आमदनी अठन्नी उसके तीन 3 गुना MCD का खर्च, कैसे चलेगी AAP की रेवड़ी वाली राजनीति?

इंडिया न्यूज़ (दिल्ली) : दिल्ली नगर निकाय चुनाव में आम आदमी पार्टी की जीत हुई है। AAP को 250 में से 134 सीटें मिलीं, जबकि भाजपा को 104 और कॉन्ग्रेस को 09 सीटों पर संतोष करना पड़ा है। राजधानी दिल्ली का 97 फीसदी इलाका एमसीडी के अंडर ही आता है। बाकी का तीन प्रतिशत इलाका नई दिल्ली नगर परिषद (NDMC) और दिल्ली कंटेन्मेंट बोर्ड (DCB) के पास है।

एमसीडी की वेबसाइट पर दी गई जानकारी के मुताबिक, दिल्ली नगर निगम के दायरे में लगभग 2 करोड़ लोग आते हैं, जो इसे भारत का सबसे बड़ा नगर निगम बनाती है। क्षेत्रफल की दृष्टि से दिल्ली नगर निगम विश्व में सबसे बड़ा निगम है और जनसंख्या की दृष्टि से दिल्ली नगर निगम की गिनती टोक्यो के बाद होती है। दिल्ली नगर निगम में लगभग 1.50 लाख कर्मचारी काम करते हैं।

तीनों एमसीडी का हो चुका है विलय

जानकारी दें, इसी साल केंद्र सरकार ने दिल्ली के तीन निगमों को मिलाकर एक कर दिया था। तीनों नगर निगम एक करने के बाद एमसीडी का बजट बढ़कर 15,000 करोड़ रुपए से ज्यादा पहुँच गया है। इस बार भी 15,276 करोड़ रुपए बजट का प्रा वलवधान किया गया है। वर्ष 2022-23 के लिए अनुमानित इस बजट का ऐलान होना बाकी है।

भले ही आम आदमी पार्टी एमसीडी चुनाव जीत चुकी है, लेकिन आगे उसकी राह आसान नहीं होने वाली है। एमसीडी की आर्थिक स्थिति बता रही है कि यह आम आदमी पार्टी के लिए काँटों भरा ताज है। दरअसल, दिल्ली नगर निगम की जितनी आमदनी है, उससे कई गुना ज्यादा खर्च है। एमसीडी के खर्च से पहले उसकी आमदनी के बारे में जान लेते हैं। एमसीडी की सालाना आमदनी लगभग 4800 करोड़ रुपए है।

टैक्स आय का प्रमुख श्रोत और कहाँ -कहाँ से मिलता है फंड

जानकारी दें, किसी भी नगर निगम की आय का मुख्य स्रोत वसूले जाने वाला टैक्स होता है। दिल्ली एमसीडी को संपत्ति टैक्स से अधिक आमदनी होती है। उन्हें प्लॉट, दुकानों, कमर्शियल इमारतों और जगह-जगह लगने वाले एडवरटाइजिंग का टैक्स मिलता है। इसके अलावा बॉर्डर पर वसूले जाने वाले टोल टैक्स, पार्किंग आदि से निगम अपनी कमाई करता है। दिल्ली सरकार जो स्टांप ड्यूटी वसूल करती है, उसमें भी नगर निगम का हिस्सा होता है। ज्ञात हो, पाँचवे वित्त आयोग में व्यवस्था की गई थी कि विकास कार्यों के लिए एमसीडी को दिल्ली सरकार अपने बजट का 12.5% हिस्सा देगा। यह फंड राज्य सरकार तीन किस्तों में एमसीडी को देती है। इसके अलावा केंद्र सरकार का शहरी विकास मंत्रालय भी एमसीडी के लिए फंड जारी करता है।

नक्शों की मंजूरी से फंड की प्राप्ति और आय के अन्य स्रोत

ज्ञात हो, दिल्ली में नक्शे मंजूर करने का काम एमसीडी के पास ही है। यदि नगर निगम के अधिकार क्षेत्र में केंद्र सरकार भी कोई इमारत बनाती है तो उसे एमसीडी से ही नक्शा मंजूर कराना होता है। इसके लिए एमसीडी शुल्क वसूलता है। इनके अतिरिक्त एमसीडी जन्म और मृत्यु प्रमाण पत्र, ट्रेड लाइसेंस जारी करने, रेस्टोरेंट लाइसेंस देने, पार्किंग के ठेके जारी करने से भी आमदनी करता है।

आमदनी से अधिक खर्च

हम एमसीडी को आम आदमी पार्टी के लिए काँटो भरा ताज इसलिए कह रहे हैं, क्योंकि आमदनी के तुलना में यहाँ खर्च बहुत अधिक है। खर्च अधिक और आमदनी कम होने के कारण विकास कार्यों के लिए अक्सर फंड की कमी हो जाती है।

रिपोर्ट्स के मुताबिक एमसीडी के लिए काम करने वाले कर्मचारियों के वेतन और रिटायर्ड कर्मचारियों के पेंशन पर सालाना 9300 करोड़ रुपए खर्च होते हैं। एमसीडी को लाखों स्ट्रीट लाइटों का बिजली बिल भरना पड़ता है। इस पर सालाना करीब 100 करोड़ रुपए खर्च आता है। सफाई व्यवस्था पर सालाना करीब 300 करोड़ रुपए खर्च होता है। बिजली बिल और सफाई पर सालना खर्च 400 करोड़ का खर्च होता है, लेकिन आमदनी नहीं होती। इसके अतिरिक्त सैनिटेशन, कूड़ा ढुलाई और दफ्तरों के मेंटनेंस पर भी खर्च होता है। कुल मिलाकर कह सकते हैं कि एमसीडी की जितनी आमदनी है, उससे करीब तीन गुना खर्च है। आय और व्यय के बीच का जो अंतर है उसे पाटना आम आदमी पार्टी के लिए आसान नहीं होगा।

Ashish kumar Rai

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