इंडिया न्यूज़ (दिल्ली): मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी CPI (M) ने केन्द्र सरकार पर हिंदी को देश की राजभाषा बनाने और जबरन थोपने का प्रयास करने का आरोप लगाया है। सरकार पर आरोप लगाते हुए माकपा की ओर से कहा गया गुरुवार को कहा कि संसद की राजभाषा समिति की हालिया रिपोर्ट इसका जीता जागता उदाहरण है।
पार्टी के मुखपत्र पीपुल्स डेमोक्रेसी के संपादकीय में दावा किया गया है कि यदि गृह मंत्री अमित शाह की अध्यक्षता वाली संसद की राजभाषा समिति की सिफारिशों को लागू किया जाता है, तो इसका मतलब यह होगा कि गैर-हिंदी पृष्ठभूमि के छात्रो को भी इसमें अर्हता प्राप्त करनी होगी। माकपा ने इसका विरोध करते हुए कहा कि इससे समस्या का समाधान नहीं होगा क्योंकि हिंदी भाषी राज्यों में केंद्रीय विश्वविद्यालय या आईआईटी केवल उन छात्रों को प्रवेश देंगे जिनको हिन्दी आती हैं। यह उन लोगों के साथ स्पष्ट रूप से भेदभावपूर्ण होगा जिनकी मातृभाषा हिंदी नहीं है।
माकपा ने सम्पादकीय में जताया विरोध
संपादकीय में आगे कहा गया है कि एक लोकतांत्रिक भाषा नीति की आवश्यकता है कि आठवीं अनुसूची में सूचीबद्ध सभी 22 भाषाओं को राष्ट्रीय भाषाओं के रूप में समान आधार पर माना जाए। “अमित शाह लगातार इस विचार को आगे बढ़ा रहे हैं। यह आरएसएस के ‘एक राष्ट्र, एक भाषा, एक संस्कृति’ के नारे के अनुरूप है। भारत जैसे बहुभाषी, बहु-सांस्कृतिक, विविध देश में, हिंदी को थोपने के प्रयासों से केवल कलह और फूट ही पैदा होगी।”