• हम फ्रांस या ऑस्ट्रिया के मुताबिक नहीं बनना चाहते : जस्टिस गुप्ता

इंडिया न्यूज, New Delhi News। Hijab Controversy : जैसा कि आप जानते ही हैं कि पिछले काफी समय से स्कूल, कॉलेज में हिजाब पहनने को लेकर विवाद चल रहा है। जिसे लेकर सुप्रीम कोर्ट में गुरुवार को भी सुनवाई की गई। सर्वोच्च अदालत ने कहा कि सिखों के कृपाण और पगड़ी पहनने की तुलना हिजाब से नहीं की जा सकती है क्योंकि शीर्ष अदालत की पांच सदस्यीय पीठ ने कहा कि सिखों को पगड़ी और कृपाण पहनने की अनुमति है।

कर्नाटक हाईकोर्ट लगा चुका है प्रतिबंध

आपको बता दें कि सुप्रीम कोर्ट में मामला पहुंचने से पहले कर्नाटक हाईकोर्ट शैक्षणिक संस्थानों में हिजाब पर प्रतिबंध लगा चुका है। जिसके बाद याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की। अब इस मामले में न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता और न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया की पीठ सुनवाई कर रही है।

सिख छात्रों के पगड़ी पहनने का दिया तर्क

गुरुवार को एक याचिकाकर्ता छात्रा की ओर से पेश वकील निजामुद्दीन पाशा ने कृपाण और पगड़ी धारण करने को हिजाब के साथ तुलना करने की कोशिश की। निजामुद्दीन पाशा ने कहा कि हिजाब मुस्लिम लड़कियों की धार्मिक प्रथा का हिस्सा है। पाशा ने सवाल किया कि क्या लड़कियों को हिजाब पहनकर स्कूल आने पर रोक लगाई जा सकती है। उन्होंने तर्क दिया कि सिख छात्र भी पगड़ी पहनते हैं। पाशा ने कहा कि देश में सांस्कृतिक प्रथाओं की रक्षा की जानी चाहिए।

फ्रांस जैसे मुल्कों का दिया उदाहरण

पाशा ने फ्रांस जैसे मुल्कों का उदाहरण देने की कोशिश की। पाशा की इन दलीलों पर न्यायमूर्ति गुप्ता ने कहा कि हिजाब पहनने की तुलना सिखों के पगड़ी और कृपाण धारण करने के साथ नहीं की जा सकती है। सिखों को कृपाण ले जाने की मान्यता संविधान द्वारा प्राप्त है इसलिए दोनों प्रथाओं की तुलना न करें। न्यायमूर्ति गुप्ता ने कहा कि पगड़ी पर वैधानिक अपेक्षाएं हैं और ये सभी प्रथाएं देश की संस्कृति में अच्छी तरह से स्थापित हैं।

हम भारतीय हैं और भारत में रहना चाहते हैं

मिली जानकारी अनुसार जस्टिस गुप्ता ने कहा कि हम फ्रांस या ऑस्ट्रिया के मुताबिक नहीं बनना चाहते। हम भारतीय हैं और भारत में रहना चाहते हैं। पाशा ने अपनी दलीलों में कर्नाटक हाईकोर्ट के फैसले का विरोध करते हुए कहा कि हिजाब मुस्लिम महिलाओं की सुरक्षा करता है। कर्नाटक हाईकोर्ट का यह निष्कर्ष कि हिजाब एक सांस्कृतिक प्रथा है, धारणा पर आधारित है। उन्होंने अपनी दलीलों का समर्थन करने के लिए विभिन्न धार्मिक पुस्तकों का भी हवाला दिया।

पाशा ने दीं ये दलीलें…

पाशा ने यह भी दलील दी कि यह फुटनोट की गलत व्याख्या थी कि हाईकोर्ट ने माना है कि हिजाब एक संस्तुति है अनिवार्यता नहीं है। वहीं एक अन्य याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता देवदत्त कामत ने कहा कि हर धार्मिक प्रथा जरूरी नहीं है लेकिन ऐसा भी नहीं है कि राज्य इस पर रोक लगा दे।

उन्होंने अदालत को बताया कि हिजाब एक आवश्यक धार्मिक प्रथा है या नहीं, इस पर कर्नाटक, केरल और मद्रास उच्च न्यायालय के फैसलों में अलग-अलग विचार रखे गए हैं। कामत ने कहा कि मद्रास और केरल की अदालतों ने हिजाब को एक आवश्यक धार्मिक प्रथा के रूप में माना है, लेकिन कर्नाटक हाईकोर्ट का रुख अलग है।

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