Pawar vs Pawar: एनसीपी का नाम और निशान किसे मिलेगा? जानिए किस आधार पर चुनाव आयोग लेता है फैसला

India News (इंडिया न्यूज़), Pawar vs Pawar, मुंबई: महाराष्ट्र में एनसीपी का राजनीतिक संकट अब चुनाव आयोग के दरवाजे पर है। चुनाव आयोग को फैसला लेना है की कौन असली एनसीपी है और किसी पक्ष को एनसीपी का ‘घड़ी’ सिंबल दिया जाएगा। चुनाव आयोग ने पूर्व में ऐसे कई फैसले दिए है जिसके आधार पर कयास लगाए जा रहे है की पार्टी दो फाड़ हो जाएगी। लेकिन घड़ी का निशान किसे मिलेगा इसको लेकर जानकार भी आशंकित है।

एनसीपी के दोनों पक्षों ने अपना दावा किया है की सिंबल उनके पास रहेगा। इसपर शरद पवार ने कहा कि मेरे साथ जो भी लोग हैं, वो सिंबल की चिंता न करे। हमें सत्ता में लाने वाले लोग और पार्टी कार्यकर्ता हमारे साथ हैं। मैं किसी को भी पार्टी का चुनाव चिन्‍ह छीनने नहीं दूंगा। वही अजित पवार ने इस पर कहा कि आप 83 साल के हो गए हैं, अब रुक जाइए। पार्टी में नए नेतृत्व को आगे बढ़ने दीजिए।

पार्टी का संविधान क्या कहता है?

साल 1999 में कांग्रेस से अलग होकर एनसीपी का गठन किया गया था। पार्टी का संविधान कांग्रेस के संविधान से काफी मिलता है। संविधान के अनुसार, पार्टी के नेशनल वर्किंग कमेटी के पास सबसे ज्यादा पावर है। संविधान के आर्टिकल-21 (3) का कहता है कि कमेटी कोई भी फैसला ले सकती है। पार्टी का मर्जर हो और संविधान में बदलाव यह सब फैसला वर्किंग कमेटी ही ले सकती है। प्रस्ताव पर दो तिहाई सदस्यों की सहमति जरूरी है।

बगावत के बाद पहला काम शरद पवार ने प्रफुल्ल पटेल और सुनील तटकरे को वर्किंग कमेटी ने हटाने का ही लिया था। 6 जुलाई को दिल्ली में नेशनल वर्किंग कमेटी की बैठक भी बुलाई गई। इसमें शरद पवार ने अपने पक्षों में 8 प्रस्ताव पास करावाया। जिसमें बागी नेताओं का पार्टी से निकालने का प्रस्ताव भी था। जानकारों ने अनुसार, शरद का पक्ष चुनाव आयोग में भारी हो सकता है।

आयोग का नियम क्या है?

द इलेक्शन सिंबल ऑर्डर, 1968 के तहत चुनाव आयोग दलों के झगड़े का फैसला करता है। आर्टिकल- 15 के अनुसार चुनाव चिन्ह का फैसला होता है। नियम के अनुसार-

1– विवाद की स्थिति को सुलझाने के लिए सबसे पहले आयोग पार्टी के संविधान का सहारा लेती है। आयोग यह देखती है कि पार्टी का संगठन का चुनाव कितने लोकतांत्रिक तरीके से हुआ है।

2- संगठन के पदों पर काबिज नेताओं की राय को आयोग सबसे पहले तरजीह देती है। अगर, इसमें अस्पष्टता रहती है तो फिर आयोग विधायक और सांसदों की संख्या के आधार पर फैसला देती है। दिव्य मराठी के मुताबिक अजित पवार के गुट के तरफ से आयोग के पास 5000 और शरद गुट ने 3000 एफिडेविट जमा किए गए है।

3- सिंबल पर ज्यादा विवाद होने पर चुनाव आयोग सिंबल जब्त कर लेता है। इसमें काफी वक्त लगता है। माना जा रहा की आयोग दोनों पक्षों को अस्थाई सिंगल दे सकता है।

कोर्ट के फैसले क्या कहते है?

  • 1971-72 में सादिक अली बनाम चुनाव आयोग के फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि आयोग अपने अधिकार का उपयोग कर इस पर फैसला ले सकती है। संगठन के बहुमत को पहले देखा जाना चाहिए।
  • एआईएडीएमके विवाद में भी संगठन को तरजीह देते हुए मद्रास हाईकोर्ट और बाद में सुप्रीम कोर्ट ने पलानीस्वामी को पार्टी की कमान देने के पक्ष में फैसला दिया था।
  • शिवसेना विवाद में भी सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि विधायक दल और राजनीतिक दल में फर्क होता है। स्पीकर को राजनीतिक दल के व्हिप को मान्यता देनी चाहिए।

पिछले दो मामले में आयोग का फैसला-

शिवसेना विवाद- महाराष्ट्र में पिछले साल हुए शिवसेना में शिंदे और उद्धव गुट विवाद पर दिए अपने फैसले में चुनाव आयोग ने कहा था कि शिवसेना का मौजूदा संविधान अलोकतांत्रिक है। बिना किसी चुनाव के पार्टी के पदाधिकारियों को अलोकतांत्रिक रूप से नियुक्त करके इसे विकृत कर दिया गया है।

शिवसेना के संविधान में 2018 में बदलाव किया गया, लेकिन इसकी कोई जानकारी आयोग को नहीं दी गई। ऐसे में ये बदलाव लागू नहीं होते हैं। 1999 में चुनाव आयोग द्वारा शिवसेना के मूल संविधान के अलोकतांत्रिक मानदंडों को स्वीकार नहीं किया गया था। इन मानदंड़ों को गुप्त तरीके से वापस लाया गया। इसकी वजह से पार्टी एक जागीर के समान हो गई।

शिंदे के पास बहुमत

एकनाथ शिंदे गुट के पास एकीकृत शिवसेना के टिकट पर जीतकर आए कुल 55 विजयी विधायकों में से 40 विधायक हैं। पार्टी में कुल 47,82,440 वोटों में से 76 फीसदी यानी 36,57,327 वोटों के दस्तावेज शिंदे गुट ने अपने पक्ष में पेश किए थे। वहीं, उद्धव ठाकरे गुट ने शिवसेना पर पारिवारिक विरासत के साथ ही राजनीतिक विरासत का दावा करते हुए 15 विधायकों और कुल 47,82,440 वोट में से सिर्फ 11,25,113 वोटों के ही दस्तावेजी सबूत पेश किए। यानी कुल 23.5 फीसदी वोट।

लोकसभा चुनावों में शिंदे गुट का समर्थन करने वाले 13 सांसदों ने कुल 1,02,45,143 वोटों में से 74,88,634 मत प्राप्त किए थे। यह पार्टी के कुल 18 सदस्यों के पक्ष में डाले गए लगभग 73 प्रतिशत मत हैं। उधर, ठाकरे गुट का समर्थन करने वाले 5 सांसदों द्वारा 27,56,509 वोट हासिल किए गए थे, यह कुल मतों का 27 फीसदी होता है। शिवसेना का तीर-कमान शिंदे गुट को दे दिया गया था। वही उद्धव गुट को मशाल निशान दिया गया था।

लोक जनशक्ति पार्टी विवाद- बिहार में लोक जनशक्ति पार्टी के अंदर जून 2021 में विवाद हुआ था। रामविलास पासवान के निधन के बाद उनके भाई पशुपित पारस ने खुद को पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष बना लिया था। चिराग पासवान और पशुपति पारस ने पार्टी पर अपना दावा ठोंका था। आयोग ने अभी तक इसपर अंतिम फैसला नहीं दिया है। अक्टूबर 2021 में अंतिम फैसले आने तक आयोग ने पार्टी का निशान बंगले को सीज कर लिया। चिराग गुट को हेलिकॉप्टर और पारस गुट को सिलाई मशीन आंवटित किया गया।

अजित पवार की मुश्किल

अजित गुट के पास अभी 32 विधायकों का समर्थन है। सदस्यता बचाए रखने के लिए 36 विधायकों की जरूरत है। दल-बदल कानून के तहत वह 36 विधायकों का समर्थन पत्र जमा नहीं करेंगे तो विधायकी जा सकती है। पार्टी के 5 सांसद लोकसभा में है। सांसद सुनील तटकरे को छोड़ दे तो सभी शरद पवार के साथ है।

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Roshan Kumar

Journalist By Passion And Soul. (Politics Is Love) EX- Delhi School Of Journalism, University Of Delhi.

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