इंडिया न्यूज़ (नई दिल्ली, Centre tells SC It’s for Parliament to frame law on Uniform Civil Code): केंद्र ने मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट से कहा कि वह संसद को देश में समान नागरिक संहिता पर कोई कानून बनाने या उसे लागू करने का निर्देश नहीं दे सकता है।
कानून और न्याय मंत्रालय ने अपने हलफनामे में कहा कि नीति का मामला जनता के चुने हुए प्रतिनिधियों को तय करना है और इस संबंध में केंद्र द्वारा कोई निर्देश जारी नहीं गया है। मंत्रालय ने शीर्ष अदालत से कहा, “विधायिका को कानून बनाना या नहीं बनाना है यह उसके ऊपर है।”
बीजेपी नेता ने दायर की थी याचिका
यह हलफनामा, अधिवक्ता और बीजेपी नेता अश्विनी उपाध्याय की याचिका पर दायर किया गया था जिसमें उत्तराधिकार, विरासत, गोद लेने, विवाह, तलाक, रखरखाव और गुजारा भत्ता जैसे व्यक्तिगत कानूनों में एकरूपता की मांग की गई थी।
केंद्र ने याचिका को खारिज करने की मांग करते हुए कहा, “हमारे संवैधानिक प्रावधानों के तहत, संसद कानून बनाने के लिए संप्रभु शक्ति का प्रयोग करती है और कोई बाहरी शक्ति या प्राधिकरण उसे कानून अधिनियमित करने का आदेश जारी नहीं कर सकता है।”
इसमें आगे कहा कि “भारतीय संविधान का अनुच्छेद 44 एक निर्देशक सिद्धांत है जिसमें राज्य को सभी नागरिकों के लिए समान नागरिक संहिता को सुरक्षित करने का प्रयास करने की आवश्यकता है। अनुच्छेद 44 संविधान की प्रस्तावना में निहित “धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक गणराज्य” की अवधारणा को मजबूत करने के लिए है।”
मामला 22वें विधि आयोग के सामने रखा जाएगा
हलकनामे में कहा गया “यह प्रावधान (अनुच्छेद 44 ) समुदायों को उन मामलों पर साझा मंच पर लाकर भारत के एकीकरण को प्रभावित करने के लिए प्रदान किया गया है जो वर्तमान में विविध व्यक्तिगत कानूनों द्वारा शासित हैं। इस प्रकार, विषय वस्तु के महत्व और संवेदनशीलता को देखते हुए, विभिन्न व्यक्तिगत कानूनों का गहन अध्ययन करने की आवश्यकता है।”
सरकार ने शीर्ष अदालत को बताया कि “वह इस मामले से अवगत है और 21वें विधि आयोग ने कई हितधारकों से चर्चा करके इस मुद्दे की विस्तृत जांच की, हालांकि, उक्त आयोग का कार्यकाल अगस्त 2018 में समाप्त होने के बाद अब इस मामले को 22वें विधि आयोग के सामने रखा जाएगा।”
मंत्रालय ने कहा, “जब भी इस मामले में विधि आयोग की रिपोर्ट प्राप्त होगी, सरकार मामले में शामिल विभिन्न हितधारकों के परामर्श से इसकी जांच करेगी।”
याचिकाओं में संविधान की भावना और अंतरराष्ट्रीय सम्मेलनों को ध्यान में रखते हुए देश के सभी नागरिकों के लिए तलाक, गुजारा भत्ता, उत्तराधिकार, विरासत, गोद लेने, शादी और भरण-पोषण के लिए एक समान आधार की मांग करते हुए सरकार को समान नागरिक संहिता बनाने के लिए निर्देश देने की मांग की गई थी.