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इतिहास की स्मृतियों से, जिन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष बनने के लिए छोड़ी मुख्यमंत्री की कुर्सी

इंडिया न्यूज़ (नई दिल्ली, congress leaders resign cm post to become party president): सोनिया गांधी, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा में से कोई आगमी कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव नही लड़ेगा, यह लगभग यह तय हो गया है की 25 वर्षो में पहली बार ऐसा होगा जब कांग्रेस अध्यक्ष पद की कुर्सी पर कोई गैर-गाँधी परिवार का व्यक्ति होगा.

पिछली बार पार्टी में गैर-गांधी अध्यक्ष 1997 के साल में हुआ था, तब सीताराम केसरी ने शरद पवार और राजेश पायलट को हराया था। सोनिया गांधी ने 1998 में पदभार संभाला था और तब से वह पार्टी का नेतृत्व कर रही हैं। राहुल गांधी ने 2017 और 2019 के बीच कुछ समय के लिए पार्टी प्रमुख के रूप में कार्य किया.

सोनिया गांधी सबसे लंबे समय से अध्यक्ष

कांग्रेस के इतिहास में सोनिया गांधी कांग्रेस की सबसे लंबे समय तक अध्यक्ष रही हैं, कांग्रेस पार्टी का गठन साल 1885 में ब्रिटिश सिविल सेवा अधिकारी एलन ऑक्टेवियन ह्यूम द्वारा किया गया था। तब से अब तक 61 लोग कांग्रेस अध्यक्ष का पद संभाल चुके है। आजादी के 75 सालों में से नेहरू-गांधी परिवार का सदस्य करीब 40 साल से पार्टी का अध्यक्ष रहा है। 1947 के बाद से, पार्टी का नेतृत्व 16 लोगों ने किया है, जिनमें से पांच नेहरू-गांधी परिवार से हैं.

नवीनतम चुनाव 17 अक्टूबर को होगा और पार्टी के नए अध्यक्ष की घोषणा 19 अक्टूबर को की जाएगी। राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को व्यापक रूप से गांधी परिवार के पसंदीदा उम्मीदवार के रूप में देखा जाता था। हालांकि, जयपुर में ताजा राजनीतिक ड्रामा ने पार्टी में हलचल मचा दी है.

इस समय आधिकारिक तौर पर एकमात्र कांग्रेसी नेता शशि थरूर हैं जिनका चुनाव लड़ना तय है। वरिष्ठ नेता कमलनाथ, पवन कुमार बंसल और अंबिका सोनी ने अब तक कहा है कि उन्हें पार्टी का नेतृत्व करने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई है। कांग्रेस अध्यक्ष चुनाव के लिए नामांकन दाखिल करने की आखिरी तारीख 30 सितंबर है.

तीन बार मुख्यमंत्रियों ने पद छोड़ा

1968 में कर्नाटक के तत्कालीन सीएम एस निजलिंगप्पा (1968-69) ने पार्टी अध्यक्ष बनने के लिए अपना पद छोड़ दिया। यह एक ऐसा निर्णय था जिसके लिए उन्होंने हमेशा अफ़सोस किया क्योंकि वह सिर्फ एक साल के लिए ही कांग्रेस अध्यक्ष रह पाए थे.

अपनी आत्मकथा, माई लाइफ एंड पॉलिटिक्स में, निजलिंगप्पा ने कहा: “कई कारणों से, मैं अभी भी उस निर्णय पर पछताता हूं। यह सभी दृष्टिकोणों से बेहतर होता अगर मैं मुख्यमंत्री के रूप में अपने काम को जारी रखता और इस भारी जिम्मेदारी को स्वीकार नहीं करता।” लेकिन गहलोत के विपरीत, निजलिंगप्पा को अपना उत्तराधिकारी चुनने का विकल्प दिया गया था.

नवंबर 1954 में, सौराष्ट्र के मुख्यमंत्री यूएन ढेबर (1955-59) को जवाहरलाल नेहरू द्वारा दिल्ली ले जाया गया था, हालाँकि तब यह सबको पता था कि राज्य को बॉम्बे में मिला दिया जाएगा, नवंबर 1956 में किया गया.

के कामराज (1964-67) ने अक्टूबर 1963 में स्वेच्छा से तमिलनाडु के मुख्यमंत्री का पद छोड़ दिया ताकि वह कांग्रेस को उसके अध्यक्ष के रूप में राष्ट्रीय स्तर पर फिर से मजबूत कर सके.

दिलचस्प बात यह है कि 1962 के तमिलनाडु विधानसभा चुनाव के बाद कामराज ने कांग्रेस के लिए जीत हासिल की और 1963 में मुख्यमंत्री की कुर्सी एम.भक्तवत्सलम को सौप दी, इसका बाद पार्टी कभी राज्य में अपने दम पर सत्ता में नही आई। नीलम संजीव रेड्डी (1960 -63) एकमात्र कांग्रेस अध्यक्ष थे जो मुख्यमंत्री पद पर बने रहे थे.

Roshan Kumar

Journalist By Passion And Soul. (Politics Is Love) EX- Delhi School Of Journalism, University Of Delhi.

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