India News (इंडिया न्यूज), ECI: हमारे देश में नेताओं के बयान अक्सर चर्चा में आते रहते हैं। कुछ नेता बोलने की आजादी का फायदा इस तरह उठाते हैं कि वो भूल जाते हैं कि उनकी मर्यादा क्या है। अपने भाषण में अपमान से भरे शब्दों का इस्तेमाल कर एक दूसरे पर हमला करते हैं। अब ऐसे ही नेताओं पर लगाम लगाने के लिए भारतीय चुनाव आयोग (Election Commission of India – ECI) ने अपनी कमर कस ली है। इसके लिए आयोग ने राजनीतिक दलों से सार्वजनिक चर्चा में विकलांग व्यक्तियों (पीडब्ल्यूडी) के लिए अपमानजनक शब्दों का इस्तेमाल करने से बचने को कहा।

ECI ने अपना सख्त रुख

ईसीआई ने कहा, “अपमानजनक भाषा के सामान्य उदाहरण गूंगा (गूंगा), मंदबुद्धि (पागल, सिरफिरा), अंधा (अंधा, काना), बहरा (बेहरा) [और] लंगड़ा (लंगड़ा, लूला) जैसे शब्द हैं।” इसमें कहा गया है कि पार्टियों के सार्वजनिक भाषण और अभियान भी सभी के लिए सुलभ होने चाहिए। ECI ने यह फैसला इसलिए लिया है ताकि वर्षो से राजनीतिक दलों और उनके नेताओं से द्वारा किए जा रहे द‍िव्‍यांगों के लिए अपमानजनक शब्दों  पर रोक लगाया जा सके।

भारत न‍िर्वाचन आयोग (ECI) ने राजनीतिक दलों को ऐसे शब्‍दों को लेकर गाइडलाइन जारी की है।  इसके साथ ही आयोग ने राजनीत‍िक दलों को अपनी वेबसाइट, सोशल मीडिया, भाषण आदि को द‍िव्‍यांगों की पहुंच के ल‍िए ज्‍यादा सुलभ और सुगम बनाने का निर्देश दिया गया है। इसके लिए आयोग ने एक प्रेस नोट जारी किया है। जिसमें नई गाइडलाइन को विस्तार से बाताया गया है।

ECI की नई गाइडलाइन

  • राजनीतिक दलों और उनके प्रतिनिधियों को किसी भी सार्वजनिक बयान/भाषण के दौरान, अपने लेखन/लेख/आउटरीच सामग्री या राजनीतिक अभियान में विकलांगता या दिव्यांगों पर गलत/अपमानजनक/अपमानजनक संदर्भों का उपयोग नहीं करना चाहिए।
  • राजनीतिक दलों और उनके प्रतिनिधियों को किसी भी सार्वजनिक भाषण के दौरान, अपने लेखन/लेखों या राजनीतिक अभियान में मानवीय अक्षमता के संदर्भ में विकलांगता/पीडब्ल्यूडी या विकलांगता/पीडब्ल्यूडी से संबंधित शब्दों का उपयोग नहीं करना चाहिए।
  • राजनीतिक दलों और उनके प्रतिनिधियों को विकलांगता/पीडब्ल्यूडी से संबंधित टिप्पणियों से सख्ती से बचना चाहिए जो आक्रामक हो सकती हैं या रूढ़िवादिता और पूर्वाग्रहों को कायम रख सकती हैं।
  • बिंदु (i), (ii) और (iii) में उल्लिखित ऐसी भाषा, शब्दावली, संदर्भ, उपहास, अपमानजनक संदर्भ या विकलांग व्यक्तियों के अपमान के किसी भी उपयोग पर विकलांग व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम 2016 की धारा 92 के प्रावधान लागू हो सकते हैं।
  • भाषणों, सोशल मीडिया पोस्ट, विज्ञापनों और प्रेस विज्ञप्तियों सहित सभी अभियान सामग्रियों को राजनीतिक दल के भीतर एक आंतरिक समीक्षा प्रक्रिया से गुजरना होगा ताकि व्यक्तियों/पीडब्ल्यूडी के प्रति आक्रामक या भेदभावपूर्ण, सक्षम भाषा के किसी भी उदाहरण की पहचान की जा सके और उसे सुधारा जा सके।
  • सभी राजनीतिक दलों को यह सुनिश्चित करना चाहिए और अपनी वेबसाइट पर घोषित करना चाहिए कि वे विकलांगता और लिंग संवेदनशील भाषा और शिष्टाचार का उपयोग करेंगे और साथ ही अंतर्निहित मानवीय समानता, समानता, गरिमा और स्वायत्तता का सम्मान करेंगे।
  • सभी राजनीतिक दल सीआरपीडी (विकलांग व्यक्तियों के अधिकारों पर कन्वेंशन) में उल्लिखित अधिकार आधारित शब्दावली का उपयोग करेंगे और किसी अन्य शब्दावली की ओर झुकाव नहीं करेंगे।
  • सभी राजनीतिक दल अपने सार्वजनिक भाषणों/अभियानों/गतिविधियों/कार्यक्रमों को सभी नागरिकों के लिए सुलभ बनाएंगे।
  • सभी राजनीतिक दल विकलांग व्यक्तियों के साथ सुलभ बातचीत की अनुमति देने के लिए अपनी वेबसाइट और सोशल मीडिया सामग्री को डिजिटल रूप से सुलभ बना सकते हैं।
  • सभी राजनीतिक दल राजनीतिक प्रक्रिया के सभी स्तरों पर पार्टी कार्यकर्ताओं के लिए विकलांगता पर एक प्रशिक्षण मॉड्यूल प्रदान कर सकते हैं और सक्षम भाषा के उपयोग से संबंधित विकलांग व्यक्तियों की शिकायतों को सुनने के लिए नोडल प्राधिकारी नियुक्त करेंगे।
  • राजनीतिक दल पार्टी और जनता के व्यवहार संबंधी अवरोध को दूर करने और समान अवसर प्रदान करने के लिए सदस्यों और पार्टी कार्यकर्ताओं जैसे स्तरों पर अधिक दिव्यांगों को शामिल करने का प्रयास कर सकते हैं।

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