षेत्रों में तैनात थे तो किसी को नहीं लगता था कि मुझे राजनीति के क्षेत्र में जाना चाहिए।

लेकिन धीरे धीरे मेरी बातचीत आदरणीय नरेंद्र भाई से करवाई गई और ये एक करिश्मा ही था कि उन्होंने मुझे फोन पर ही मना लिया कि मुझे नौकरी छोड़कर राजनीति में आना चाहिए और चुनाव लड़कर जनता की सेवा करनी चाहिए।

उन्होंने 1999 में मुझे चुनाव लड़वाया और जिस अहीरवाल क्षेत्र से मैं चुनाव लड़ी, उस समय वहां पर 18 कैजुएलिटी कारगिल वार की थी। माहौल भी था, एक वोट से सरकार गिरी थी और मैं चुनाव लड़कर उन्होंने मुझे सांसद बनाया।

जब चुनाव की टिकट की घोषणा हुई तो वो इलाके के लिए बहुत अप्रत्याशित था और कौन हूं, इसको लोग जानना चाहते थे। उन्होंने मुझसे कहा कि आपके जो परिचित लोग हैं, आपके रिश्तेदार हैं, इन सब लोगों से आप अपने चुनाव की चर्चा करें।

मैं जिससे भी चर्चा करती थी तो कुछ संतोषजनक जवाब नहीं मिलता था, क्योंकि ये कैसे चुनाव लड़ेगी? उन्होंने यानि मोदी जी ने कहा कि आप जितना लोगों से मिल सकती हो मिलो, और पहली कार्यकर्ताओं की मीटिंग लेने मैं आपके पास आउंगा।

यह मीटिंग गुरुग्राम में हुई। मीटिंग में नरेंद्र मोदी ने कहा कि एक वोट से अटल जी की सरकार गिरी और यह वोट इसी क्षेत्र का है। क्योंकि इस क्षेत्र में हम कांग्रेस को हराने में कामयाब नहीं हो पाते।

राव इंद्रजीत सिंह जी जो राव वीरेंद्र के पुत्र हैं, वो वहां से सांसद थे और इस बहन को जिताकर भेजेंगे तो इस एक वोट की पूर्ति होगी। इससे अटल जी की सरकार देश में दोबारा बनेगी।

इसी दौरान उन्होंने एक चादर बिछाई, उस पर एक कलश रखा गया और उन्होंने कहा कि मैं प्रचारक हूं, कभी कभी मेरा आना जाना होता अपने परिवार से। 5-6 साल पहले जब मैं अपनी मां से मिलने गया था तो चलते वक्त उन्होंने 11 रुपए मुझे दिए थे।

उन्होंने कहा था कि कभी तूझे आवश्यकता पर ये काम आएंगे, मेरा आशीर्वाद तेरे साथ है। तो मोदी जी ने अपनी जेब से अपनी मां द्वारा दिए 11 रुपए निकाले और कहा कि मुझे लगता है कि अपनी इस बहन को चुनाव लड़वा रहे हैं, इनके पास कुछ नहीं है तो इससे अच्छा योगदान मैं अपने जीवन में नहीं कर सकता।

तभी उन्होंने कलश के अंदर 11 रुपए डाले। वहां सभी से ये आग्रह किया कि अपनी जेब के अंदर किराये को छोड़कर जितने पैसे हैं, वे इस यज्ञ में आहुति देकर जाएं और हम सभी के लिए आश्यर्य था कि 1999 में एक घंटे के अंदर साढ़े 7 लाख रुपए उस चादर के ऊपर एकत्रित हो गए जिससे मेरे चुनाव की शुरूआत हुई, मुझे चुनाव लड़वाया गया और मैं वहां से सांसद बनी।

2. प्रश्न : आज कभी या फिर उस कभी के बाद आपकी पीएम नरेंद्र मोदी से चर्चा हुई क्या?

उत्तर : नरेंद्र मोदी तो गुजरात के सीएम बनकर चले गए थे लेकिन मैं राष्ट्रीय कार्यकारिणी की सदस्य रही। इसलिए स्वाभाविक है कि बैठकों के अंदर आना-जाना, मिलना होता था। लेकिन राजनीतिक चर्चाएं कम होकर व्यक्तिगत हालचाल ज्यादा होती थी। इसी कारण यही बातें पीएम मोदी की दिल को छूगई और फैसला लिया कि मुझे चुनाव लड़ना होगा।

3. प्रश्न : संसदीय बोर्ड का सदस्य होना छोटी बात नहीं है, बतौर महिला अपनी जगह बनाना कितना मुश्किल रहा राजनीति में?

उत्तर : देखिए, महिलाओं को हर क्षेत्र में पुरुषों से दोगुनी मेहनत करनी होती है, तब वो पहचान बना पाती हैं। लेकिन अब पिछले कुछ समय से महिलाओं ने हर क्षेत्र में अपनी पहचान बनाई भी है और पहले तो महिलाओं को सुना नहीं जाता था, अब महिलाओं को सुना भी जाता है।

हम कोरपोरेट वर्ल्ड को भी देखें तो उसके अंदर भी महिलाओं और पुरुषों के समान दायित्व होने के बावजूद सैलरी सलेब्स अलग होते थे। लेकिन अब समय बदला है, महिलाओं ने भी प्रूफ किया है और समाज ने भी उनकी पोटेंशियल को स्वीकारा है।

4. प्रश्न : महिलाओं के लिहाज से ये बदलाव आपको कब से महसूस हुआ है?

उत्तर : देखिए, राजनीति क्षेत्र में तो लगता है कि जब भाजपा ने यह तय किया कि अब संगठन में महिलाओं को 33 प्रतिशत रिजर्ववेशन देकर उन्हें आगे बढ़ाएंगे तो बहुत सी महिलाएं राजनीति क्षेत्र में आगे आने लगी। अनेक राज्य सरकारों ने ये तय किया कि हम लोकल बोर्डिंग के अंदर 50 प्रतिशत महिलाओं को टिकट देंगे तो राजनीतिक क्षेत्र में भी पढ़ी लिखी महिलाएं आने लगी।

ऐजुकेशन के अंदर जब महिलाओं को पढ़ने के लिए बढ़ावा दिया गया तो महिलाओं को एक पहचान मिलने लगी। हरियाणा की धरती से बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ का जो नारा मिला है, उसके बाद से बच्चियों की संख्या में भी वृद्धि हुई है, उनके पोषण, स्वास्थ्य में और उनकी एजुकेशन में उन्हें समानता की दृष्टि से देखा जाने लगा है।

5. प्रश्न : महिलाओं की भूमिका पर हम बात कर रहे हैं। लेकिन आज भी काफी संख्या में महिलाएं घर में है, प्रदेश की राजनीति हो या देश की राजनीति, जो महिलाओं के नंबर हैं, क्या उनसे आप संतुष्ट हैं?

उत्तर : मुझे लगता है कि हमें सकारात्मक पक्ष को ज्यादा देखना चाहिए। आप पिछली 3 लोकसभा का डाटा देखेंगे तो आज 17 प्रतिशत महिलाएं लोकसभा, संसद के अंदर हैं। पहले तो ये डाटा 9 प्रतिशत से ऊपर ही नहीं जाता है, हमेशा 10 प्रतिशत से नीचे रहता था। हम 33 प्रतिशत महिला रिजर्ववेशन की मांग करते हैं, 17 प्रतिशत के ऊपर महिलाएं अपनी ताकत के अंदर आज अगर महिलाएं संसद में पहुंची हैं, इस सकारात्मक पक्ष को देखेंगे, तो आने वाले समय में जो अभी दिखता है कि हम पीछे हैं, हम पीछे नहीं रहेंगे।

6. प्रश्न : गांव में जो महिलाएं सरपंच होती हैं, क्या वो सरपंच ही रहती हैं? उनके पति ही ज्यादा निर्णय करते हैं? वे सिर्फ नाम की महिला सरपंच होती हैं?

उत्तर : देखिए, अभी इसमें बदलाव आना शुरू हुआ है, जब से पढ़ी लिखी पंचायतों का कंसेप्ट आया है। पढ़ी लिखी महिलाएं, खासतौर पर यंग गर्ल्स सरपंच बनकर बाहर आ रही हैं, तो वे अपने निर्णय लेने में समर्थ हैं। कुछ प्रतिशत आज भी हैं लेकिन बदलते समय के साथ में वो भी बदलेगी।

Roshan Kumar

Journalist By Passion And Soul. (Politics Is Love) EX- Delhi School Of Journalism, University Of Delhi.

Recent Posts

क्या आप भी फेंक देते हैं इस सफेद सब्जी के पत्ते? हो जाएं सावधान इसी में छिपा है सेहत का खजाना, जानिए ये अनोखे 7 फायदे

Radish Leaves: सर्दियां आते ही सब्जी बाजार में तरह-तरह की हरी पत्तेदार सब्जियां भर जाती…

1 min ago

The Sabarmati Report Review: 50 करोड़ में गोधरा कांड पर बनी ये फिल्म, जानें कैसी है Vikrant Massey लेकर आए दमदार कहानी

The Sabarmati Report Review: 50 करोड़ में गोधरा कांड पर बनी ये फिल्म, जानें कैसी…

6 mins ago

देशभर में आज मनाया जा रहा गुरु नानक जयंती, जानिए उनकी कुछ शिक्षाओं के बारे में

Guru Nanak Jayanti 2024: इस साल गुरु नानक जयंती 15 नवंबर यानी आज मनाई जा…

17 mins ago

राजस्थान HC का अहम फैसला! नहीं होगा अब ये 4 शब्द बोलने पर SC/ST एक्ट के तहत मुकदमा

India News (इंडिया न्यूज़), Rajasthan High Court:  राजस्थान हाईकोर्ट ने एससी-एसटी एक्ट के तहत दर्ज…

20 mins ago