कौन हैं मल्लिकार्जुन खड़गे, मज़दूर नेता से कैसे बने कांग्रेस अध्यक्ष, जानिए सब कुछ

(इंडिया न्यूज़): गांधी परिवार के विश्वस्त कर्नाटक निवासी मापन्ना मल्लिकार्जुन खड़गे 24 साल में गांधी परिवार के बाहर कांग्रेस के पहले अध्यक्ष हैं। खड़गे (80) ने कांग्रेस में सोनिया गांधी की जगह ली है। खड़गे ने तिरुवनंतपुरम से सांसद शशि थरूर को हराया है। कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए 17 अक्टूबर को मतदान हुआ था जिसमें देश भर के 9500 से ज्यादा प्रतिनिधियों ने वोट डाले। राजनीति में 50 साल से अधिक समय से सक्रिय खड़गे अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी (एआईसीसी) के अध्यक्ष बनने वाले एस निजालिंगप्पा के बाद कर्नाटक के दूसरे नेता और जगजीवन राम के बाद इस पद पर पहुंचने वाले दूसरे दलित नेता भी हैं।

लगातार 9 बार चुने गए विधायक

लगातार नौ बार विधायक चुने गये खड़गे के सियासी सफर का ग्राफ उत्तरोत्तर चढ़ाव दिखाता है। उन्होंने अपना सियासी सफर गृह जिले गुलबर्ग (कलबुर्गी) में एक यूनियन नेता के रूप में किया। वर्ष 1969 में वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल हुए और गुलबर्ग शहरी कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष बने। चुनावी मैदान में खरगे अजेय रहे और वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने कर्नाटक खासकर हैदराबाद-कर्नाटक क्षेत्र में नरेंद्र मोदी लहर के बावजूद गुलबर्ग से 74 हजार मतों के अंतर से जीत हासिल की।

गुलबर्ग से दो बार लोकसभा सदस्य रहे

खड़गे ने वर्ष 2009 में लोकसभा चुनाव के मैदान में कूदने से पहले गुरुमितकल विधानसभा क्षेत्र से नौ बार जीत दर्ज की। वह गुलबर्ग से दो बार लोकसभा सदस्य रहे। हालांकि, वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में खरगे को भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेता उमेश जाधव के हाथों गुलबर्ग में 95,452 मतों से हार का सामना करना पड़ा। अपने गृह राज्य कर्नाटक में ‘सोलिल्लादा सरदारा’ (कभी नहीं हारने वाला नेता) के रूप में मशहूर खरगे के कई दशकों के सियासी सफर में यह उनकी पहली हार थी। गांधी परिवार के विश्वस्त माने जाने जाने वाले खड़गे ने कई मंत्रालयों की जिम्मेदारी संभाली जिससे एक प्रशासक के तौर पर उनका अनुभव समृद्ध हुआ।

2014 से 2019 तक खड़गे कांग्रेस के नेता रहे

खड़गे ने कर्नाटक विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष की भूमिका निभाने के अलावा वर्ष 2008 के विधानसभा चुनाव में कर्नाटक प्रदेश कांग्रेस कमेटी (केपीसीसी) प्रमुख के रूप में काम किया। लोकसभा में वर्ष 2014 से 2019 तक खड़गे कांग्रेस के नेता रहे, हालांकि वह लोकसभा में प्रतिपक्ष के नेता नहीं बन सके क्योंकि कांग्रेस सांसदों की संख्या सदन की कुल संख्या की 10 प्रतिशत से कम थी।

उच्च सदन में विपक्ष के 17वें नेता थे

मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार में खड़गे ने केंद्रीय कैबिनेट मंत्री के रूप में श्रम एवं रोजगार, रेलवे और सामाजिक न्याय एवं सशक्तिकरण विभाग संभाला। उन्होंने राज्य में शासन करने वाली लगातार कांग्रेस सरकारों में विभिन्न विभागों का कार्यभार संभाला था। कर्नाटक में जब एस एम कृष्णा मुख्यमंत्री थे तो उस वक्त खड़गे राज्य के गृह मंत्री रहे। उनके कार्यकाल में कन्नड़ अभिनेता राजकुमार का कुख्यात चंदन तस्कर वीरप्पन ने अपहरण कर लिया था, उसी दौरान कावेरी जल विवाद भी छाया था। इन दोनों मुद्दों से राज्य में कानून-व्यवस्था की स्थिति पैदा हुई। जून, 2020 में खड़गे कर्नाटक से राज्यसभा के लिए निर्विरोध निर्वाचित हुए और कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए चुनाव में उतरने से पहले हाल तक उच्च सदन में विपक्ष के 17वें नेता थे।

स्नातक और वकालत की पढ़ाई कलबुर्गी में की

खड़गे ने पिछले साल फरवरी में गुलाम नबी आजाद की जगह ली। खड़गे को कई बार कर्नाटक में मुख्यमंत्री बनने के शीर्ष दावेदार के रूप में देखा गया, लेकिन वह कभी इस पद पर नहीं पहुंच पाए। जब कभी कर्नाटक में उनको दावेदार के रूप में पेश करके दलित मुख्यमंत्री की बात उठी तो उन्होंने कई बार कहा, ‘‘आप क्यों बार-बार दलित कहते रहते हैं? ऐसा मत कहिये। मैं एक कांग्रेसी हूं।” मिजाज और स्वभाव से सौम्य खड़गे कभी किसी बड़ी राजनीतिक समस्या या विवाद में नहीं फंसे। बीदर के वारावट्टी में एक गरीब परिवार में जन्मे खड़गे ने स्कूली पढ़ाई के अलावा स्नातक और वकालत की पढ़ाई कलबुर्गी में की।

एक बेटे प्रियांक खड़गे विधायक हैं और कर्नाटक में मंत्री रहे हैं

राजनीति में आने से पहले वह वकालत के पेशे में थे। वह बौद्ध धर्म के अनुयायी हैं और कलबुर्गी में बुद्ध विहार परिसर में निर्मित सिद्धार्थ विहार ट्रस्ट के संस्थापक-अध्यक्ष हैं। उन्होंने 13 मई, 1968 को राधाबाई से विवाह रचाया और दोनों के दो पुत्रियां और तीन बेटे हैं।

उनके एक बेटे प्रियांक खड़गे विधायक हैं और कर्नाटक में मंत्री रहे हैं। नरेंद्र मोदी की सरकार के मुखर आलोचक खड़गे के कांग्रेस का नेतृत्व करने से कार्यकर्ताओं को बढ़ावा मिलने और राज्य में पार्टी नेतृत्व को एकजुट करने की उम्मीद है, जहां अगले साल अप्रैल तक विधानसभा चुनाव होने वाले हैं।

Rizwana

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