India News ( इंडिया न्यूज़ ), Israel News : जंग के एक और मैदान का खुलना, दुनिया के लिए ख़तरे की घंटी है। हमास का हमला और इज़रायल का काउंटर अटैक अब डराने लगा है। रूस-यूक्रेन डेढ़ साल से युद्ध के मैदान में हैं। युद्ध सिर्फ मौत, तबाही और बर्बादी देता है। जंग तो चंद रोज़ होती है। जिंदगी बरसों तलक रोती है। रूस बनाम यूक्रेन, हमास बनाम इज़रायल युद्ध में दुनिया दो धड़ों में बंट चुकी है। ईरान हमास तो पश्चिमी देश इज़रायल के साथ हैं। अमेरिका,ब्रिटेन, फ्रांस ने हमास हमले की निंदा की, तो ईरान ने आतंकी संगठन हमास का समर्थन कर दिया।
ये जंग ज़मीन की है, अहम की है। हमास एक चरमपंथी आतंकी संगठन है जिसके कट्टरपंथियों का ब्रेन वॉश किया जा चुका है। इज़रायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने युद्ध की घोषणा कर दी है। गाज़ा पट्टी से लेकर वेस्ट बैंक और तेल अवीव दहले हुए हैं। इतना तय है कि अब ना कोई रुकेगा और ना ही कोई झुकेगा। समझना ज़रूरी है कि यलग़ार का अंजाम क्या होगा। सोच कर दहशत होती है, कि टुकड़ों में बंटी दुनिया कहीं एक और विश्वयुद्ध की तरफ़ तो नहीं बढ़ रही। एक और विश्वयुद्ध हुआ तो सब धुआं-धुआं हो जाएगा।
इज़रायल Vs हमास, फिलिस्तीन खल्लास
हमास पर बारूदी बौछार, फिलीस्तीन में हाहाकार
महायुद्ध का मोहरा, हमास का असली चेहरा
‘अल अक्सा फ़्लड’ Vs ‘स्वॉर्ड्स ऑफ़ आयरन’
हमास बेख़ौफ़, हज़ारों ज़ख़्मी, सैकड़ों मौत
इज़रायल Vs हमास, सब धुआं-धुआं कर देंगे
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दुनिया किस ओर जा रहीं है, ये समझने से पहले जानना ज़रूरी है कि इज़रायल-हमास की दुश्मनी की जड़ क्या है। इज़रायल दुनिया का इकलौता यहूदी राष्ट्र है, और फिलिस्तीन में ज़्यादातर अरब मूल के लोग हैं। इज़रायल कहता है कि फिलिस्तीन की चप्पा चप्पा ज़मीन उसकी है। जबकि फिलिस्तीन और हमास दशकों से दावा कर रहे हैं, कि इज़रायल ने ग़लत तरीक़े से उसकी ज़मीन पर क़ब्ज़ा जमाया है। खूनी संघर्ष की जड़ समझने के लिए 20वीं सदी की शुरुआत में जाना होगा। बात तब की है जब यूरोप में उत्पीड़न हो रहा था।
यहूदियों के समझ में नहीं आ रहा था कि जाएं तो जाएं कहां। यहूदी ओटोमन और बाद में ब्रिटिश साम्राज्य तक आ पहुंचे। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान हिटलर ने यहूदियों पर बहुत ज़्यादा ज़ुल्म किया। यूरोप में रह रहे यहूदी जिंदगी की जंग हार रहे थे। उन्हें फिलिस्तीन के अलावा शरण लेने की कोई और ज़मीन नज़र नहीं आई। यहूदियों को ख़ुद को बसाने के लिए ज़मीन की ज़रूरत थी। लिहाज़ा एक अरब क्षेत्र में मातृभूमि की मांग करने लगे। अरब मुस्लिम यहूदियों को ज़मीन देने को तैयार नहीं हुए, और यहीं से शुरू हो गया ज़मीनी संघर्ष।
इज़रायल और आसपास के अरब देशों ने फिलिस्तीन में कई लड़ाईयां लड़ीं। 1967 की जंग ने आग में घी डाल दिया। इज़रायल ने वेस्ट बैंक और गाज़ा पट्टी पर क़ब्ज़ा कर लिया। 1967 का युद्ध, इतिहास को बदलने और बिगाड़ने वाला माना जाता रहा है। उस साल इज़रायल ने कई देशों में अपना प्रभुत्व जमाने की कोशिश की, सीरिया से गोलन हाइट, मिस्र से गाज़ा पट्टी और जॉर्डन से वेस्ट बैंक छीन लिया। ये वो साल था जब फिलिस्तीन पर पूरी तरह इज़रायल ने क़ब्ज़ा जमा लिया था।
फिलिस्तीनियों को लगा कि हमारी ज़मीन जा रही है तो संघर्ष का एक नया दौर शुरू हुआ। इसी दौर में यासिर अराफ़ात ने फिलिस्तीन लिबरेशन ऑर्गनाइज़ेशन की शुरुआत की, जिसने कई देशों में इज़रायली दूतावास पर अटैक किए। हवाई जहाज़ हाईजैक किए, बहुत जगह बमबारी भी की। नरमी और गरमी के बीच एक बहुत बड़ा परिवर्तन हुआ। 1993 में ओस्लो एकॉर्ड समझौता हुआ जिसके तहत फैसला हुआ कि फिलिस्तीन।
इज़रायल को एक देश के रूप में स्वीकार करेगा, और इज़रायल फिलिस्तीन लिबरेशन ऑर्गनाइज़ेशन को फिलिस्तीनी लोगों का प्रतिनिधि मानेगा। ओस्लो एकॉर्ड समझौते के तहत एक फैसला ये भी हुआ, कि फिलिस्तीन सरकार वेस्ट बैंक और गाज़ा पट्टी को लोकतांत्रिक तरीक़े से नियंत्रित करेगी। साल 2000 आते आते ये शांति समझौता टूट कर बिखर चुका था। तब से लेकर आज तक दोनों देशों के बीच संघर्ष ही हो रहा है।
हमास को उग्र राष्ट्रवाद का नशा चढ़ा है जिसका नतीजा सिर्फ और सिर्फ दो मुल्कों की बर्बादी है। इस संघर्ष का कोई हल निकलता नहीं नज़र आ रहा क्योंकि इजरायल गाज़ा पट्टी और वेस्ट बैंक पर झुकेगा नहीं और हमास अब रुकेगा नहीं। ज़मीन की लड़ाई में धर्म आ जाए तो कट्टरपंथी तबाही लेकर आते हैं। फिलिस्तीन-इज़रायल तनाव में कुछ ऐसा ही है। ये लड़ाई सिर्फ ज़मीन तक रहती तो बात कुछ और थी, लेकिन मेरा मानना है कि ये ख़ूनी संघर्ष अब इस्लामिक चरमपंथ बनाम यहूदी हो चुका है।
रूस-यूक्रेन और इज़रायल-हमास युद्ध के बाद दुनिया बंटी हुई है। हमास के साथ ईरान, तुर्किए और क़तर जैसे देश हैं तो अमेरिका, फ्रांस, ब्रिटेन जैसे पश्चिमी देश इज़रायल के साथ खड़े हैं। और तो और पाकिस्तान जैसे मुल्क युद्ध में भी मौक़ा तलाशने की फ़िराक़ में हैं। इज़रायल पर हमास के अटैक और इज़रायल के काउंटर अटैक के बाद पाकिस्तान ने ‘टू स्टेट थ्योरी’ देते हुए कहा कि, “पाकिस्तान मिडिल ईस्ट में स्थायी शांति के लिए ‘टू स्टेट’ समाधान का पैरोकार है।” ऐसा नहीं है कि हमास सिर्फ अल अक्सा मस्जिद पर हमले से बिदका है। दरअसल हमास को ये लगने लगा है कि अरब मुल्क इज़रायल के साथ गए तो हमास का तहस नहस होना तय है।
तभी तो इज़रायल और हमास युद्ध के बीच हमास के प्रवक्ता ग़ाज़ी हामद ने विस्फोटक बयान देते हुए कह दिया, इज़रायल के ख़िलाफ़ कार्रवाई अरब देशों को हमारा जवाब है। इज़रायल के साथ क़रीबी बढ़ाने वालों को जवाब देते रहेंगे। याद कीजिए दो हफ्ते पहले 23 सितंबर को एक ख़बर आई। इज़रायल के विदेश मंत्री एली कोहेन ने दावा किया कि सात इस्लामिक देश इज़रायल को मान्यता दे सकते हैं। सितंबर में ही इज़रायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने संयुक्त राष्ट्र जनरल असेंबली में भाषण देकर कहा था कि, “इज़रायल सऊदी अरब के साथ शांति समझौते के लिए एक ऐतिहासिक सफलता के मोड़ पर है।” मतलब साफ़ है कि हमास को अरब मुल्क़ो से निराशा है और वो इन पर दबाव बनाने के मोड में है।
दुनिया ख़तरे की ज़ंग में है। ख़तरनाक मुहाने पर खड़ा विश्व ध्रुवों में बंट चुका है। उत्तरी इज़रायल में लेबनानी इस्लामिक समूह हिजबुल्लाह भी एक्टिव हो गया है। हिज़बुल्लाह ने इज़रायली चौकियों को निशाना बनाते हुए मोर्टार दागे हैं। अमेरिका ने ऐलान कर दिया है कि इज़रायल को गोला बम-बारूद सप्लाई किए जाएंगे। हमास इस्लामी प्रतिशोध की बात करता है। लड़ाई ज़मीन से निकल कर धर्म की हो चली हैं।
बेंजामिन नेतन्याहू हमास के अंत का संकल्प बिन विकल्प लिए बैठे हैं। कहने में अतिशयोक्ति नहीं कि ये विश्व युद्ध की आहट है। याद रखिएगा कि अगला विश्वयुद्ध सिर्फ बम बारूद की बरसात वाला ही नहीं बल्कि साइबर और सूचना की लड़ाई का भी होगा।
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