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खरगे की जीत को लेकर कोई शक नहीं, लेकिन सवाल-क्या मुंह लगी चौकड़ी को हटा पाएंगे

अजीत मैदोला, New Delhi News। Congress President Election: मल्लिकार्जुन खरगे इस माह की 18 तारीख को कांग्रेस के 98 वें राष्ट्रीय अध्य्क्ष बन जाएंगे। उनकी जीत को लेकर कोई आशंका अभी तक नहीं है। क्योंकि उन्हें गांधी परिवार का पूरा समर्थन है। हालंकि गांधी परिवार नामांकन के दिन गायब था। शशि थरूर भले ही दूसरे प्रत्याशी जरूर है, लेकिन महज औपचारिकता के लिए। कांग्रेस ने उन्हें इसलिए खड़ा किया कि देश को यह संदेश दिया जा सके पार्टी में लोकतंत्र है।

वोमेश चंद बनर्जी 1885 में बने थे कांग्रेस के पहले अध्यक्ष

दुनिया की अकेली पार्टी है जहां लोकतान्त्रिक तरीके से अध्य्क्ष चुना जाता है। या कह सकते हैं दिल बहलाने के लिए यह बात ठीक है, लेकिन सच्चाई पूरी दुनिया जानती है कि चुनाव कितना लोकतांत्रिक है। लगभग 135 साल पहले काग्रेस नाम के संगठन का गठन आजादी की लड़ाई के लिए 1885 में किया गया था। पहले अध्य्क्ष वोमेश चंद बनर्जी बने थे।

इन 135 साल में सुभाष चंद बोस, लाला लाजपत राय, महात्मा गांधी, बल्ल्भ भाई पटेल, मदन मोहन मालवीय, मोतीलाल नेहरू, जवाहर लाल नेहरू, इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, पीवी नरसिंह राव, सीताराम केसरी जैसे नेताओं के बाद 1998 में सोनिया गांधी ने पार्टी की कमान संभाली। तब से वे एक तरह से लगातार अध्य्क्ष बनी है।

24 साल लगातार अध्य्क्ष बने रहने का नया रिकार्ड बनाया। 2017 से 2019 के बीच दो साल के लिए उनके बेटे राहुल गांधी जरूर अध्य्क्ष बने थे, लेकिन लोकसभा चुनावो में हुई करारी हार के बाद बिना अध्य्क्ष के पार्टी चला रहे है।

1998 में सोनिया गांधी ने संभाली थी कमान

सीताराम केसरी को जबरन हटा कर 1998 में सोनिया गांधी राजनीति में आई और पार्टी की कमान संभाली। तब से गांधी परिवार का पार्टी पर राज कर रहा है। लगभग 24 साल बाद 2022 में गांधी परिवार ने गैर गांधी मल्लिकार्जुन खरगे को मौका देने का मन बनाया। जिससे पार्टी में आगे जो भी हार हो उसका ठीकरा अध्य्क्ष के सिर पर और जीत गए तो राहुल गांधी की जय जय कार। मतलब 135 साल पुरानी पार्टी के अध्य्क्ष का चुनाव मजाक बना दिया गया।

सहमति से अध्यक्ष भी नहीं बना पाई कांग्रेस

अनुभव और कद की बात करें तो 80 साल के खरगे सरकार और संगठन के कई पदों पर रहे है। बहुत सम्मानित नेता है। लेकिन जिस तरह से उन्हे प्रत्याशी बनाया गया वह हैरान करने वाला था। सबसे बुरे दौर से गुजर रही कांग्रेस अपने लिए अध्य्क्ष के प्रत्याशी का नाम भी सहमति से तय नहीं कर पाई।

गांधी परिवार ने पहले राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को हरी झंडी दी, फिर अचानक उनको मना कर दिया गया। गांधी परिवार को जयपुर में विधायकों की बैठक को लेकर इतना उलझा दिया कि उनके सबसे भरोसेमंद नेता गहलोत को उनसे दूर कर दिया गया।

गहलोत के बाद पार्टी में जो कुछ हुआ उसने बनने वाले नए अध्य्क्ष के लिए कई चुनौतियां खड़ी कर दी। कोई कुछ भी कहे गांधी परिवार ने मजबूरी में खरगे को उम्मीदवार बनाया है। खरगे भी जानते है आज के हालात में कांग्रेस के अध्य्क्ष का क्या मतलब।

50 साल से वफादार के साथ भी की जा रही साजिश

खास तोर पर जब नेता आपस में ही एक दूसरे को निपटाने की सोच रहे हों। अनुभव और उम्र का भी लिहाज नहीं करते हों। राजस्थान में जो कुछ हुआ उससे शायद खरगे भी दुखी थे। उनको भी जरूर यही दु:ख रहा होगा कि एक नेता जो 50 साल से पार्टी का वफादार रहा उसके साथ किस तरह की साजिश की जा रही है, लेकिन वह कुछ कर पाने की स्थिति में थे नहीं।

गांधी परिवार जैसे अधिकार नहीं होंगे अध्यक्ष के

खरगे भले ही गैर गांधी अध्य्क्ष बन जाएंगे, लेकिन उनके अधिकार उस तरह के नहीं होंगे जिस तरह सोनिया गांधी, राहुल गांधी और अब प्रियंका गांधी के होंगे। असल आलाकमान आज भी गांधी परिवार ही होगा। 24 अकबर रोड़ में खरगे बैठेंगे जरूर, लेकिन गांधी परिवार के मुंह लगे पदाधिकारी उनकी कितनी सुनेंगे यह देखना होगा।

खरगे के पास अब पाने के लिए कुछ नहीं

खरगे के पास अब पाने के लिए कुछ नहीं है। कांग्रेस का सर्वोच्च पद उनको 18 अक्टूबर को मिल जाएगा। अगर खरगे उन लोगों को जिन्होंने अपने हितों के लिए गांधी परिवार को अंधेरे में रख पार्टी को सबसे बुरे दौर से अगर बाहर का रास्ता दिखाने में सफल रहे तो शायद इतिहास में उनको जगह मिल जाएगी। पार्टी की हालत में कुछ सुधार हो जाएगा।

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Naresh Kumar

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