इंडिया न्यूज़ (नई दिल्ली, indian laws on Live-in relation): दिल्ली में महाराष्ट्र की रहने वाली श्रद्धा वॉकर हत्याकांड में रोज-रोज नए खुलासे हो रहे है। पुलिस आरोपी आफताब का नार्को टेस्ट करवाने वाली है। पुलिस के अनुसार, श्रद्धा और आफताब लिव-इन-रिलेशनशिप में रह रहे थे।
18 मई 2022 को आफताब ने श्रद्धा की हत्या कर दी थी और फिर उसके शरीर के 35 टुकड़े कर फ्रीज में रख दिया था। फिर महीने भर उसके शरीर के टुकड़ो को दिल्ली में महरौली के जंगल और अन्य जगहों पर फेंकता रहा।
श्रद्धा के दोस्तों के अनुसार, आफताब, श्रद्धा के साथ अक़्सर मारपीट करता था। ऐसे में सवाल उठता है की क्या लिव-इन-रिलेशनशिप क़ानूनी है? इसको लेकर भारत का कानून क्या कहता है? और अगर लिव-इन-रिलेशनशिप में मारपीट हो तो क्या करना चाहिए? आइये आपको बताते है –
लिव-इन-रिलेशनशिप में दो बालिग यानी एडल्ट आपसी सहमति के साथ रहते हैं। उनका रिश्ता पति-पत्नी की तरह होता है, लेकिन वो दोनों एक-दूसरे के साथ शादी के बंधन में नहीं बंधे होते हैं।
घरेलू हिंसा अधिनियम 2005 की धारा 2(f) के तहत लिव-इन-रिलेशनशिप को परिभाषित किया गया, अधिनियम के अनुसार लिव-इन-रिलेशनशिप में-
1. लड़का-लड़की को पति-पत्नी की तरह एक साथ एक घर में रहना होगा, इसके लिए कोई समय सीमा नही है।
2. कुछ दिन एक साथ रहे, फिर अलग हो जाएं और फिर एक साथ रहने लगे तो ऐसे रिश्ते को लिव-इन-रिलेशनशिप नही माना जाएगा।
3. अगर रिश्ते में संतान हो जाएं तो उसका सही-पालन पोषण करना होगा और अच्छे से उसे रखना होगा।
4. लिव-इन-रिलेशन के लिए लड़का और लड़की दोनों को बालिग़ होना जरुरी है।
इसका मतलब साफ है कि आफताब और श्रद्धा का लिव-इन में रहना गैरकानूनी नहीं था। अब तक आफताब या श्रद्धा की शादी को लेकर कोई जानकारी सामने नहीं आई है।
साल 2006 में लता सिंह बनाम उत्तर प्रदेश राज्य नामक केस में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए कहा था कि बालिग़ होने के बाद कोई भी व्यक्ति किसी के भी साथ रहने या शादी करने के लिए स्वतंत्र होता है। कोर्ट के इस फैसले के बाद भारत में लिव-इन-रिलेशनशिप को कानूनी मान्यता मिल गई थी ।
लिव-इन में रहते हुए आपको बच्चे पैदा करने का अधिकार है, लेकिन आपको बच्चे गोद लेने का अधिकार नहीं है।
दण्ड प्रक्रिया संहिता 1973 के अनुसार जिसे CrPC भी कहते है उसकी धारा-125 के तहत शादीशुदा महिलाओं को भरण-पोषण का अधिकार है। इसी धारा में लिव-इन वाली महिलाओं को भी भरण-पोषण का अधिकार है।
साल 1993 में बालसुब्रमण्यम बनाम सुरत्तयन केस में लिव इन रिलेशनशिप से पैदा हुए बच्चे को पहली बार वैधता मिली थी। उस दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि कोई महिला या पुरुष काफी सालों तक साथ रहते हैं, तो यह एविडेंस एक्ट,1872 की धारा-114 के तहत शादी माना जाएगा। इसलिए लिव-इन में पैदा हुए बच्चे को भी वैधता मिलेगी और पैतृक संपत्ति में अधिकार भी।
लिव-इन-रिलेशन में वही रह सकते है, जिनकी पहले से कोई शादी न हुई हो, दो तलाकशुदा लोग या फिर जिनके पार्टनर की मौत हो गई हो। अगर लड़का-लड़की में से कोई भी पहले से शादीशुदा हो तो यह भारतीय दंड संहिता की धारा-494 के तहत अपराध माना जाएगा।
धारा-494 के अनुसार पति या पत्नी के जिंदा रहते हुए या बगैर तलाक लिए दोबारा शादी करना अपराध माना जाता है। इसमें अपराधी को 7 साल तक की जेल या जुर्माना या फिर दोनों की सजा मिल सकती है। हालांकि, ये धारा किसी मुस्लिम धर्म के व्यक्ति पर लागू नहीं होती क्योंकि देश में मुस्लिम पर्सनल लॉ है।
इलाहाबाद हाईकोर्ट में एक कपल की तरफ से याचिका लगा कर सुरक्षा मांगी गई थी, जो लिव-इन में रहना चाहते थे। लेकिन इस मामले में लड़की पहले से शादीशुदा थी। कोर्ट ने इस याचिका को 15 जून 2021 के दिन सिरे से खारिज कर दिया और 5 हजार का जुर्माना भी जाएगा।
कोर्ट ने साफ कहा कि अगर दो अविवाहित बालिग लोग लिव-इन में रहने चाहते हैं, तब कोई दिक्कत नहीं है।
हिंसा होने के मामले में महिला पार्टनर घरेलू हिंसा अधिनियम की धारा-12 के तहत लड़के पर केस दर्ज करा सकती है। इस धारा के तहत शिकायत सीधे मजिस्ट्रेट को की जा सकती है। इसके अलावा घरेलू हिंसा अधिनियम की धारा-18 के तहत महिला संरक्षण (Protection) आदेश की भी मांग रख सकती है।
मजिस्ट्रेट पूरे मामले को सुनकर, जो भी फैसला सुनाते हैं उसे मानना होगा। अगर पुरुष ऐसा नही करता तो 1 साल की जेल या 20 हजार का जुर्माना या दोनों की सजा घरेलू हिंसा अधिनियम धारा-31 के अंतर्गत हो सकती है।
कई बार देखा गया है कि लिव-इन में रिश्ते ख़राब होने पर पुरुषों पर रेप के मामले दर्ज करा दिए जाते है। इसको लेकर एक मामला सुप्रीम कोर्ट पंहुचा था जो राजस्थान का था। एक महिला और एक पुरुष चार सालों से लिव-इन में रह रहे थे और उनकी एक बेटी भी थी। फिर दोनों के रिश्ते खराब होने लगे।
महिला ने पुरुष पर भारतीय दंड संहिता की धारा 376 के तहत बलात्कार का मुकदमा दर्ज करवा दिया था। राजस्थान हाईकोर्ट ने पुरुष को जमानत नहीं दिया था फिर मामला सुप्रीम कोर्ट गया।
फैसला देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि लम्बे समय से दो लोग साथ रह रहे हो और बाद में उनके रिश्ते खराब हो जाते हैं, तो ऐसे में रेप का आरोप लगाना गलत है। यहां महिला अपनी मर्जी से सालों से पुरुष के साथ रह रही थी। इसलिए पुरुष के खिलाफ रेप का केस नहीं बनता है।
मामला साल 2010 का है। साउथ फिल्मों की जानी-मानी अभिनेत्री और वर्त्तमान में भारतीय जनता पार्टी की नेता खुशबू सुन्दर ने एक बयान दिया था कि शादी से पहले शारीरक सम्बन्ध बनाना और लिव-इन-रिलेशनशिप में रहना गलत नहीं है।
इस बयान के बाद उनके खिलाफ 23 अलग-अलग आपराधिक मामले दर्ज हुए थे। फिर साल 2010 में सुप्रीम कोर्ट ने खुशबू बनाम कन्नियाम्मल बनाम अन्य, नामक केस में कहा की भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत साथ रहना जीने के अधिकार के तहत आता है। यह भले समाज द्वारा अनैतिक माना जाता है लेकिन यह कानून के तहत अपराध नही है।
लिव-इन-रिलेशनशिप की शुरुआत पश्चिम के देशों में हुई ऐसा माना जाता है। माना जाता है कि इसका चलन एडम और ईव ने शुरू किया था। एडम को दुनिया का पहला पुरूष और ईव को पहली महिला माना गया है। दोनों बगैर शादी के साथ रहे थे।
बाइबिल में इसका जिक्र है। दिल्ली-मुंबई जैसे महानगरों में भले ही यह नया ट्रेंड हो, लेकिन भारत के कई राज्यों में बसे आदिवासियों के बीच अब यह बीती कई सालों से चली आ रही है।
झारखंड में लिव-इन-रिलेशनशिप को ढुकू कहा जाता है। छत्तीसगढ़ के बस्तर में आदिवासी इसे पैठू कहते हैं। यहां बिना शादी के मां बनी महिला को पूरी इज्जत दी जाती है। साल 2019 की एक रिपोर्ट के अनुसार झारखंड में करीब 2 लाख कपल लिव-इन रिलेशनशिप में रह रहे हैं।
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