इंडिया न्यूज़ (दिल्ली, 8 crore Fake cancer medicine racket busted in delhi, every year ten lakh people die due to fake medicines): देश में कैंसर के मरीजों के लिए दिल दहला देने वाला मामला सामने आया है। दिल्ली में एक अंतरराष्ट्रीय रैकेट को पकड़ा गया है, जो नकली कैंसर की दवाओं की सप्लाई और मैन्युफैक्चरिंग में जुड़ा हुआ था।
मामले में एक एमबीबीएस डॉक्टर के अलावा एमबीए पासआउट व्यक्ति और एक इंजीनियर समेत कुल 7 आरोपी गिरफ्तार किए गए हैं।
फैक्ट्री का वीडियो
हरियाणा के सोनीपत में मैन्युफैक्चरिंग यूनिट चलाई जा रही थी। नकली कैंसर की दवाओं का गोदाम एनसीआर के गाजियाबाद में था। यह गैंग पीड़ितों की जिंदगी से खिलवाड़ कर रहा था और उन्हें झूठी उम्मीद बेच रहा था।
पकड़ी गई दवाओं की कीमत करीब 8 करोड़ है जिसे 20 अंतरराष्ट्रीय ब्रांड के नाम से बेचा जा रहा था.
दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच के मुताबिक उन्हें कुछ महत्वपूर्ण इनपुट मिले थे कि लंबे समय से नकली कैंसर की दवाओं की आपूर्ति अंतर राज्य स्तर पर की जा रही है। कैंसर के मरीजों को टारगेट करके उन्हें नक़ली कैंसर की दवाई बेची जा रही थी। इसके लिए पुलिस की एक टीम तैयार की गई, क्राइम ब्रांच ने इस पर काम करना शुरू किया।
सबसे पहले जानकारी मिली कि एनसीआर के गाजियाबाद के ट्रॉनिका सिटी में एक गोदाम चल रहा है जहां पर नकली दवाइयों को एकत्रित करके रखा जाता है। यहीं पर पैकिंग भी की जाती थी। इस यूनिट को ऑपरेट करने वाला कोई और नहीं बल्कि एक डॉक्टर है जिसका नाम पवित्रा प्रधान है। इन दवाइयों की डिलीवरी कोरियर के माध्यम से की जाती थी।
पुलिस को सूचना मिली कि प्रगति मैदान के पास दवाई की सप्लाई होने वाली है जिसमें एक आरोपी पकड़ा गया और उससे बैग बरामद हुआ। जिसने गोदाम के बारे में बताया। इसी कड़ी में पुलिस ने आगे की पूछताछ की तो बड़ा खुलासा होता चला गया।
मामले के तार चीन से भी जुड़े हुए हैं। पुलिस पूछताछ में पता चला है कि डॉक्टर पवित्र नारायण प्रधान ने साल 2012 में चीन से एमबीबीएस की डिग्री ली थी। इसी दौरान उसकी मुलाकात उसके बैचमेट डॉक्टर से हुई जो बांग्लादेश का रहने वाला है। उसी ने डॉक्टर पवित्रा नारायण को बताया था कि वह एक ऐसी सामग्री उपलब्ध करा देता है जिसे नकली दवाओं का निर्माण किया जाता है।
यह भी बताया गया कि इन दवाइयों की मांग भारत के साथ-साथ चीन में भी है जो अत्यधिक महंगी होती हैं। इन नकली दवाओं को बेचकर मोटी कमाई की जा सकती है। इसके बाद डॉक्टर पवित्रा नारायण ने अपने चचेरे भाई शुभम मन्ना और अन्य साथियों को शामिल किया और नकली दवाइयों का निर्माण शुरू कर दिया।
पैकेजिंग और डिजाइन का कार्य करके दवाइयों के पैकेट देहरादून और नोएडा में प्रिंट करवाए गए थे। पूरी फैक्ट्री सोनीपत हरियाणा में लगाई गई और कैप्सूल तैयार किए गए। बाद में पैकेजिंग का कार्य गाजियाबाद के लोनी के ट्रोनिका सिटी में होने लगा और सप्लाई का कार्य शुरू कर दिया गया।
आरोपियों की निशानदेही पर ट्रोनिका सिटी में भी छापेमारी की गई और दवाइयों की बड़ी खेप बरामद हुई। डॉक्टर पवित्रा की निशानदेही पर बाकी आरोपियों को भी पकड़ लिया गया। आधुनिक मशीनें और अन्य उपकरण भी फैक्ट्री में से बरामद किए गए हैं। इनमें से एक आरोपी को चंडीगढ़ से गिरफ्तार किया गया जो खाली कैप्सूल मुहैया कराया था। ठगी के रुपयों से आरोपियों ने कई प्लॉट खरीदे थे।
इसके अलावा उन प्लॉट पर फ्लैट भी बना रहे थे। डॉक्टर पवित्रा ने पश्चिम बंगाल के दुर्गापुर में जमीनों में भी निवेश किया हुआ है और नेपाल में जमीन खरीदने के लिए पैसे दिए हुए हैं।
खास बात यह है कि डॉ पवित्र नारायण प्रधान ने चीन विश्वविद्यालय से एमबीबीएस किया है। वो बताता था की एमबीबीएस के बाद वह जीटीबी अस्पताल, सुपर स्पेशलिटी कैंसर संस्थानके अलावा दीपचंद बंधु अस्पताल में जूनियर रेजिडेंट के तौर पर काम भी कर चुकी है। पैसे के लालच में उसने अपने चचेरे भाई शुभम को और रामकुमार को भी साथ जोड़ लिया था।
बाजार में नकली दवाई को 50 परसेंट डिस्काउंट पर उपलब्ध कराया जा रहा था। रुपया बेनामी खातों में लिया जाता था और उसी रकम से संपत्ति खरीदी जाती थी। आरोपी अलग-अलग देशों में भी दवाई की सप्लाई कर रहे थे। शुभम के बारे में बताएं तो वह बीटेक है और मोटी रकम के लालच में डॉक्टर पवित्रा से जुड़ गया था। वह दवा पर एक्सपायरी डेट लिखता था और पैकेजिंग यूनिट की देखभाल करता था।
इसके अलावा पंकज सिंह बोहरा आईटीआई डिप्लोमा धारक है और शुभम के साथ काम कर रहा था। कोरियर कंपनी के जरिए ग्राहकों को नकली दवाइयां सप्लाई करता था। इसके अलावा अंकित शर्मा डिप्लोमा धारक है। एकांश वर्मा चंडीगढ़ के मनीमाजरा में फार्मा फर्म चलाता है। वही प्रभात कुमार चांदनी चौक दिल्ली में रहता है और एमबीए है। इसके अलावा पहले मल्टीनेशनल कंपनी में भी काम कर चुका है।
हमारा देश में मिलावट की मिठाई और अन्य सामान बेचने का चलन तो काफी पहले शुरू हो गया था लेकिन अब नकली दवाइयों के मामले में भी भारत बहुत आगे है। देश में हर दवा के नकली उत्पाद खुले आम मिलेंगे। सीबीआई ने साल 2020 में एक नोटिस जारी करके सभी राज्यों को आगाह किया था कि इस तरह का कारोबार तेजी से बढ़ रहा है जिस पर रोक लगाना जरूरी है।
विभिन्न राज्यों में करोड़ों रुपए के नकली दवाइयां कई बार पकड़ी गई हैं। भारत नकली दवाओं का दुनिया का तीसरा बड़ा बाज़ार है। ऑनलाइन शॉपिंग बढ़ने से इस धंधे को बढ़ोतरी मिली है।
एक रिपोर्ट के मुताबिक ऑनलाइन खरीदी जाने वाली दवाओं में 30 प्रतिशत नकली हैं और हर साल दस लाख लोग इनके सेवन से मर जाते हैं और उनके परिवार वालों को इसका पता नहीं चलता।
दरअसल ये फर्जी कंपनियां इतनी सफाई से अपने सामान की ऑनलाइन मार्केटिंग करती हैं कि कोई भी आसानी से धोखा खा सकता है।
विश्व स्वास्थय संगठन के 2017 की रिपोर्ट के अनुसार भारत में बिकने वाली सर्दी और जुकाम की ज्यादातर दवाइयां या तो नकली हैं या फिर घटिया हैं। नकली उत्पादों के खिलाफ कई वर्षों से काम कर रही संस्था फेक फ्री इंडिया के अनुसार देश में नकली सामानों के उत्पादन का काम पिछले पांच दशकों से चल रहा है और उससे सरकारों को हर साल कम से कम एक लाख करोड़ रुपए का घाटा हो रहा है। फर्जीवाड़ा करने वाले नकली दवाएं, खाने-पीने के सामान, ऑटो पार्ट्स वगैरह धड़ल्ले से बना रहे हैं।
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक देश में 2017-18 में कैंसर के मामलों में 324 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई थी। देश में कैंसर बढ़ने का एक कारण यह भी है कि लोग नकली प्रॉडक्ट्स का उपभोग कर रहे हैं।
इस बुराई को जड़ से समाप्त करना जरूरी है और इसके लिए न केवल सरकारों को बल्कि न्यायपालिका को भी सामने आना होगा। लोगों में जागरूकता लानी होगी ताकि वे नकली प्रॉडक्ट्स को पहचान सकें। इस समय नकली सामानों की बाढ़ आई हुई है। नकली अब पहले से कहीं ज्यादा सोफिस्टिकेटेड हो गए हैं।
वे बढ़िया पैकिंग करते हैं और उन्हीं कंपनियों से पैकेजिंग का माल खरीदते हैं जहां से असली सामान बनाने वाली कंपनियां बनवाती हैं। उनका पैकिंग मैटेरियल भी वैसा ही होता है और पैकिंग हूबहू वैसी। इससे पढ़े-लिखे ग्राहकों को भी धोखा हो जाता है। मिलावट और नकली सामान बनाने वालों के खिलाफ संस्थाओं को कड़ा ऐक्शन लेने की जरूरत है।
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