इंडिया न्यूज़ (दिल्ली) : झटका और हलाल प्रोडक्ट लंबे समय से बहस और विवाद का विषय रहे हैं। इस बीच कर्नाटक की भाजपा सरकार ने हलाल मांस को प्रतिबंधित करने के लिए विधानसभा में बिल लाने का फैसला किया है। विधानसभा में यह बिल पास होने के बाद कर्नाटक भारत का पहला राज्य बन जाएगा, जो हलाल मीट पर प्रतिबंध लगाएगा। इस बिल को लेकर कॉन्ग्रेस ने अभी से विरोध करना शुरू कर दिया गया है।
भाजपा विधान परिषद सदस्य एन रविकुमार ने इस बिल को सदन में लाने की पहल की है। इसमें भारतीय खाद्य सुरक्षा और सुरक्षा संघ (FSSAI) के अलावा किसी अन्य संस्था के खाद्य प्रमाणन पर प्रतिबंध लगाने की बात कही गई है। रविकुमार ने इसे निजी विधेयक के रूप में पेश की का विचार किया था, लेकिन अब वह इसे सरकारी विधेयक के रूप में पेश कर सकते हैं।
ज्ञात हो, कर्नाटक में हलाल मांस को लेकर विवाद की शुरुआत इसी साल मार्च में हुई थी। तब, भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव सीटी रविकु ने हलाल मांस बेचने को आर्थिक जिहाद करार दिया था। उन्होंने कहा था कि हलाल मांस को जिहाद के लिए इस्तेमाल किया जाता है, ताकि मुस्लिम दूसरों के साथ व्यापार न करें। इसके बाद कुछ अन्य हिंदू संगठनों ने भी हलाल मांस का विरोध किया था। हालाँकि, मुस्लिम संगठन व कॉन्ग्रेस समेत अन्य राजनीतिक दलों ने हलाल मांस का समर्थन किया था।
जानकारी दें, इस्लाम के मजहबी किताब कुरान और हदीस में मुस्लिमों के खाने के दो प्रकार बताए गए हैं, हलाल और हराम। किसी मांसाहारी प्रोडक्ट के हलाल होने का मतलब यह होता है कि जानवर को मुस्लिम द्वारा ही काटा जाना चाहिए। काटने की यह प्रक्रिया भी निर्धारित है। यदि जानवर किसी और संप्रदाय के व्यक्ति द्वारा काटा जाता है तो इसे मुस्लिम गैर-हलाल यानी हराम बताते हैं।
जानकारों का कहना है कि मुस्लिमों को सभी चीजें इस्लामी कानून (शरिया) के अनुसार करनी होती है। इसमें खाना-पीना भी शामिल है। साथ ही, हराम चीजों से बचने के लिए कहा गया है। इस्लाम में सुअर के साथ ही अल्लाह का नाम लिए बिना जिबह (काटे) गए जानवर भी हराम कहे गए हैं। इसके अलावा, कुरान की कई ऐसी आयतें हैं, जिनमें कहा गया है कि मुस्लिमों को खून के सेवन से किसी भी कीमत पर बचना चाहिए। यानी, खून को इस्लाम में हराम माना गया है।
इस्लाम में कहा गया है कि जानवरों को जिबह (काटने) से पहले उसे अच्छी तरह से खाना-पानी दिया जाना चाहिए। इसके बाद ही जानवर को काटना चाहिए। यही नहीं, इस्लाम कहता है कि हलाल केवल एक समझदार, वयस्क मुस्लिम व्यक्ति द्वारा किया जाना चाहिए, जो इस्लामी रीति-रिवाजों से परिचित हो। यदि जानवर को अल्लाह का नाम लिए बिना काटा जाता है तो यह हराम है। साथ ही, किसी गैर-मुस्लिम द्वारा जानवर को काटा जाना भी हराम कहलाता है।
सीधे शब्दों में कहें तो झटका, जैसा कि शब्द से पता चलता है, का अर्थ है “तेज”। वध की झटका विधि में पशु को बिना किसी कष्ट के तुरंत मार दिया जाता है। झटका में जानवर का सिर तुरंत काट दिया जाता है। हलाल और झटका के बीच एक और महत्वपूर्ण अंतर यह है कि झटका कोई धार्मिक प्रक्रिया नहीं है। झटका का मूल विचार जानवर को कम से कम यातना देकर मारना है। वहीं, हलाल में उसे तड़प-तड़प कर मरने के लिए छोड़ दिया जाता है।
हलाल को बढ़ावा गैर-मुस्लिमों पर इस्लामी सिद्धांतों को लागू करने की एक प्रक्रिया भी है। एक गैर-मुस्लिम यानी हिंदू या सिख आदि को अल्लाह के नाम पर कुर्बान किए गए मांस को खाने के लिए मजबूर किया जाता है। सिख अपनी धार्मिक मान्यताओं के कारण हलाल मांस का सेवन नहीं करते हैं।
सिख हलाल प्रक्रिया को “कुट्टा” कहते हैं, जिसका अर्थ है धीमी, दर्दनाक प्रक्रिया में जानवर को मारने के बाद प्राप्त मांस। सिख इनसाइक्लोपीडिया के अनुसार, सिखों के अंतिम गुरु, गुरु गोविंद सिंह ने 1699 में खालसा के आदेश का जिक्र करते हुए कुट्टा या हलाल भोजन करने से परहेज करने का आदेश दिया था।
जानकारी दें, मांसाहारी प्रोडक्ट के हलाल होने का मतलब यह होता है कि जानवर को मुस्लिम द्वारा ही काटा जाना चाहिए। यदि किसी और के द्वारा काटा जाता है तो इसे मुस्लिम गैर-हलाल बताते हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि हलाल और गैर-हलाल मांस के चलते लगभग सभी बूचड़खानों में केवल मुस्लिमों को ही नौकरी में रखा जाता है। इसका कारण यह है कि कोई भी हलाल और गैर-हलाल के लिए अलग-अलग बूचड़खाने खोलना अपेक्षाकृत महंगा साबित होगा।
ज्ञात हो,मांस उद्योग कोई छोटा-मोटा उद्योग नहीं है। वास्तव में यह 28 अरब डॉलर से अधिक की आय वाला उद्योग है, जहाँ सिर्फ हलाल मांस के लिए मुस्लिमों को काम पर रखा जाता है। इसी हलाल के चलते ऐसे लाखों लोग, खासतौर से दलित वर्ग के लोग जो परंपरागत रूप से इस काम लगे थे, वे बेरोजगार हो चुके हैं।
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